कुंडली में कब बनते हैं तलाक के योग?

कुंडली में तलाक योग कैसे बनता है?

आपके वैवाहिक जीवन में उछल-पुथल मची है तो आपको समझ जाना चाहिए कि आपकी कुंडली में प्रेम कारक ग्रह तथा वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने वाले ग्रह की दशा बिगड़ रही है। यदि समय रहते इस ध्यान न दिया जाए तो परिणाम काफी गंभीर हो सकते हैं। जैसे की- जोड़े एक दूसरे से अगल हो जाएं या तलाक की बात करें। ऐसे में उन्हें योग्य ज्योतिषाचार्य से सलाह लेकर अपने वैवाहिक जीवन को बचाने की कोशिश करना चाहिए। तो आइए जानते हैं कुंडली में कैसे बनता है तलाक योग?

कुंडली में तलाक योग

किसा भी कुंडली में लग्नेश, सप्तमेश तथा चंद्रमा विपरीत स्थिति में हो तो पत्रिका के अंदर तलाक की स्थिति उत्पन्न होती है। सप्तम भाव का स्वामी छठे भाव या बारहवें भाव में विराजमान है तो पति-पत्नी के बीच में अलग होने की स्थिति बनती है जो तलाक करवाता है। सूर्य, राहु व शनि सातवें भाव में हो और इन पर शुक्र का प्रभाव पड़ रहा हो या शुक्र की दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ रही हो तो भी तलाक के योग बनते हैं। इसके अलावा सप्तमेश व बारहवें भाव का स्वामी आपस में राशि संबंध बनाते हैं तो कुंडली में तलाक योग का निर्माण होता है। तलाक योग चतुर्थ भाव के स्वामी या सप्तम भाव के स्वामी का छठे, आठवें और बारहवें भाव में विराजमान होने पर भी बनता है। इसके अतिरीक्त चतुर्थ भाव पर पाप ग्रह की दृष्टि पड़ना या पाप ग्रह का विराजमान होना भी वैवाहिक जीवन का अंत करने वाला योग बनाता है। जातक के जन्म कुंडली में शुक्र के साथ छठे, आठवें व बारहवें स्थान में पाप ग्रह विद्धमान है तो यह योग संबंध को तोड़ने का काम करता है। इसके इतर सप्तमेश, लग्नेश व अष्टमेश तथा बारहवें घर में विराजमान हैं तो भी तलाक की स्थिति बनती है। यदि पत्रिका में प्रेम के कारक ग्रह शुक्र नीच राशि का या वक्र राशि का होकर के छठे, आठवें तथा बारहवें घर में स्थित है तो यह अलगाव का योग बनाता है।

कुंडली के योग जोआपको घर का सुख दे सकते हैं

दुनिया में हर किसी की यही जरूरत है कि उसका अपना एक घर हो आइए जानें कुंडली के कौन से योग आपको  घर का सुख दे सकते हैं और इन्हें पाने के लिए क्या किया जा सकता है?

1. अपना घर खरीदने या बनाने के लिए चन्द्र और मंगल कुंडली में मजबूत होने चाहिए।
2. जिनकी कुंडली में चौथा भाव बली हो उसका घर अवश्य बनेगा। जितने बली ग्रह चौथे भाव पर होंगे उतने ही घर जातक के होंगे लेकिन अगर राहु का प्रभाव चौथे भाव पर हो तो वह अपने घर का सुख हीं ले सकेगा। हो सकता है घर तो आलिशान हो लेकिन खुद सरकारी मकान में रहे।
3. शुक्र जितना अच्छा होगा घर उतना ही आलिशान होगा, भव्य होगा।
4. मंगल अगर नीच का हो साथ ही राहु से पीड़ित हो तो घर सुन्दर नहीं होगा और घर में रहकर सुख नहीं मिलेगा।
5. चन्द्र खराब हो तो घर बनाने में परेशानी आती है और मां-बाप का सहयोग नहीं मिलता

कैसे होगा कलयुग का अन्त

भागवत में लिखी ये बातें कलयुग में जब पूर्ण रूप से सत्य हो जाएगी तब कलयुग का अन्त होगा ….आइये जानते है वो बातें कौन सी है

1.ततश्चानुदिनं धर्मः
सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन्
नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥

कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी.

2.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां
कारणं बलमेव हि ॥

कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा !

3. दाम्पत्येऽभिरुचि र्हेतुः
मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः
विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥

कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.
व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.

4. लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं
पाण्डित्ये चापलं वचः ॥

घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान माना जायेगा.

5. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव
संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः
कलौ नृणाम.

कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे. लोगों को कई तरह की चिंताए सताएंगी और बाद में मनुष्य की उम्र घटकर सिर्फ 20-30 साल की रह जाएगी.

6. दूरे वार्ययनं तीर्थं
लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे
धार्ष्ट्यमेव हि॥

लोग दूर के नदी-तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान की तरह जायेंगे लेकिन अपनी ही माता पिता का अनादर करेंगे. सर पे बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर तरह के बुरे काम करेंगे.

7. अनावृष्ट्या विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः । शीतवातातपप्रावृड्
हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥

कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा.मौसम बहुत विचित्र अंदाज़ ले लेगा. कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी. कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी और इन्ही परिस्तिथियों से लोग परेशान रहेंगे.

8. अनाढ्यतैव असाधुत्वे
साधुत्वे दंभ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे
स्नानमेव प्रसाधनम् ॥

कलयुग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा उसे लोग अपवित्र, बेकार और अधर्मी मानेंगे. विवाह के नाम पे सिर्फ समझौता होगा और लोग स्नान को ही शरीर का शुद्धिकरण समझेंगे.

9. दाक्ष्यं कुटुंबभरणं
यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः
आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥

लोग सिर्फ दूसरो के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म-कर्म के काम करेंगे. कलयुग में दिखावा बहुत होगा और पृथ्वी पे भृष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे. लोग सत्ता या शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे.

10. आच्छिन्नदारद्रविणा
यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥

पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर और सूखे के वजह से घर छोड़ पहाड़ों पे रहने के लिए मजबूर हो जायेंगे. कलयुग में ऐसा वक़्त आएगा जब लोग पत्ते, मांस, फूल और जंगली शहद जैसी चीज़ें खाने को मजबूर होंगे.

श्रीमद भागवतम मे लिखी ये बातें इस कलयुग में सच होती दिखाई दे रही है

तुलसी शालिग्राम विवाह

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।

पद्मपुराण के पौराणिक कथानुसार राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं.इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है।

पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी विवाह रचाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाकर उनका विवाह तुलसी जी से किया जाता है. विवाह के बाद नवमी, दशमी तथा एकादशी को व्रत रखा जाता है और द्वादशी तिथि को भोजन करने के विषय में लिखा गया है. कई प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी की स्थापना की जाती है. कई श्रद्धालु कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह करते हैं और द्वादशी को व्रत अनुष्ठान करते हैं।

देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। दरअसल, तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आहावान। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमी की तिथि ठीक है, परन्तु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पाँचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है।

देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जानेवाले इस मांगलिक प्रसंग के सुअवसर पर सनातन धर्मावलम्बी घर की साफ़-सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं. शाम के समय तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरुप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं. मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे को यानी लड़की को लाल चुनरी-ओढ़नी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह में सोलह श्रृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन गाती है।

कार्तिक माह की देवोत्थान एकादशी से ही विवाह आदि से संबंधित सभी मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं. इसलिए इस एकादशी के दिन तुलसी विवाह रचाना उचित भी है. कई स्थानों पर विष्णु जी की सोने की प्रतिमा बनाकर उनके साथ तुलसी का विवाह रचाने की बात कही गई है. विवाह से पूर्व तीन दिन तक पूजा करने का विधान है. नवमी,दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना शुभ होता है। लेकिन लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करके पांचवे दिन तुलसी का विवाह करते हैं। तुलसी विवाह की यही पद्धति बहुत प्रचलित है।

शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती,वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

कार्तिक शुक्ल एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।हिन्दुओं के संस्कार अनुसार तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है. इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति को पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है. यह बहुत पवित्र मानी जाती है और सभी पूजाओं में देवी तथा देवताओं को अर्पित की जाती है. सभी कार्यों में तुलसी का पत्ता अनिवार्य माना गया है. प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना अनिवार्य माना गया है. तुलसी घर-आँगन के वातावरण को सुखमय तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाती है.तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना गया है। तुलसी की नियमित पूजा से हमें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।

तुलसी शालिग्राम विवाह कथा

प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, ‘जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।’ यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।

एक अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, ‘हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।’ बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।

कथा विस्तार

एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी.जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा – स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी, जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी,उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? उन्होंने पूँछा आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई,उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गये सबी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्राथना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा.तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे.और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है.देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है|

कथा – २

ऐसा माना जाता है कि देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह की नींद के बाद जागते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से प्रचलित है कि जब विष्णु भगवान ने शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उस विशेष परिश्रम के कारण उस दिन सो गए थे, उसके बाद वह कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे थे, इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष विधान है।इस संबंध में एक कथा प्रचलित है कि शंखासुर बहुत पराक्रमी दैत्य था इस वजह से लंबे समय तक भगवान विष्णु का युद्ध उससे चलता रहा। अंतत: घमासन युद्ध के बाद भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। इस युद्ध से भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर लौटकर सो गए। वे वहां चार महिनों तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है।

कथा – ३

एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मी जी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान, अब आप दिन रात जागते हैं। लेकिन, एक बार सोते हैं,तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं। तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा। लक्ष्मी जी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा, तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता। इसलिए आज से मैं हर वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करुंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी।यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करुंगा।

तुलसी विवाह व्रत कथा

प्राचीन ग्रंथों में तुलसी विवाह व्रत की अनेक कथाएं दी हुई हैं. उन कथाओं में से एक कथा निम्न है. इस कथा के अनुसार एक कुटुम्ब में ननद तथा भाभी साथ रहती थी. ननद का विवाह अभी नहीं हुआ था. वह तुलसी के पौधे की बहुत सेवा करती थी. लेकिन उसकी भाभी को यह सब बिलकुल भी पसन्द नहीं था. जब कभी उसकी भाभी को अत्यधिक क्रोध आता तब वह उसे ताना देते हुए कहती कि जब तुम्हारा विवाह होगा तो मैं तुलसी ही बारातियों को खाने को दूंगी और तुम्हारे दहेज में भी तुलसी ही दूंगी. कुछ समय बीत जाने पर ननद का विवाह पक्का हुआ. विवाह के दिन भाभी ने अपनी कथनी अनुसार बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ दिया और खाने के लिए कहा. तुलसी की कृपा से वह फूटा हुआ गमला अनेकों स्वादिष्ट पकवानों में बदल गया. भाभी ने गहनों के नाम पर तुलसी की मंजरी से बने गहने पहना दिए. वह सब भी सुन्दर सोने – जवाहरात में बदल गए. भाभी ने वस्त्रों के स्थान पर तुलसी का जनेऊ रख दिया. वह रेशमी तथा सुन्दर वस्त्रों में बदल गया. ननद की ससुराल में उसके दहेज की बहुत प्रशंसा की गई. यह बात भाभी के कानों तक भी पहुंची. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. उसे अब तुलसी माता की पूजा का महत्व समझ आया. भाभी की एक लड़की थी. वह अपनी लड़की से कहने लगी कि तुम भी तुलसी की सेवा किया करो. तुम्हें भी बुआ की तरह फल मिलेगा. वह जबर्दस्ती अपनी लड़की से सेवा करने को कहती लेकिन लड़की का मन तुलसी सेवा में नहीं लगता था. लड़की के बडी़ होने पर उसके विवाह का समय आता है. तब भाभी सोचती है कि जैसा व्यवहार मैने अपनी ननद के साथ किया था वैसा ही मैं अपनी लड़की के साथ भी करती हूं तो यह भी गहनों से लद जाएगी और बारातियों को खाने में पकवान मिलेंगें. ससुराल में इसे भी बहुत इज्जत मिलेगी. यह सोचकर वह बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ देती है. लेकिन इस बार गमले की मिट्टी, मिट्टी ही रहती है. मंजरी तथा पत्ते भी अपने रुप में ही रहते हैं. जनेऊ भी अपना रुप नही बदलता है. सभी लोगों तथा बारातियों द्वारा भाभी की बुराई की जाती है. लड़की के ससुराल वाले भी लड़की की बुराई करते हैं. भाभी कभी ननद को नहीं बुलाती थी. भाई ने सोचा मैं बहन से मिलकर आता हूँ. उसने अपनी पत्नी से कहा और कुछ उपहार बहन के पास ले जाने की बात कही. भाभी ने थैले में ज्वार भरकर कहा कि और कुछ नहीं है तुम यही ले जाओ. वह दुखी मन से बहन के पास चल दिया. वह सोचता रहा कि कोई भाई अपने बहन के घर जुवार कैसे ले जा सकता है. यह सोचकर वह एक गौशला के पास रुका और जुवार का थैला गाय के सामने पलट दिया. तभी गाय पालने वाले ने कहा कि आप गाय के सामने हीरे-मोती तथा सोना क्यों डाल रहे हो. भाई ने सारी बात उसे बताई और धन लेकर खुशी से अपनी बहन के घर की ओर चल दिया. दोनों बहन-भाई एक-दूसरे को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

अस्थमा और थाइराइड जैसी 7 बीमारियों को जड़ से खत्म करता है सिंघाड़ा

सर्दी का मौसम आ गया है व इसी मौसम में सिंघाड़े में बहुत ज्यादा आते है जिसका खाने में एक अलग स्वाद है। सिंघाड़ा यानि वाटर चेस्टनट जो स्वास्थ्य के लिए बहुत गुणकारी है। विटामिन ए, साइट्रिक एसिड, फॉस्फोरस, प्रोटीन निकोटीनिक एसिड, विटामिन सी, मैंगनीज कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा, फाइबर, कैल्शियम, एट, आयरन, पोटेशियम, सोडियम, आयोडीन, मैग्नीशियम इसमें भरपूर मात्रा में होते है।

कई पोषक तत्व स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियों को दूर करते हैं। अस्थमा- सिंघाड़ा दमा रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है। इस फल की नियमित सेवन करने से सांस संबंधी समस्या से राहत मिलती है। थायराइड- सिंघाडा भी आयोडीन की कमी को कम करता है। यह गले की बीमारियों और थायराइड ग्रंथि को राहत देता है।

दर्द व सूजन से आराम – शरीर में किसी भी जगह पर दर्द या सूजन होने पर सिंघाड़े का लेप बनाकर लगा सकते हैं। बवासीर- सिंघड़ा बवासीर की कठिनाई में सेवन किया जाना चाहिए। बहुत जल्दी राहत मिलती है। ब्लड प्यूरीफायर – सिंघाड़ा ब्लड प्यूरिफायर का कार्य करता है। इसके गुण रक्त को साफ करते हैं और त्वचा को निखारता हैं। महिला सेहत के लिए रामबाण – स्त्रियों की स्वास्थ्य के लिए भी सिंघाडा बहुत अच्छा है। पीरियड्स, प्रेग्नेंसी,यूरिन प्रॉब्लम आदि में सिंघाड़ा बहुत लाभकारी है। इसका सेवन करने से मां व बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं।

दीपावली पर लक्ष्मी कृपा हेतु सरल उपाय

दीपावली के पांच पर्व होते हैं धनतेरस, चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, यम दितिया । इन पांचों दिन दीपक (चार छोटे और एक बड़ा) जरूर जलाएं। दीपक रखने से पहले उनका आसन बिछाएं फिर खील, चावल कि ऊपर दीपक रखें। इससे घर में धन की सदा आमद बनी रहेगी। 

 दीपावली के दिन प्रातः काल किसी भी लक्ष्मी मंदिर में जाकर माता लक्ष्मी को वस्त्र या चुनरी अर्पण करें और सुगन्धित गुलाब की अगरबत्ती जलाएं, इससे भाग्य चमकता है, धन का आगमन होता है, घर में सुख-समृद्धि और प्रसन्नता आती है । 

 दीपावली के दिन प्रातः पूजा के समय पीतल या तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें थोड़ी हल्दी घोल कर उसे पूजा में रखे ,पूजा के उपरांत इस जल को पीले फूल से पूरे घर में थोड़ा थोड़ा छिड़क दें और बचा हुआ जल तुलसी या केले के पौधे में चड़ा दें अब इस क्रिया को नित्य पूजा के बाद किया करें घर पर माँ लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहेगी 

 दीपावली के दिन रात्रि में घर के प्रत्येक कमरे और मुख्य द्वार में गेंहू की ढेरी बना कर उसके ऊपर शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए जो रात भर जलता रहे .इससे रात्रि में माँ लक्ष्मी का घर में प्रवेश होता है , यह उपाय बहुत ही कारगर माना जाता है । 

 दीपावली पर व्यापार लक्ष्मी को प्रसन्न करके धन लाभ के लिए यह एक सिद्ध प्रयोग है। दीपावली की रात्रि को कपूर जला कर उसमे शुद्ध रोली+नागकेसर को डाल दें , फिर जो राख प्राप्त होगी उसकी पुडिया बनाकर किसी लाल रुमाल या कपडे में बांधकर उसे तिजोरी/धन स्थान में रखने से व्यापर में सफलता मिलती है ,आय के नवीन स्रोत्र खुल जाते है । इस पर रोज धूप/अगरबत्ती दिखलाते हुए माँ लक्ष्मी से प्रार्थना करें । 

 दीपावली पर एक चांदी की अथवा किसी भी अन्य धातु की एक छोटी-सी डिबिया लें। इस डिबिया को नागकेशर और शहद से पूरी तरह से भरकर बंद कर दें। दीपावली  की रात्रि मे इसे भी पूजा में रखे फिर अगले दिन इसे अपनी तिजोरी इन रख दें। यह धन प्राप्ति का बहुत ही चमत्कारी प्रयोग है। 

दीपावली को संध्या के समय हाथ में एक सुपारी और ताम्बें का सिक्का लेकर पीपल के पेड़ पर जाएँ उनको प्रणाम करके अपनी इच्छा बोलिए फिर सुपारी और ताम्बें का सिक्का अर्पित करके शीश निवा कर घर आ जाएँ । अगले दिन सुबह उसी पीपल का पत्ता लाकर उसे धोकर तिलक लगाकर अपनी गद्दी के नीचे रखेंगे तो व्यापर में किसी भी किस्म की बाधाएं नहीं आएँगी । 

 दीपावली के दिन रात्रि को काले तिल परिवार के सभी सदस्यों के सर से सात बार उसार कर उसे घर के उत्तर दिशा में फेंक दें तो धन हानि बंद हो जाती है । 

 दीपावली की रात्रि में माँ लक्ष्मी पूजन के पश्चात घर के सभी कमरों घर के कोने कोने में शंख और डमरुं बजाना चाहिए ऐसा करने से अलक्ष्मी/दरिद्रता घर से बाहर निकलती है और माँ लक्ष्मी का घर में प्रवेश होता है । 

 अगर लाख प्रयास के बाद भी कार्यो में संतोषजनक सफलता नहीं मिल पा रही है , धन का आभाव लगा रहता है तो दीपावली की शाम को माँ लक्ष्मी की पूजा के समय लक्ष्मीजी पर  चने की दाल चढ़ा दें और माँ से सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। फिर अगले दिन सुबह उस दाल की खिचड़ी बना कर ग़रीबों में बाँटे । यह बहुत ही अचूक उपाय है इसे पूर्ण श्रद्धा से और बिलकुल चुपचाप करें, अवश्य ही घर में धन की कोई भी कमी नहीं रहेगी । 

राहु ग्रह-ठंडी हवा या आँधी जानिए विस्तार से

राहु ग्रह न होकर ग्रह की छाया है, हमारी धरती की छाया या धरती पर पड़ने वाली छाया। छाया का हमारे जीवन में बहुत असर होता है। 

कहते हैं कि रोज पीपल की छाया में सोने वाले को किसी भी प्रकार का रोग नहीं होता लेकिन यदि बबूल की छाया में सोते रहें तो दमा या चर्म रोग हो सकता है। इसी तरह ग्रहों की छाया का हमारे जीवन में असर होता है। 

राहु ग्रह हमारी बुद्धि का कारण है, लेकिन जो ज्ञान हमारी बुद्धि के बावजूद पैदा होता है उसका कारण राहु है। लाल किताब के अनुसार कुंडली में राहु के दोषपूर्ण या खराब होने की स्थिति के बारे में विस्तार से बताया गया है।

कैसे होता राहु खराब? : 

– गुरु या धर्म का अपमान करना। 

– काल्पनिक बातों में रुचि लेना। 

– तांत्रिक कर्म करना या गड़े धन की इच्छा रखना। 

– शराब पीना और पराई स्त्री से संबंध रखना। 

– झूठ बोलना और धोखा देना। 

– किचन छोड़कर अन्य जगह भोजन करना। 

– कटु वचन बोलते रहना। 

– ब्याज का धंधा करना। 

– निरंतर तामसिक भोजन करते रहना। 

कैसे पहचानें कि राहु खराब है,

राहु खराब होने के निशानियां : 

– ससुर, साले या साली से झगड़ा हो जाएगा। 

– सोचने की ताकत कम हो जाएगी। 

– जीवन में डर और शत्रु बढ़ जाएंगे। 

– स्वयं को लेकर गलतफहमी रहेगी। 

– आपसी तालमेल में कमी होगी। 

– बात-बात पर आपा खो देंगे। 

– वाहन दुर्घटना, पुलिस केस या पत्नी से झगड़ा। 

– आर्थिक नुकसान और मानसिक तनाव। 

– मक्कार, नीच, चालबाज और जालिम व्यक्ति होगा। 

– व्यक्ति बेईमान या धोखेबाज होगा। 

– ऐसे व्यक्ति की तरक्की की शर्त नहीं। 

– राहु का खराब होना अर्थात दिमाग की खराबियां होंगी। 

– व्यर्थ के दुश्मन पैदा होंगे, सिर में चोट लग सकती है। 

– व्यक्ति मद्यपान या संभोग में ज्यादा रत रह सकता है। 

– गैरजिम्मेदारी और लापरवाही राहु के खराब होने की निशानी है। 

राहु शुभ है तो : 

व्यक्ति दौलतमंद होगा। कल्पना शक्ति तेज होगी। रहस्यमय या धार्मिक बातों में रुचि लेगा। राहु के अच्छा होने से व्यक्ति में श्रेष्ठ साहित्यकार, दार्शनिक, वैज्ञानिक या फिर रहस्यमय विद्याओं के गुणों का विकास होता है। इसका दूसरा पक्ष यह कि इसके अच्छा होने से राजयोग भी फलित हो सकता है। आमतौर पर पुलिस या प्रशासन में इसके लोग ज्यादा होते हैं। 

जानिए कौन-सी बीमारी देता है राहु…

राहु की बीमारी : 

– गैस प्रॉब्लम। 

– बाल झड़ना 

– उदर रोग। 

– बवासीर। 

– पागलपन। 

-राजयक्ष्मा रोग। 

– निरंतर मानसिक तनाव बना रहेगा। 

– नाखून अपने आप ही टूटने लगते हैं। 

– मस्तिष्क में पीड़ा और दर्द बना रहता है। 

-राहु व्यक्ति को पागलखाने, दवाखाने या जेलखाने भेज सकता है। 

-राहु अचानक से भी कोई बड़ी बीमारी पैदा कर देता है और व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। 

राहु को सुधारने के तरीके : 

-सरस्वती की पूजा करें।शिक्षा का दान दें 

-बजरंग बाण या हनुमान चालीसा का पाठ प्रतिदिन करें। 

-ससुराल पक्ष से अच्छे संबंध रखें। 

-सिर में चोटी वाले स्थान पर बाल बांधकर रखें। 

-तिल, जौ किसी सुनसान स्थान पर दबाएँ 

-जौ को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएं। 

-कोयले को पानी में बहाएं। 

-मूली दान में दें। 

-मेहतर को शराब, तंबाकू दान में दें। 

-सोते समय सिर के पास किसी पत्र में जल भरकर रखें और सुबह किसी पेड़ में डाल दें।

नोट : इनमें से कुछ उपाय विपरीत फल देने वाले भी हो सकते हैं। कुंडली की पूरी जांच किए बगैर उपाय नहीं करना चाहिए। 

पितृपक्ष 2018: किसका श्राद्ध किस दिन करें

हिन्दू धर्म में श्राद्ध कर्म को विशेष महत्व दिया गया है। यह कर्म मृत आत्मा एवं पितृपक्ष की शांति के लिए किया जाता है। प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों को तृप्त करने का विधान किया जाता है।पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है पितृपक्ष। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पितृों को तृप्ति मिलती है। वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इस साल श्राद्ध 25 सितंबर से शुरू हो रहे हैं।

श्राद्ध कर्म 

श्राद्ध करने के अपने नियम होते हैं। श्राद्ध पक्ष हिंदी कैलेंडर के अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आता है। जिस तिथि में जिस परिजन की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है।यह काल कुल 15 दिनों का होता है जिसमें शास्त्रानुसार श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। किसी कारणवश यदि किसी परिवार जन का मृत्यु के समय में श्राद्ध नहीं किया गया हो तो 15 दिनों का यह समय उस आत्मा की शांति के लिए सही होता है। श्राद्ध कर्म पूर्ण विश्वास, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिए। पितृों तक केवल हमारा दान ही नहीं बल्कि हमारे भाव भी पहुंचते हैं।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा श्राद्ध

इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्तम माना गया है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो तो इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

पंचमी श्राद्ध

इस तिथि को उन परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जो या तो काफी कम आयु में परलोक सिधार गए हों साथ ही वे मृत्यु के समय अविवाहित भी रहे हों।

नवमी श्राद्ध

शास्त्रानुसार श्राद्ध की नवमी तिथि महत्वपूर्ण मानी गई है। इसे मातृनवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, ऐसी महिलाओं का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है।

एकादशी व द्वादशी श्राद्ध

श्राद्ध की इस तिथि का काफी महत्व है, लेकिन यह हर किसी के नसीब में नहीं होती। क्योंकि इस तिथि को परिवार के उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।इसके अतिरिक्त जिनकी इस तिथि में मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध इस तिथि में होगा।

चतुर्दशी श्राद्ध

श्राद्ध की इस तिथि को परिवार के उन परिजनों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो जैसे कि दुर्घटना से, हत्या, आत्महत्या, शस्त्र के द्वारा आदि।

सर्वपितृमोक्ष अमावस्या

क्योंकि पूरे श्राद्ध काल में यदि पितरों का श्राद्ध चूक जाए या पितरों की तिथि याद न हो तब इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है।जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। सांप काटने से मृत्यु और बीमारी में या अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जाता है। जिनकी आग से मृत्यु हुई हो या जिनका अंतिम संस्कार न किया जा सका हो, उनका श्राद्ध भी अमावस्या को करते हैं।

2018 में श्राद्ध की तिथियां

25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध

26 सितंबर 2018 द्वितीय श्राद्ध

27 सितंबर 2018 तृतिया श्राद्ध

28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध

29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध

30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध

1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध

2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध

3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध

4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध

5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध

6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध

7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध

8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या

एक साल में इतने अवसरों पर कर सकते हैं श्राद्ध

शास्त्रों के अनुसार, अपने पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए एक साल में 96 अवसर मिलते हैं। इनमें साल के बारह महीनों की 12 अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है। साल की 14 मन्वादि तिथियां, 12 व्यतिपात योग, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग और 15 महालय शामिल हैं। इनमें पितृपक्ष का श्राद्ध कर्म उत्तम माना गया है।

जीवन की बड़ी-बड़ी परेशानियों का छोटा सा समाधान

पिताजी कोई किताब पढने में व्यस्त थे , पर उनका बेटा बार-बार आता और उल्टे-सीधे सवाल पूछ कर उन्हें डिस्टर्ब कर देता ।पिता के समझाने और डांटने का भी उस पर कोई असर नहीं पड़ता।

तब उन्होंने सोचा कि अगर बच्चे को किसी और काम में उलझा दिया जाए तो बात बन सकती है। उन्होंने पास ही पड़ी एक पुरानी किताब उठाई और उसके पन्ने पलटने लगे। तभी उन्हें विश्व मानचित्र छपा दिखा , उन्होंने तेजी से वो पेज फाड़ा और बच्चे को बुलाया – ” देखो ये वर्ल्ड मैप है , अब मैं इसे कई पार्ट्स में कट कर देता हूँ , तुम्हे इन टुकड़ों को फिर से जोड़ कर वर्ल्ड मैप तैयार करना होगा।”
और ऐसा कहते हुए उन्होंने ये काम बेटे को दे दिया।
बेटा तुरंत मैप बनाने में लग गया और पिता यह सोच कर खुश होने लगे की अब वो आराम से दो-तीन घंटे किताब पढ़ सकेंगे ।
लेकिन ये क्या, अभी पांच मिनट ही बीते थे कि बेटा दौड़ता हुआ आया और बोला , ” ये देखिये पिताजी मैंने मैप तैयार कर लिया है .”
पिता ने आश्चर्य से देखा , मैप बिलकुल सही था, – ” तुमने इतनी जल्दी मैप कैसे जोड़ दिया , ये तो बहुत मुश्किल काम था ?”
” कहाँ पापा, ये तो बिलकुल आसान था , आपने जो पेज दिया था उसके पिछले हिस्से में एक कार्टून बना था , मैंने बस वो कार्टून कम्प्लीट कर दिया और मैप अपने आप ही तैयार हो गया.”, और ऐसा कहते हुए वो बाहर खेलने के लिए भाग गया और पिताजी सोचते रह गए .
Friends , कई बार life की problems भी ऐसी ही होती हैं, सामने से देखने पर वो बड़ी भारी-भरकम लगती हैं , मानो उनसे पार पान असंभव ही हो , लेकिन जब हम उनका दूसरा पहलु देखते हैं तो वही problems आसान बन जाती हैं, इसलिए जब कभी आपके सामने कोई समस्या आये तो उसे सिर्फ एक नजरिये से देखने की बजाये अलग-अलग दृष्टिकोण से देखिये , क्या पता वो बिलकुल आसान बन जाएं !

सृष्टि का अटूट नियम (circle of life)

एक बिजनेसमैन सुबह जल्दी में अपने घर से बाहर आकर अपनी कार का दरवाजा खोलता है। तभी पास बैठे एक आवारा कुत्ते पर उसका पैर पड़ जाता है, कुत्ता उसपर झपटता है और उसके पैर में दाँत गड़ा देता है।

गुस्से में वो 10-12 पत्थर उठाकर कुत्ते को मारता है लेकिन एक पत्थर भी कुत्ते को नहीं लगता और कुत्ता भाग जाता है।

अपने ऑफिस में पहुँचकर वो ऑफिस के सभी पदाधिकारियों की मीटिंग बुलाता है और कुत्ते का गुस्सा उनपर उतारता है।

अपने बॉस का जबरन का गुस्सा झेलकर अधिकारी भी परेशान हो जाते हैं।सारे अधिकारी अपना गुस्सा अपने से नीचे स्तर के कर्मचारियों पर उतारते हैं और इस प्रकार गुस्से का ये दमनचक्र सबसे निचले स्तर के कर्मचारी ऑफिस बॉय और चपरासी तक पहुँचता है।

अब चपरासी के नीचे तो कोई नहीं। इसलिए अपना गुस्सा वो दारू पर उतरता है और घर जाता है।

बीवी दरवाजा खोलती है और शिकायती लहजे में बोलती है—” इतनी देर से आए ?? चपरासी, बीवी को एक झापड़ लगा देता है और बोलता है—” मैं ऑफिस में कंचे खेल रहा था क्या ?? काम था मुझे ऑफिस में, अब भेजा मत खा और खाना लगा। ”

अब बीवी भुनभुनाती है कि, बिना कारण चाँटा खाया।वो अपना गुस्सा बच्चे पर उतारती है और उसकी पिटाई कर देती है।

अब बच्चा क्या करे ??
वो गुस्से में घर से बाहर चला जाता है।
और…….

और……..

और………

बच्चा, एक पत्थर उठाता है और सामने से गुजरते एक कुत्ते को मारता है, पत्थर लगते ही कुत्ता बिलबिलाता, काऊँ काऊँ करता भागता है।

मित्रों, ये सुबह वाला ही कुत्ता था !!!
उसे पत्थर लगना ही था, सिर्फ बिजनेसमैन वाला नहीं लगा, बच्चे वाला लगा। उसका सर्कल कम्पलीट हुआ।
इसलिए आप कभी भी चिंता ना करें।
अगर किसी ने आपको परेशान किया है तो, उसे पत्थर लगेगा……..अवश्य लगेगा……बराबर लगेगा।।

इस कारण आप निश्चिन्त रहो।

आपका बुरा करने वाले का,
बुरा अवश्य ही होगा।

ये सृष्टि का नियम है…..