Vastu

वास्तु शास्त्र क्या है

वास्तु” शब्द का शाब्दिक अर्थ विद्यमान यानि निवास करना होता है। निवास करने वाली जगह को बनाने और संवारने के विज्ञान को ही वास्तु शास्त्र कहा गया है। वास्तु शास्त्र के सिद्धांत आठों दिशाओं तथा पंच महाभूतों आकाश, भू, वायु, जल, अग्नि आदि के प्रवाह आदि को ध्यान में रखने बनाए गए हैं। इन सबके मेल से एक ऐसी प्रकिया खड़ी की जाती है जो मनुष्य के रहने के स्थान को सुखमय बनाने का कार्य करती है। उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है।

वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा

वास्तुशास्त्र में यह दिशा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सूर्य के उदय होने की दिशा है। इस दिशा के स्वामी देवता इन्द्र हैं। भवन बनाते समय इस दिशा को सबसे अधिक खुला रखना चाहिए. यह सुख और समृद्धि कारक होता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर भवन में रहने वाले लोग बीमार रहते हैं। परेशानी और चिन्ता बनी रहती हैं। उन्नति के मार्ग मे भी बाधा आति है।

वास्तुशास्त्र में आग्नेय दिशा

पूर्व और दक्षिण के मध्य की दिशा को आग्नेश दिशा कहते हैं। अग्निदेव इस दिशा के स्वामी हैं। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर का वातावरण अशांत और तनावपूर्ण रहता है। धन की हानि होती है। मानसिक परेशानी और चिन्ता बनी रहती है। यह दिशा शुभ होने पर भवन में रहने वाले उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं। इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है। अग्नि से सम्बन्धित सभी कार्य के लिए यह दिशा शुभ होता है। उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं। इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है। अग्नि से सम्बन्धित सभी कार्य के लिए यह दिशा शुभ होता है।

वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा

इस दिशा के स्वामी यम देव हैं। यह दिशा वास्तुशास्त्र में सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है। इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए। दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजी रोजगार में परेशानी का सामना करना होता है। गृहस्वामी के निवास के लिए यह दिशा सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा

दक्षिण और पश्चिक के मध्य की दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा का वास्तुदोष दुर्घटना, रोग एवं मानसिक अशांति देता है। यह आचरण एवं व्यवहार को भी दूषित करता है। भवन निर्माण करते समय इस दिशा को भारी रखना चाहिए.इस दिशा का स्वामी राक्षस है। यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर भवन में रहने वाला व्यक्ति सेहतमंद रहता है एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है।

वास्तुशास्त्र में इशान दिशा

इशान दिशा के स्वमी शिव होते है, इस दिशा मे कभी भी शोचालय कभी नही बनना चाहिये।नलकुप, कुआ आदि इस दिशा मे बनाने से जल प्रचुर मात्रा मे प्राप्त होत है।

क्या है वास्तु दोष

साधारण भाषा में समझा जाए तो जब मनुष्य के रहने के स्थान पर किसी तत्व में कोई कमी आती है तो उसका जीवन कष्टकारी हो जाता है। वास्तु शास्त्र यह सुनिश्चित करता है कि भवन के आसपास का माहौल पंच-तत्वों और दसों दिशाओं के अनुकूल हो।

वास्तु टिप्स

1. घर में हवा और प्राकृतिक रोशनी की व्यवस्था होनी चाहिए।

2. शयनकक्ष की व्यवस्था इस तरह होनी चाहिए कि सोते समय पांव उत्तर और सर दक्षिण दिशा में हो।

3. टॉयलेट हमेशा पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए।

4. घर में पूजा स्थल बनाना हो तो वह उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए। घर में पूजा स्थल तो होना चाहिए लेकिन शिवालय नहीं।

5. घर के ठीक सामने कोई पेड़, नल या पानी की टंकी नहीं होनी चाहिए।

6. मकान की छत पर बेकार या टूटे-फूटे समान को न रखें। घर की छत को हमेशा साफ रखें।

7. घर के सामने अगर कोई फलदार पेड़ जैसे केला, पपीता या अनार आदि है तो उसे कभी सूखने ना दें, घर के सामने छोटे फूलदार पौधे लगाना शुभ होता है।

8. पढ़ाई के कमरे में देवी सरस्वती की तस्वीर या मूर्ति लगाई जा सकती है। बच्चों के कमरे की दीवारों का रंग हल्का होना चाहिए।

9. घर में फ्रिज दक्षिण- पूर्व दिशा में रखना शुभ होता है।

10. शयन कक्ष में दर्पण नहीं लगाना चाहिए, यह संबंधों में दरार पैदा कर सकता है। शयनकक्ष या बेडरूम में लकड़ी के बने पलंग रखने चाहिए।

11. वास्तु के अनुसार सोते समय जातक के पैर दरवाजे की तरफ नहीं होने चाहिए।

12. कभी भी बेडरूम में मंदिर नहीं लगाना चाहिए।

13. झूठे या गंदे बर्तन वॉश बेसिन में रात को नहीं छोड़ने चाहिए।

14. घर का मध्य भाग ब्रह्मस्थान कहलाता है। इसे खाली और हमेशा स्वच्छ रखना चाहिए।

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