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रत्न क्या है

रत्न प्रकृति प्रदत्त एक मूल्यवान निधि है। मनुष्य अनादिकाल से ही रत्नों की तरफ आकर्षित रहा है, वर्तमान में भी है तथा भविष्य में भी रहेगा। रत्न सुवासित, चित्ताकर्षक, चिरस्थायीव दुर्लभ होने तथा अपने अद्भुत प्रभाव के कारण भी मनुष्य को अपने मोहपाश में बाँधे हुए हैं। रत्न आभूषणों के रूप में शरीर की शोभा तो बढ़ाते ही हैं, साथ ही अपनी दैवीय शक्ति के प्रभाव के कारण रोगों का निवारण भी करते हैं। रत्नों में चिरस्थायित्व का ऐसा गुण है कि ये ऋतुओं के परिवर्तन के कारण तथा समय-समय पर प्रकृति के भीषण उथल-पुथल से तहस-नहस होने के कारण भी प्रभावित नहीं होते।रत्नों को हम मुख्यतः तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं- प्राणिज रत्न- प्राणिज रत्न वे हैं, जो कि जीव-जन्तुओं के शरीर से प्राप्त किए जाते हैं। जैसे- गजमुक्ता, मूँगा आदि।
वानस्पतिक रत्न-वानस्पतिक रत्न वे हैं, जो कि वनस्पतियों की विशेष प्रकार की क्रियाशीलता के कारण उत्पन्न होते हैं। जैसे- वंशलोचन, तृणमणि, जेट आदि।
खनिज रत्न-वे रत्न जो प्राकृतिक रचनाओं अर्थात चट्टान, भूगर्भ, समुद्र आदि से प्राप्त किए जाते हैं।

रत्नों का प्रभाव


रत्नों में चमत्कारी शक्ति है जो ग्रहों के विपरीत प्रभाव को कम करके ग्रह के बल को बढ़ते है। रत्नों में चुम्बकीय शक्ति होती है जिससे वह ग्रहों की रश्मियों एवं उर्जा को अवशोषित कर लेती है जिस ग्रह विशेष का रत्न धारण करते हैं उस ग्रह की पीड़ा से बचाव होता है और सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता।
रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है।रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमन पर पहुंचा सकता है तो किसी को आसमान से ज़मीन पर लाने की क्षमता भी रखता है।रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकर से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए।
ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए।रत्न धारण करते समय ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा का भी ख्याल रखना चाहिए।रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है।अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलम्ब होता है।

कौन सा रत्न धारण करें


लग्न स्थान को शरीर कहा गया है।कुण्डली में इस स्थान का अत्यधिक महत्व है।इसी भाव से सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विचार किया जाता है।लग्न स्थान और लग्नेश की स्थिति के अनुसार जीवन में सुख दु:ख एवं अन्य ग्रहों का प्रभाव भी देखा जाता है।कुण्डली में षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव में लग्नेश का होना अशुभ प्रभाव देता है।इन भावों में लग्नेश की उपस्थिति होने से लग्न कमजोर होता है।लग्नेश के नीच प्रभाव को कम करने के लिए इसका रत्न धारण करना चाहिए।जीवन में भाग्य का बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।भाग्य कमज़ोर होने पर जीवन में कदम कदम पर असफलताओं का मुंह देखना पड़ता है।भाग्य मंदा होने पर कर्म का फल भी संतोष जनक नहीं मिल पाता है।परेशानियां और कठिनाईयां सिर उठाए खड़ी रहती है।मुश्किल समय में अपने भी पराए हो जाते हैं।भाग्य का घर जन्मपत्री में नवम भाव होता है. भाग्य भाव और भाग्येश अशुभ स्थिति में होने पर नवमेश से सम्बन्धित रत्न धारण करना चाहिए।भाग्य को बलवान बनाने हेतु भाग्येश के साथ लग्नेश का रत्न धारण करना अत्यंत लाभप्रद होता है।

रत्न और सावधानी


रत्न धारण करते समय कुछ सावधानियों का ख्याल रखना आवश्यक होता है।जिस ग्रह की दशा अन्तर्दशा के समय अशुभ प्रभाव मिल रहा हो उस ग्रह से सम्बन्धित रत्न पहनना शुभ फलदायी नहीं होता है।इस स्थिति में इस ग्रह के मित्र ग्रह का रत्न एवं लग्नेश का रत्न धारण करना लाभप्रद होता है।रत्न की शुद्धता की जांच करवाकर ही धारण करना चाहिए धब्बेदार और दरारों वाले रत्न भी शुभफलदायी नहीं होते हैं।

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