पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. हिंदू धर्म में इस माह का काफी महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि अगर घर के पितृ नाराज हो जाएं तो घर की खुशहाली खत्म हो जाती है. इसीलिए पितृ पक्ष को मनाने और उनकी शांति के लिए इस माह में श्राद्ध किया जाता है. श्राद्ध माह में पिंड दान और तर्पण कर पितृ की शांति की कामना की जाती है.
2019 में पितृ पक्ष कब से हो रहे हैं शुरू-
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं. पितृ पक्ष की शुरूआत हर साल पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अमावस्या पर ये खत्म होते हैं. पितृ पक्ष इस बार 15 दिनों के होंगे. इस वर्ष 2019 में पितृ पक्ष 13 सितंबर से शुरू होकर 28 सितंबर को खत्म होंगे. पितृ पक्ष में नए कपड़ों व आयोजनों की मनाही होती हैं. हिंदू धर्म में इन 15 दिन किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
पितृ पक्ष का महत्व –
पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिये, पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं, यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजूर्गों का सम्मान और मृत्योपरांत श्राद्ध कर्म किये जाते हैं, इसके पिछे यह मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाये तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्यु लोक में भटकती रहती है, पितृ पक्ष को मनाने का ज्योतिषीय कारण भी है, ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है, जब जातक सफलता के बिल्कुल नज़दीक पंहुचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो ज्योतिषाचार्य पितृदोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावनाएं बताते हैं, इसलिये पितृदोष से मुक्ति के लिये भी पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है, पितृ पक्ष के 15 दिन काफी महत्वपूर्ण होते हैं. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है. पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इन दिनों में पूजा व पिंडदान किए जाते हैं. कहा जाता है कि अगर इस माह में श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले पूर्वजों को मुक्ति नहीं मिलती और वह नाराज हो जाते हैं. पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं।
किस दिन करना चाहिए पूर्वज़ों का श्राद्ध-
वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिये पिंड दान या श्राद्ध कर्म किये जा सकते हैं लेकिन पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना जाता है, पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वज़ों का श्राद्ध करें इसके लिये शास्त्र सम्मत विचार यह है कि जिस पूर्वज़, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिये कहा जाता है समय से पहले यानि जिन परिजनों की किसी दुर्घटना अथवा सुसाइड आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है, पिता के लिये अष्टमी और माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है।
पितृ को श्राद्ध देना क्यो जरूरी है-
मान्यता के अनुसार अगर पितृ गुस्सा हो जाए तो मनुष्य के जीवन मे अनेक समस्याया का सामना करना पड सकता है, पितृ जब अशांत हो तो उसके कारण धन हानि, परिजनो मे स्वास्थय मे गिरवट ओर संतान की बाबत मे समस्या का भी सामना करना पडता है, संतान – हीनता के मामलो मे ज्योतिष पितृ दोष को अवश्य देखते है, यह लोगो को पितृ के दौरान श्राद्ध जरूरी है।
पितृ के श्राद्ध मे क्या दिया जाता है-
पितृ श्राद्ध मे तेल, चावल, जौ आदि वस्तु को अधिक महत्व दिया जाता है ओर वेद पूराण मे यह बात का भी ज्रिक है कि श्राद्ध करने का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणो को है, श्राद्ध करने मेतिल और कुशा का सवाधिक महत्व होता है, श्राद्ध के दिन पितृ को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदाथॅ को पिड रूप मे अर्पित कराना चाहिए, श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, पपुत्र के साथ महिलाओं को भी होता है।
श्राद्ध मे पितृ के रूप मे कौओ का महत्व-
मान्यता के अनुसार श्राद्ध ग्रहन करने के लिए हमेशा पितृ कौए का रूप धारण कर वह तिथि पर दोपहर के समय हमारे घरकी छत आते हे अगर उन्हे श्राद्ध भोजन नही मिलता तो वो नाराज हो जाता है यह कारण श्राद्ध का पहेला भाग कौओ को दिया जाता है।
पितृ पक्ष 2019 श्राद्ध की तिथियां-
- 13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
- 14 सितंबर- प्रतिपदा
- 15 सितंबर- द्वितीया
- 17 सितंबर– तृतीया
- 18 सितंबर- चतुर्थी
- 19 सितंबर- पंचमी, महा भरणी
- 20 सितंबर- षष्ठी
- 21 सितंबर- सप्तमी
- 22 सितंबर- अष्टमी
- 23 सितंबर -नवमी
- 24 सितंबर – दशमी
- 25 सितंबर – एकादशी
- 26 सितंबर- द्वादशी,
- 27 सितंबर- त्रयोदशी
- 28 सितंबर-चतुर्दशी (सर्वपित्र अमावस्या)
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