पितृदोष की शांति के लिए पितृपक्ष सबसे उत्तम दिन माने गए हैं। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों से धूप के रूप में अन्न्-जल ग्रहण करने आते हैं और संतुष्ट होने पर अच्छे आशीर्वाद देकर जाते हैं। इसलिए पितृदोष की शांति के लिए कुछ विशेष उपाय इस दौरान किए जाना चाहिए।
- पितृपक्ष में पितरों के नाम से श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान अवश्य करें। यदि पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात है तो उसी तिथि पर श्राद्ध करें, अन्यथा सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है।
- पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा को पितरों के नाम से गरीबों, जरूरतमंदों को अन्न्, वस्त्र, जरूरत की वस्तुएं इत्यादि दान दें।
- पितृपक्ष में नियमित रूप से भागवत महापुराण कथा का पाठ करना पितृदोष शांत करने का सबसे बड़ा उपाय है। स्वयं नहीं पढ़ सकते तो कहीं सुनने जाएं।
- पीपल के पेड़ में पितरों का वास माना गया है। इसलिए पितृपक्ष में प्रतिदिन पीपल के पेड़ में मीठी कच्चा दूध जल मिलाकर अर्पित करें।
- पीपल के पेड़ में प्रतिदिन शाम के समय आटे के पांच दीपक जलाएं।
- पितरों के नाम से किसी वेदपाठी ब्राह्मण को भोजन करवाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा भेंट करें।
- पितृपक्ष में प्रतिदिन गायों को हरी घास खिलाएं।
- गाय को घी-गुड़ रखकर ताजी रोटी खिलाएं।
- पितृदोष निवारण के लिए महामृत्युंजय के मंत्र से शिवजी का अभिषेक करें।
- प्रतिदिन पितृ कवच का पाठ करने से पितृदोष की शांति होती है।
- पितृपक्ष में पितरों के नाम से फलदार, छायादार वृक्ष लगवाएं।
- भविष्य के लिए यह संकल्प करें कि घर के बुजुर्गों की सेवा करेंगे, घर की स्त्री, पत्नी, बेटी का अपमान नहीं करेंगे। वृक्षों को हानि नहीं पहुंचाएंगे।
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