जब एक स्त्री और पुरूष वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हें तब उनके कुछ सपने और ख्वाब होते हैं। कुण्डली में मौजूद ग्रह स्थिति कभी कभी ऐसी चाल चल जाते हैं कि पारिवारिक जीवन की सुख शांति खो जाती है।
पति पत्नी समझ भी नही पाते हैं कि उनके बीच कलह का कारण क्या है और ख्वाब टूट कर बिखरने लगते हैं।
वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुख पर गहों का काफी प्रभाव होता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम यानी केन्द्र स्थान विवाह और जीवनसाथी का घर होता है. इस घर पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर या तो विवाह विलम्ब से होता है या फिर विवाह के पश्चात वैवाहिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य की कमी रहती है. इसके अलावे भी ग्रहों के कुछ ऐसे योग हैं जो गृहस्थ जीवन में बाधा डालते हैं।
ज्योतिषशास्त्र कहता है जिस स्त्री या पुरूष की कुण्डली में सप्तम भाव का स्वामी पांचवें में अथवा नवम भाव में होता है उनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहता है. इस तरह की स्थिति जिनकी कुण्डली में होती है उनमें आपस में मतभेद बना रहता है जिससे वे एक दूसरे से दूर जा सकते हैं।जीवनसाथी को वियोग सहना पड़ सकता है. हो सकता है कि जीवनसाथी को तलाक देकर दूसरी शादी भी करले. इसी प्रकार सप्तम भाव का स्वामी अगर शत्रु नक्षत्र के साथ हो तो वैवाहिक जीवन में बाधक होता है.
जिनकी कुण्डली में ग्रह स्थिति कमज़ोर हो और मंगल एवं शुक्र एक साथ बैठे हों उनके वैवाहिक जीवन में अशांति और परेशानी बनी रहती है. ग्रहों के इस योग के कारण पति पत्नी में अनबन रहती है. ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कमज़ोर ग्रह स्थिति होने पर शुक्र की महादशा के दौरान पति पत्नी के बीच सामंजस्य का अभाव रहता है. केन्द्रभाव में मंगल, केतु अथवा उच्च का शुक्र बेमेल जोड़ी बनाता है. इस भाव में स्वराशि एवं उच्च के ग्रह होने पर भी मनोनुकल जीवनसाथी का मिलना कठिन होता है. शनि और राहु का सप्तम भाव होना भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योंकि दोनों ही पाप ग्रह दूसरे विवाह की संभावना पैदा करते हैं.
सप्तमेश अगर अष्टम या षष्टम भाव में हो तो यह पति पत्नी के मध्य मतभेद पैदा करता है. इस योग में पति पत्नी के बीच इस प्रकार की स्थिति बन सकती है कि वे एक दूसरे से अलग भी हो सकते हैं. यह योग विवाहेत्तर सम्बन्ध भी कायम कर सकता है अत: जिनकी कुण्डली में इस तरह का योग है उन्हें एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और समर्पण की भावना रखनी चाहिए। सप्तम भाव अथवा लग्न स्थान में एक से अधिक शुभ ग्रह हों या फिर इन भावों पर दो से अधिक शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह जीवनसाथी को पीड़ा देता है जिसके कारण वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है.
सप्तम भाव का स्वामी अगर कई ग्रहों के साथ किसी भाव में युति बनाता है अथवा इसके दूसरे और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह हों और सप्तम भाव पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है. चतुर्थ भाव में जिनके शुक्र होता है उनके वैवाहिक जीवन में भी सुख की कमी रहती है. कुण्डली में सप्तमेश अगर सप्तम भाव में या अस्त हो तो यह वैवाहिक जीवन के सुख में कमी लाता है.
4 Comments
Harshita tiwari
Posted at 04:56h,Jul 14, 2017
Guruji iska koi nadan nhi h
Ganesh Doiphode
Posted at 08:32h,Jun 20, 2017
I need advice
admin
Posted at 01:09h,Apr 15, 2017
Dear Manoj, Kindly send us message using contact form Regards, Team Acharya
Manoj kumar Sharma
Posted at 04:45h,Apr 10, 2017
I need advice
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