ज्योतिषशास्त्र में परिणाम की प्राप्ति होने का समय जानने के लिए जिन विधियों का प्रयोग किया जाता है उनमें से एक विधि है विंशोत्तरी दशा. विंशोत्तरी दशा का जनक महर्षि पाराशर को माना जाता है। पराशर मुनि द्वारा बनाई गयी विंशोत्तरी विधि चन्द्र नक्षत्र पर आधारित है। इस विधि से की गई भविष्यवाणी कामोवेश सटीक मानी जाती है, इसलिए ज्योतिषशास्त्री वर्षों से इस विधि पर भरोसा करके फलकथन करते आ रहे हैं। दक्षिण भारत में ज्योतिषी विशोत्तरी के बदले अष्टोत्तरी विधि का भी प्रयोग कर रहे हैं परंतु, विशोत्तरी पद्धति ज्यादा लोकप्रिय एवं मान्य है।
ग्रहों की महादशा व नक्षत्र क्रम से निम्न है।
ग्रह | महादशा वर्ष | नक्षत्र |
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सूर्य | 6 वर्ष | कृ्तिका, उतरा फाल्गुणी, उतराआषाढा |
चन्द्र | 10 वर्ष | रोहिणी, हस्त, श्रवण |
मंगल | 7 वर्ष | मृ्गशिरा, चित्रा, घनिष्ठा |
राहू | 18 वर्ष | आद्रा, स्वाती, शतभिषा |
गुरु | 16 वर्ष | पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व भाद्रपद |
शनि | 19 वर्ष | पुष्य, अनुराध, उतरा भाद्रपद |
बुध | 17 वर्ष | आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती |
केतु | 7 वर्ष | मघा, मूला, अश्विनी |
शुक्र | 20 वर्ष | पूर्वा फाल्गुणी, पूर्वा आषाढा, भरणी |
विंशोत्तरी दशा में फल निर्धारण