होलाष्टक क्या है?

 होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है. जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन. होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक रहता है. अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है. दूसरे शब्दों में हम भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है. इसी दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरू हो जाती है.

होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है. होलाष्टक प्रारंभ होते ही प्राचीन काल में होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती थी. साथ ही वहां पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता था . जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है.होलाष्टक एक दिन का पर्व ना होकर जबकि आठ दिन का पर्व है.

उग्र रहते हैं ग्रह

होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं. इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं. जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है.

जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए. मानव मस्तिष्क पूर्णिमा से 8 दिन पहले कहीं न कहीं क्षीण, दुखद, अवसाद पूर्ण, आशंकित और निर्बल हो जाता है. ये अष्ट ग्रह, दैनिक कार्यकलापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं. भारतीय मुहूर्त विज्ञान और ज्योतिष शास्त्रानुसार प्रत्येक कार्य शुभ मुहूर्तों का शोधन करके करना चाहिए. यदि कोई भी कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करता है. इस धर्म धुरी से भारतीय भूमि में प्रत्येक कार्य को सुसंस्कृत समय में किया जाता है, अर्थात्‌ ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो.

प्रत्येक कार्य की दृष्टि से उसके शुभ समय का निर्धारण किया गया है. जैसे गर्भाधान, विवाह, नामकरण, चूड़ाकरन, विद्यारंभ, गृह प्रवेश व निर्माण, गृह शांति, हवन यज्ञ कर्म आदि कार्यों का सही और उपयुक्त समय निश्चित किया गया है. इस प्रकार होलाष्टक को ज्योतिष की दृष्टि से अशुभ माना गया है जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण आदि शुभ कार्य वर्जित हैं.

इस वजह से इन आठ दिनों को माना जाता है अशुभ

मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद की अनन्य नारायण भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने होली से पहले के आठ दिनों में प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए थे. तभी से भक्ति पर प्रहार के इन आठ दिनों को हिंदू धर्म में अशुभ माना गया है.

इस वर्ष होलाष्टक दिनांक 23 फरवरी 2018 से प्रारंभ हो रहे हैं जो कि 1 मार्च 2018 को समाप्त होंगे. इस समय विशेष रूप से विवाह, नए भवन निर्माण व नए कार्यों को आरंभ नहीं करना चाहिए. ऐसा ज्योतिष शास्त्र का कथन है. अर्थात्‌ इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, अनेक पीड़ाओं की आशंका रहती है और विवाह आदि संबंध विच्छेद और कलह होते हैं.

धार्मिक ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दिनों में किए गए व्रत और किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है. इस दिन वस्त्र, अनाज और अपने इच्छानुसार धन का दान करना चाहिए.

 

 

 

ज्योतिष अनुसार कुछ दान जो वर्जित है

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी को दान में कुछ देना पुण्य का काम माना गया है। लेकिन ऐसी भी कुछ चीजें होती हैं जिनका दान देना आप पर ही भारी पड़ सकता है। इसके लिए यदि आपको अपने घर की बरकत को कायम रखना है तो आपको इन चीजों के बारे में भली-भांति ज्ञात होना चाहिए। इनका भले ही दिन में आप अपने किसी पड़ोसी आदि के मांगने पर दान करें, मगर शाम के समय इनको देने से साफ मना करें। दरअसल शास्त्रों के अनुसार शाम के समय ऐसा करने से ना केवल आपके घर की बरकत चली जाएगी, बल्कि आर्थिक स्थिति से जुड़ी किसी बड़ी समस्या का आपको सामना करना पड़ सकता है। चलिए जानें क्या हैं वह चीजें जिनका सूर्यास्त के समय दान निषेध बताया गया है।

प्याज-लहसुन देने से बचें
इनका संबंध केतु ग्रह से माना गया है। केतु को ऊपरी ताकतों का स्वामी ग्रह माना गया है। जादू-टोना भी इसी के अधीन आता है। इसलिए सूर्यास्त के समय प्याज-लहसुन देना धन के लिए अच्छा शगुन नहीं माना गया है।

संध्या के समय ना करें लक्ष्मी जी को विदा
धन का संबंध देवी लक्ष्मी से है। संध्या के समय लोग घर का मुख्य द्वार खोलकर रखते हैं, दरअसल ऐसा माना जाता है कि इससे घर में लक्ष्मी का आगमन होता है। ऐसे में धन किसी और को देना लक्ष्मी को विदा करना माना जाता है।

हल्दी को देने से होता गुरु कमजोर
लाल किताब में बताया गया है कि जिनका गुरु बलवान और शुभ है उन्हें गुरुवार को किसी को हल्दी नहीं देना चाहिए, विशेष तौर पर शाम के समय। इस दिन हल्दी देने से गुरु कमजोर होता है, जिससे धन वैभव में कमी आती है।

दूध देने से लक्ष्मी-नारायण जाते रूठ
दूध को चन्द्रमा और सूर्य दोनों से संबंधित माना जाता है। प्राचीन काल से दूध का संबंध लक्ष्मी और विष्णु से भी माना जाता रहा है। यही कारण है कि दिन-रात के संधि काल में इसे किसी को देना अच्छा नहीं माना जाता है। लोक मान्यता है कि इससे बरकत चली जाती है।

दही देने से सुख-समृद्धि हो जाती है कम
ज्योतिषशास्त्र में दही का संबंध शुक्र से माना गया है जो सुख और वैभव का कारक माना गया है। इसलिए सूर्यास्त के समय किसी को इसे देना, सुख और वैभव में कमी लाने वाला माना जाता है।

 

जानिए! किस दिशा में सोना चाहिए?

उत्तर दिशा में सिर रख कर सोने के लिए अकसर हमें मना किया जाता है। क्या ये नियम पूरी दुनिया में सभी स्थानों पर लागू होता है? क्या है इसका विज्ञान? कौन सी दिशा सोने के लिए सबसे अच्छी है?

आपका दिल शरीर के निचले आधे हिस्से में नहीं है, वह तीन-चौथाई ऊपर की ओर मौजूद है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ रक्त को ऊपर की ओर पहुंचाना नीचे की ओर पहुंचाने से ज्यादा मुश्किल है।

जो रक्त शिराएं ऊपर की ओर जाती हैं, वे नीचे की ओर जाने वाली धमनियों के मुकाबले बहुत परिष्कृत हैं। वे ऊपर मस्तिष्क में जाते समय लगभग बालों की तरह होती हैं। इतनी पतली कि वे एक फालतू बूंद भी नहीं ले जा सकतीं। अगर एक भी अतिरिक्त बूंद चली गई, तो कुछ फट जाएगा और आपको हैमरेज (रक्तस्राव) हो सकता है।

ज्यादातर लोगों के मस्तिष्क में रक्तस्राव होता है। यह बड़े पैमाने पर आपको प्रभावित नहीं करता मगर इसके छोटे-मोटे नुकसान होते हैं। आप सुस्त हो सकते हैं, जो वाकई में लोग हो रहे हैं। 35 की उम्र के बाद आपकी बुद्धिमत्ता का स्तर कई रूपों में गिर सकता है जब तक कि आप उसे बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत नहीं करते। आप अपनी स्मृति के कारण काम चला रहे हैं, अपनी बुद्धि के कारण नहीं।

उत्तर दिशा में सर रखकर सोना हानिकारक है

जब आपको रक्त से जुड़ी कोई समस्या होती है, मसलन एनीमिया या रक्ताल्पता तो डॉक्टर आपको क्या सलाह देता है? आयरन या लौह तत्व। यह आपके रक्त का एक अहम तत्व है। आपने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों (मैगनेटिक फील्ड) के बारे में सुना होगा। कई रूपों में अपनी चुंबकीयता के कारण पृथ्वी बनी है। इसलिए इस ग्रह पर चुंबकीय शक्तियां शक्तिशाली हैं।अगर आप उत्तर की ओर सिर करते हैं और 5 से 6 घंटों तक उस तरह रहते हैं, तो चुंबकीय खिंचाव आपके दिमाग पर दबाव डालेगा।
जब शरीर क्षैतिज अवस्था में होता है, तो आप तत्काल देख सकते हैं कि आपकी नाड़ी की गति धीमी हो जाती है। शरीर यह बदलाव इसलिए लाता है क्योंकि अगर रक्त उसी स्तर पर पंप किया जाएगा, तो आपके सिर में जरूरत से ज्यादा रक्त जा सकता है और आपको नुकसान हो सकता है। अब अगर आप अपना सिर उत्तर की ओर करते हैं और 5 से 6 घंटों तक उसी अवस्था में रहते हैं, तो चुंबकीय खिंचाव आपके दिमाग पर दबाव डालेगा। अगर आप एक उम्र से आगे निकल चुके हैं और आपकी रक्त शिराएं कमजोर हैं तो आपको रक्तस्राव और लकवे के साथ स्ट्रोक हो सकता है।

एनीमिया या रक्ताल्पता में डॉक्टर आपको क्या सलाह देता है? आयरन या लौह तत्व। यह आपके रक्त का एक अहम तत्व है। आपने पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्रों (मैगनेटिक फील्ड) के बारे में सुना होगा या अगर आपका शरीर मजबूत है और ये चीजें आपके साथ नहीं होतीं, तो आप उत्तेजित या परेशान होकर जाग सकते हैं क्योंकि सोते समय दिमाग में जितना रक्त संचार होना चाहिए, उससे ज्यादा होता है। ऐसा नहीं है कि एक दिन ऐसा करने पर आप मर जाएंगे। मगर रोजाना ऐसा करने पर आप परेशानियों को दावत दे रहे हैं। आपके साथ किस तरह की परेशानियां हो सकती हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि आपका शरीर कितना मजबूत है।

तो किस दिशा में सिर करके सोना सबसे अच्छा होता है? पूर्व सबसे अच्छी दिशा है। पूर्वोत्तर ठीक है। पश्चिम चलेगा। अगर कोई विकल्प नहीं है तो दक्षिण। उत्तर बिल्कुल नहीं। जब तक आप उत्तरी गोलार्ध में हैं, यही सही है – उत्तर के अलावा किसी भी दिशा में सिर करके सोया जा सकता है। दक्षिणी गोलार्ध में, दक्षिण की ओर सिर करके न रखें।

सोने की सही दिशा और बिस्तर से उठने के नियम

सोने के बाद ऐसे उठें

1. अपनी दायीं तरफ घूमें
जब आप उठें, तो अपनी दायीं तरफ घूमें और फिर बिस्तर से बाहर आएं, क्योंकि नींद से उठते समय मेटाबोलिक प्रक्रिया बहुत धीमी होती है। ऐसे में अचानक से बिस्तर छोड़ने पर दिल पर दबाव पड़ेगा।

2. अपने हाथों को मसलें
सुबह बिस्तर से उठने से पहले अपने हाथों को मसलें और अपनी हथेलियों को अपनी आँखों पर लगाएं। हथेलियों को मसलने से हाथों में स्थित सभी नाड़ियां सक्रीय हो जाती हैं और आपका सिस्टम जल्दी से सजग हो जाता है।

3. मुस्कुराएं
सुबह उठ कर मुस्कुराएं! किसे देख कर? किसी को नहीं! क्योंकि आपका सुबह उठना अपने आप में एक बड़ी बात है। लाखों ऐसे लोग हैं जो कल रात सोये और आज सुबह नहीं उठे, लेकिन आप और मैं सुबह उठ गए। क्या यह बड़ी बात नहीं है? इसलिए मुस्कुराएं।

सोने की सही और गलत दिशा

आपका दिल आपके शरीर विज्ञान का एक अहम पहलू है। वह स्टेशन जो शरीर में जीवन भरता है, जो अगर न हो, तो कुछ नहीं होता, आपके बाईं ओर से शुरू होता है। भारत में हमेशा यह संस्कृति रही है कि जागने के बाद आपको अपने दाहिनी ओर करवट लेकर फिर बिस्तर छोड़ना चाहिए। जब आपका शरीर आराम की एक खास अवस्था में होता है, तो उसकी मेटाबोलिक क्रिया धीमी हो जाती है। जब आप जागते हैं, तो शरीर अचानक सक्रिय हो जाता है। इसलिए आपको अपने दाहिनी ओर करवट लेकर फिर उठना चाहिए क्योंकि कम मेटाबोलिक सक्रियता में अगर आप अचानक बाईं करवट लेते हैं तो आप अपने दिल के तंत्र पर दबाव डालेंगे।

नींद से उठने के बाद यह करें

पारंपरिक रूप से आपसे यह भी कहा जाता है कि सुबह उठने से पहले आपको अपनी हथेलियां रगड़नी चाहिए और अपनी हथेलियों को अपनी आंखों पर रखना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने पर आपको भगवान दिख सकते हैं। इसका संबंध भगवान के दिखने से नहीं है।
आपके हाथों में नाड़ियों का एक भारी जाल है। अगर आप अपनी हथेलियां रगड़ते हैं, तो सभी नाड़ियां सक्रिय हो जाती हैं और शरीर तत्काल सजग हो जाता है। सुबह जगने पर भी अगर आप सुस्त महसूस करते हैं, तो ऐसा करके देखिए, आपका पूरा शरीर तत्काल सजग हो जाएगा। तत्काल आपकी आंखों और आपकी इंद्रियों के दूसरे पहलुओं से जुड़ी सारी नाड़ियां सजग हो जाती हैं। शरीर को हिलाने से पहले आपका शरीर और दिमाग दोनों सक्रिय होने चाहिए। आपको सुस्त नहीं उठना चाहिए, इसका मकसद यही है।

जानिए अपनी कुण्डली से नौकरी करेंगे या व्यवसाय?

आज हर कोई जानना चाहता है कि नौकरी करेंगे या व्यवसाय। किसी को नौकरी अच्छी लगती है तो किसी को व्यापार। हर कोई आजीविका कमाने के लिए अपनी पसन्द का कार्य करना चाहता है। कुंडली के दशम भाव, इनके स्वामी और इनका नवग्रह से संबंध का विश्लेषण कर यह जाना जा सकता है कि व्यक्ति या जातक नौकरी करेगा या व्यवसाय। इसके लिए ज्योतिष मे कुछ अनमोल सूत्र हैं, जिसके उपयोग से आप आसानी से जान सकेंगे कि आप नौकरी में सफल होंगे या व्‍यापार में।

1-यदि कुंडली का दूसरा भाव, दशम भाव एवं एकादश भाव का संबंध छठे भाव या इसके स्वामी से होगा तो समझ लें कि आप नौकरी करेंगे।
2-छठा भाव नौकरी का एवं सेवा का है। छठे भाव का कारक भाव शनि है। दशम भाव या दशमेश का संबंध छठे भाव से हो तो जातक नौकरी ही करता है।
3-यदि दशम भाव बली हो तो नौकरी व सप्तम भाव बली हो तो व्यवसाय को चुनना चाहिए।
4-वृष, कन्या व मकर व्यापार की प्रमुख राशियां हैं। चन्द्र, गुरु, बुध तथा राहु ग्रह व्यापार की सफलता में मुख्य भूमिका निभाते हैं। यह जान लें कि पंचम व पंचमेश का दशम भाव से संबंध हो तो शिक्षा जो प्राप्त हुई है वह व्यापार या व्यवसाय में काम आती है।
5-लग्नेश, सप्तमेश, लाभेश, गुरु, चन्द्रमा का बली होना या केन्द्र त्रिकोण में स्थित होना व्यवसाय में सफलता दिलाता है।
6-सर्वाष्टक वर्ग में दशम की अपेक्षा एकादश में अधिक अंक हों एवं द्वादश में कम अंक हों और द्वादश की अपेक्षा प्रथम में अधिक अंक हों तो जातक की आजीविका अच्छी होती है।
7-द्वितीय, दशम व एकादश का संबंध सप्तम भाव से हो तो जातक व्यापार में सफलता प्राप्त करता है।
8-नौकरी के कारक ग्रहों का संबंध सूर्य व चन्द्र से हो तो जातक सरकारी नौकरी पाता है।
9-प्रायः देखा गया है कि लग्न व लग्नेश को जो ग्रह सबसे अधिक प्रभावित करते हों जातक उसके अनुसार वृत्ति से आजीविका कमाता है।
10-द्वादश भाव का स्वामी यदि 1, 2, 4, , 5, 9, 10वें भाव में स्थित हो तो जातक नौकरी करता है।
दशमेश या दशम भाव में स्थित ग्रह दशमांश कुंडली में चर राशि में स्थित हो तो जातक नौकरी में अधिक सफलता पाता है।
11-दशमांश कुंडली के लग्न का स्वामी एवं जन्म लग्न के स्वामी की तत्त्व राशि एक हो तो जातक व्यापार में सफलता पाता है।
12-यदि सर्वाष्टक वर्ग में दसवें भाव में सर्वाधिक अंक हों तो जातक निजी व्यवसाय में सफलता पाता है।
यदि छठे भाव में सर्वाधिक अंक सर्वाष्टक वर्ग में हों तो जातक नौकरी में सफलता पाता है और दूसरों के आधीन कार्य करता है।
13-शनि से दशम व एकादश में अधिक अंक सर्वाष्टक वर्ग में हों तो जातक नौकरी में उच्च पद प्राप्त करता है।
14-व्यापार में सफलता के लिए केन्द्र व त्रिकोण का परस्पर संबंध होना अत्यावश्यक है। यदि है और इनके स्वामियों की दशा आती है तो व्यापार में सफलता अवश्य मिलेगी।
15-यदि तृतीयेश व मंगल बली व उच्च के हैं तो जातक का व्यवसाय उच्च व लाभदायी होगा एवं यश दिलाएगा। यदि निर्बल एवं कमजोर है तो छोटे व्यापार या दुकान से आजीविका कमाकर निर्वाह होगा।
16-यदि वृष तथा तुला के नवांश में आत्मकारक ग्रह स्थित हो तो जातक बड़ा व्यापारी बनता है।
17-आजीविका विचार में बीस से पैंतालिस वर्ष तक की दशा अन्तर्दशा का विशेष महत्व है। अतः आजीविका विचार करते समय इन पर भी दृष्टि डालनी चाहिए।
प्रायः देखा गया है कि सूर्य, चन्द्र व दशमेश से दसवें भाव के स्वामी जिस नवांश में स्थित हो उसके अनुसार आजीविका होती है। वह उसी कार्य से धन अर्जित करके जीवनयापन करता है।

पंच तत्व (पंचमहाभूत) महत्व एवं प्रभाव

प्राचीन समय से ही विद्वानों का मत रहा है कि इस सृष्टि की संरचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है।सृष्टि में इन पंचतत्वों का संतुलन बना हुआ है।यदि यह संतुलन बिगड़ गया तो यह प्रलयकारी हो सकता है।जैसे यदि प्राकृतिक रुप से जलतत्व की मात्रा अधिक हो जाती है तो पृथ्वी पर चारों ओर जल ही जल हो सकता है अथवा बाढ़ आदि का प्रकोप अत्यधिक हो सकता है. आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को पंचतत्व का नाम दिया गया है।माना जाता है कि मानव शरीर भी इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बना है। वास्तविकता में यह पंचतत्व मानव की पांच इन्द्रियों से संबंधित है. जीभ, नाक, कान, त्वचा और आँखें हमारी पांच इन्द्रियों का काम करती है।इन पंचतत्वों को पंचमहाभूत भी कहा गया है।इन पांचो तत्वों के स्वामी ग्रह, कारकत्व, अधिकार क्षेत्र आदि भी निर्धारित किए गये हैं।आइए इनके विषय में जानने का प्रयास करें।

आकाश ( Space/ Thought)
आकाश तत्व का स्वामी ग्रह गुरु है।आकाश एक ऎसा क्षेत्र है जिसका कोई सीमा नहीं है।पृथ्वी के साथ्-साथ समूचा ब्रह्मांड इस तत्व का कारकत्व शब्द है।इसके अधिकार क्षेत्र में आशा तथा उत्साह आदि आते हैं।वात तथा कफ इसकी धातु हैं।वास्तु शास्त्र में आकाश शब्द का अर्थ रिक्त स्थान माना गया है।आकाश का विशेष गुण “शब्द” है और इस शब्द का संबंध हमारे कानों से है।कानों से हम सुनते हैं और आकाश का स्वामी ग्रह गुरु है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में भी श्रवण शक्ति का कारक गुरु को ही माना गया है। शब्द जब हमारे कानों तक पहुंचते है तभी उनका कुछ अर्थ निकलता है।वेद तथा पुराणों में शब्द, अक्षर तथा नाद को ब्रह्म रुप माना गया है। वास्तव में आकाश में होने वाली गतिविधियों से गुरुत्वाकर्षण, प्रकाश, ऊष्मा, चुंबकीय़ क्षेत्र और प्रभाव तरंगों में परिवर्तन होता है।इस परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है। इसलिए आकाश कहें या अवकाश कहें या रिक्त स्थान कहें, हमें इसके महत्व को कभी नहीं भूलना चाहिए।आकाश का देवता भगवान शिवजी को माना गया है।

वायु (Air/Oxygen )
वायु तत्व के स्वामी ग्रह शनि हैं। इस तत्व का कारकत्व स्पर्श है।इसके अधिकार क्षेत्र में श्वांस क्रिया आती है।वात इस तत्व की धातु है।यह धरती चारों ओर से वायु से घिरी हुई है।संभव है कि वायु अथवा वात का आवरण ही बाद में वातावरण कहलाया हो।वायु में मानव को जीवित रखने वाली आक्सीजन गैस मौजूद होती है।जीने और जलने के लिए आक्सीजन बहुत जरुरी है। इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यदि हमारे मस्तिष्क तक आक्सीजन पूरी तरह से नहीं पहुंच पाई तो हमारी बहुत सी कोशिकाएँ नष्ट हो सकती हैं।व्यक्ति अपंग अथवा बुद्धि से जड़ हो सकता है।प्राचीन समय से ही विद्वानों ने वायु के दो गुण माने हैं. वह है – शब्द तथा स्पर्श।स्पर्श का संबंध त्वचा से माना गया है।संवेदनशील नाड़ी तंत्र और मनुष्य की चेतना श्वांस प्रक्रिया से जुड़ी है और इसका आधार वायु है। वायु के देवता भगवान विष्णु माने गये हैं।

अग्नि (Fire/Temperature )
सूर्य तथा मंगल अग्नि प्रधान ग्रह होने से अग्नि तत्व के स्वामी ग्रह माने गए हैं।अग्नि का कारकत्व रुप है।इसका अधिकार क्षेत्र जीवन शक्ति है। इस तत्व की धातु पित्त है। हम सभी जानते हैं कि सूर्य की अग्नि से ही धरती पर जीवन संभव है।यदि सूर्य नहीं होगा तो चारों ओर सिवाय अंधकार के कुछ नहीं होगा और मानव जीवन की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है।सूर्य पर जलने वाली अग्नि सभी ग्रहों को ऊर्जा तथा प्रकाश देती है।इसी अग्नि के प्रभाव से पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ बनती हैं।शब्द तथा स्पर्श के साथ रुप को भी अग्नि का गुण माना जाता है। रुप का संबंध नेत्रों से माना गया है। ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत अग्नि तत्व है।सभी प्रकार की ऊर्जा चाहे वह सौर ऊर्जा हो या आणविक ऊर्जा हो या ऊष्मा ऊर्जा हो सभी का आधार अग्नि ही है।अग्नि के देवता सूर्य अथवा अग्नि को ही माना गया है।

जल ( Water-body)
चंद्र तथा शुक्र दोनों को ही जलतत्व ग्रह माना गया है।इसलिए जल तत्व के स्वामी ग्रह चंद्र तथा शुक्र दोनो ही हैं।इस तत्व का कारकत्व रस को माना गया है।इन दोनों का अधिकार रुधिर अथवा रक्त पर माना गया है क्योंकि जल तरल होता है और रक्त भी तरल होता है।कफ धातु इस तत्व के अन्तर्गत आती है। विद्वानों ने जल के चार गुण शब्द, स्पर्श, रुप तथा रस माने हैं।यहाँ रस का अर्थ स्वाद से है। स्वाद या रस का संबंध हमारी जीभ से है।पृथ्वी पर मौजूद सभी प्रकार के जल स्त्रोत जल तत्व के अधीन आते हैं।जल के बिना जीवन संभ्हव नहीं है।जल तथा जल की तरंगों का उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है। हम यह भी भली-भाँति जानते हैं कि विश्व की सभी सभ्यताएँ नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं।जल के देवता वरुण तथा इन्द्र को माना गया है। मतान्तर से ब्रह्मा जी को भी जल का देवता माना गया है।

पृथ्वी ( Earth/Skin)
पृथ्वी का स्वामी ग्रह बुध है।इस तत्व का कारकत्व गंध है।इस तत्व के अधिकार क्षेत्र में हड्डी तथा माँस आता है।इस तत्व के अन्तर्गत आने वाली धातु वात, पित्त तथा कफ तीनों ही आती हैं।विद्वानों के मतानुसार पृथ्वी एक विशालकाय चुंबक है।इस चुंबक का दक्षिणी सिरा भौगोलिक उत्तरी ध्रुव में स्थित है।संभव है इसी कारण दिशा सूचक चुंबक का उत्तरी ध्रुव सदा उत्तर दिशा का ही संकेत देता है।पृथ्वी के इसी चुंबकीय गुण का उपयोग वास्तु शास्त्र में अधिक होता है।इस चुंबक का उपयोग वास्तु में भूमि पर दबाव के लिए किया जाता है।वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा में भार बढ़ाने पर अधिक बल दिया जाता है। हो सकता है इसी कारण दक्षिण दिशा की ओर सिर करके सोना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना गया है।यदि इस बात को धर्म से जोड़ा जाए तो कहा जाता है कि दक्षिण दिशा की ओर पैर करके ना सोएं क्योंकि दक्षिण में यमराज का वास होता है।पृथ्वी अथवा भूमि के पाँच गुण शब्द, स्पर्श, रुप, स्वाद तथा आकार माने गए हैं।आकार तथा भार के साथ गंध भी पृथ्वी का विशिष्ट गुण है क्योंकि इसका संबंध नासिका की घ्राण शक्ति से है।

उपरोक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकलता है कि पंचतत्व मानव जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं।उनके बिना मानव तो क्या धरती पर रहने वाले किसी भी जीव के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। इन पांच तत्वों का प्रभाव मानव के कर्म, प्रारब्ध, भाग्य तथा आचरण पर भी पूरा पड़ता है. जल यदि सुख प्रदान करता है तो संबंधों की ऊष्मा सुख को बढ़ाने का काम करती है और वायु शरीर में प्राण वायु बनकर घूमती है। आकाश महत्वाकांक्षा जगाता है तो पृथ्वी सहनशीलता व यथार्थ का पाठ सिखाती है।यदि देह में अग्नि तत्व बढ़ता है तो जल्की मात्रा बढ़ाने से उसे संतुलित किया जा सकता है।यदि वायु दोष है तो आकाश तत्व को बढ़ाने से यह संतुलित रहेगें।

जानिये अपनी कुण्डली से आपकी परेशानी का कारण……

आज हम आपकों आपकी कुण्डली के रहस्य से अवगत करवाएँगे जिनकी मदद से आप आसानी से जान पाएगें की वास्तव में आप को कौन सा ग्रह परेशान कर रहा हैं।

अशुभ सूर्य के प्रभाव

पहचान- व्यक्ति के अंदर अहंकार की भावना बढना,पैतृक घर में बदलाव होना, घर के मुखिया को परेशानी आना, कानूनी विवादों में फंसना, पिता के कारण या उसकी सम्पति के कारण विवाद होना, पत्नी विछोह होना, सीनीयर अधिकारी से विवाद, दांत, बाल, आंख व हृदय में रोग होना, सरकारी नौकरी में अडचन आना आदि।

अशुभ चंद्र के प्रभाव

पहचान- घर-परिवार के सुखों में कमी आना,
मानसिक रोगों से परेशान होना, भय व घबराहट की
स्थिति बनी रहना, माता से दूरियां, सर्दी-जुखाम
रहना, छाती सम्बंधित रोग, या रोगों का बना
रहना, कार्य व धन में अस्थिरता।

अशुभ मंगल के प्रभाव

पहचान- मन में क्रोध व चिडचिडापन रहना, भाइयों
से विरोध होना, रक्त सम्बंधी विकार, मकान या
जमीन के कारण परेशान होना, अग्निभय या चोट-
खरोच लगना, मशीन इत्यादि से नुकसान होना।

अशुभ बुध के प्रभाव

अल्पबुद्धि होना, बोलने और सुनने में दिक्कत होना,
आत्मविश्वास की कमी होना, नपुंसकता, व्यापार
में हानि होना, माता से विरोध होना, शिक्षा में
बाधायें आना, मित्रों से धोखे मिलना।

अशुभ गुरु के प्रभाव

बडे भाई, गुरुजन से विरोध व अनैतिक मार्ग से हानि
होना, अधिकारी से विवाद, अहंकारी होना, धर्म
से जुडकर अधर्म करना, पाखंडी, स्त्रियों के विवाह
सुख को हीन करना, संतान दोष, अपमान व अपयश होना, मोटापा आना, सूजन व चर्बी के रोग होना।

अशुभ शुक्र प्रभाव

अशुभ शुक्र स्त्री सुखों से दूर करता हैं, सेक्स रोग,
विवाह बाधा, प्रेम में असफलता मिलना, चंचल
होना, अपने साथी के साथ धोखा करना, सुखों से
हीन होना,

अशुभ शनि के प्रभाव

शनि के कारण जातक झगडालूं, आलसी, दरिद्री,
अधिक निद्रा आना, वैराग्य से युक्त, पांव में या
नशों से सम्बंधित व स्टोन की दिक्कत आना,
उपेक्षाओं का शिकार होना, विवाह बाधायें
आना, नपुंसकता आदि होना।

राहु के प्रभाव

नशे इत्यादि के प्रति रूचि बढना, गलत कार्यो से
जुडना, शेयर मार्किट आदि से हानि होना, घर-
गृहस्थी से दूर होना, जेल या कानूनी अपराधों में
संलग्न होना, फोडे फुंसी व घृणित रोग होना।

अशुभ केतु के प्रभाव

केतु के प्रभाव राहु मंगल के मिश्रित फल जैसे होते हैं।अत्यधिक क्रोधी, शरीर में अधिक अम्लता होना
जिस कारण पेट में जलन होती हैं तथा चेहरे पर दाग धब्बे होते हैं। किसी प्रकार के आप्रेशन से गुजरना पडता हैं।

 

जानिए! लौंग के अद्भुत चमत्कारी उपाय

प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में धन, सुख, संपत्ति, वैभव, मनचाहा जीवनसाथी हो। इन चीजों को पाने के लिए वह कई तरह के प्रयास भी करता है, लेकिन कहा जाता है समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ नहीं मिलता। लेकिन ज्योतिष से हटकर तंत्र एक ऐसी विद्या है जो ग्रहों की चाल व्यक्ति के अनुकूल करके उसे उसकी मनचाही वस्तु प्रदान करती है।

तंत्र शास्त्रों में कार्य सिद्धि के लिए अनेक तरह के उपाय और टोटके बताए गए हैं, उनमें से एक है लौंग के उपाय। ये उपाय नवरात्रि, दीपावली की रात्रि या सूर्य व चंद्र ग्रहण के समय किए जाएं तो अधिक फलदायी और सफल होते हैं।

आइये आज जानते हैं घर-घर में मौजूद लौंग के कुछ चमत्कारिक टोटके जो आपकी किस्मत पलट सकते हैं:

1. यदि आप आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। पैसों की बचत नहीं हो पा रही है तो किसी भी दिन शाम के समय हनुमान मंदिर में सरसों के तेल का दीया जलाएं और उसमें सात साबुत लौंग डालें। वहीं बैठकर सात बार हनुमान चालीसा का पाठ करें और उसके बाद उसी दीपक से हनुमानजी की आरती करें। यह प्रयोग लगातार करने से आर्थिक संकट दूर होने लगता है। बेवजह के खर्चों में कमी आती है और धन का संग्रह होने लगता है।

2. घर में लगातार कोई बीमार रहता हो। बार-बार दुर्घटनाएं हो रही हों। काम अटक रहे हों तो प्रत्येक शनिवर के दिन तेल में तीन-चार लौंग डालकर दीपक जलाएं और उसे घर के सबसे अंधेरे कोने में लगाएं। ऐसा करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होने लगती है और धीरे-धीरे रोग कम होते हैं।

3. यदि शुभ कार्य में बाधाएं आ रही हों। किसी की बुरी नजर लग गई हो। बनते काम बिगड़ रहे हों तो एक पीला नींबू लेकर उसमें चार तरफ चार लौंग गाड़ दें। 21 बार ओम हनुमतै नमः का जाप कर घर से निकले काम उसी दिन बन जाएगा।

4. लौंग का उपयोग वशीकरण में किया जाता है। यदि आप किसी को वश में करना चाहते हैं तो शनिवार की मध्यरात्रि में किसी एकांत कक्ष में काले कंबल का आसन लगाकर बैठें। सात लौंग अपनी हथेली में रखें, कुछ देर उसे देखें और मुट्ठी बंद कर लें। अब जिस व्यक्ति को वशीभूत करना हो उसका 31 बार नाम बोलें। प्रत्येक नाम के साथ अपनी मुट्ठी पर फूंक मारते जाएं। अगले दिन रविवार को वे सातों लौंग जला दें। ऐसा लगातार सात शनिवारों तक करें। इससे संबंधित व्यक्ति आपके वशीभूत हो जाएगा।

5. यदि आपका बच्चा पढ़ाई में कमजोर है। परीक्षा में अच्छे अंक नहीं ला पा रहा है। याद्दाश्त कमजोर है तो किसी भी बुधवार के दिन 11 साबुत लौंग लें। इन्हें लाल कपड़े में बांधकर पूजा स्थान में रखें और ओम गं गणपतयै नमः की एक माला जाप करें। अब इन लौंग को एक-एक दिन बच्चे को खिलाते जाएं। इससे बच्चे की बुद्धि में तेजी आएगी।

जानिए आपकी जन्म कुण्डली में बिज़नेस के लिय लाभ हानि योग

पैसा कमाना जीवन का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों को कम उम्र से ही पैसों का महत्व और उनके जीवन की दिशा तय करने के बारे में बताया जाता है। कुछ बच्चों का सपना नौकरी में बड़े पद तक पहुंचने का होता है तो कोई बिजनेसमैन बनना चाहता है।

आज हम यहां बात कर रहे हैं व्यापार योग की। जन्मकुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति के अनुसार यह आसानी से पता किया जा सकता है कि बालक बड़ा होकर नौकरी करेगा या बिजनेस।

आइये आज हम जानते हैं कुंडली में वे कौन-कौन से योग हैं जो सफल बिजनेमैन बनने के लिए जरूरी होते हैं…

व्यापार योग देखने के लिए जन्मकुंडली में बुध की स्थिति, दशम भाव यानी कर्म स्थान और एकादश यानी आय स्थान का अध्ययन किया जाना चाहिए। दशम स्थान में जो ग्रह स्थित हो उसके गुण-स्वभाव के अनुसार व्यक्ति का व्यवसाय होता है।
आइये जानते हैं दशम भाव में ग्रहों के अनुसार क्या स्थिति बनती है…



दशम भाव में एक से अधिक ग्रह हों

यदि दशम भाव में एक से अधिक ग्रह हों तो जो ग्रह सबसे बलवान होता है उसके अनुसार व्यक्ति का व्यापार होता है। जैसे दशम भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति कॉस्मेटिक्स, सौंदर्य प्रसाधन, ज्वेलरी आदि का बिजनेस करता है।

यदि दशम भाव में कोई ग्रह न हो तो दशमेश यानी दशम भाव के स्वामी के अनुसार बिजनेस तय होता है। यदि दशम भाव में मंगल हो तो व्यक्ति प्रॉपर्टी, निवेश आदि के कार्यों से लाभ अर्जित करता है।
दशम भाव का स्वामी जिन ग्रहों के साथ होता है उनके अनुसार व्यक्ति व्यापार करता है।

व्यवसाय पर असर

सूर्य के साथ जो ग्रह स्थित हो वह भी व्यवसाय पर असर दिखाता है। जैसे सूर्य के साथ गुरु हो तो व्यक्ति होटल व्यवसाय, अनाज आदि के कार्य से लाभ कमाता है।

एकादश भाव आय स्थान है। इस भाव में मौजूद ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यापार तय किया जाता है।

सप्तम भाव साझेदारी कासप्तम भाव साझेदारी का होता है।इसमें मित्र ग्रह हों तो पार्टनरशिप से लाभ। शत्रु ग्रह हो तो पार्टनरशिप से नुकसान।

व्यापार में सफलता के लिए क्या करें
यदि आप एक सफल व्यवसायी बनना चाहते हैं तो जन्मकुंडली में शुभ योग तो होना ही चाहिए। साथ ही कुछ उपाय करके भी आप अपने व्यापार-व्यवसाय में तरक्की पा सकते हैं।

व्यापार का प्रतिनिधि ग्रह बुध होता है। बुध को मजबूत करना चाहिए। इसके लिए भगवान श्रीगणेशजी को प्रसन्न करें। प्रत्येक बुधवार गणेशजी को 108 दुर्वा और बेसन से बनी मिठाई का भोग लगाएं।

सुबह जल्दी उठने की आदत बनाए हो सके तो सूर्य उदय से पहले उठें

 

राहु और केतु ग्रह शांति के सरल उपाय

 राहु और केतु ग्रह शांति के सरल उपाय

राहु-केतु ग्रहों को छाया ग्रह के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष की दुनिया में इन दोनों ही ग्रहों को पापी ग्रह भी बोला जाता है। इन दोनों ग्रहों का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, इसीलिए ये जिस ग्रह के साथ बैठते हैं उसी के अनुसार अपना प्रभाव देने लगते हैं। कुछ ही मौके ऐसे होते हैं जब कुंडली में इनका प्रभाव शुभ प्राप्त होता है। राहु और केतु अगर जातक की कुंडली में दशा-महादशा में हों तो यह व्यक्ति को काफी परेशान करने का कार्य करते हैं। यदि कुंडली में उनकी स्थिति ठीक हो तो जातक को अप्रत्याशित लाभ मिलता है और यदि ठीक न हो तो प्रतिकूल प्रभाव भी उतना ही तीव्र होता है।

राहु-केतु के संबंध में पुराणों में कथा आती है कि दैत्यों और देवताओं के संयुक्त प्रयास से हुए सागर मंथन से निकले अमृत के वितरण के समय एक दैत्य अपना स्वरूप बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया और उसने अमृत पान कर लिया। उसकी यह चालाकी जब सूर्य और चंद्र देव को पता चली तो वे बोल उठे कि यह दैत्य है और तब भगवान विष्णु ने चक्र से दैत्य का मस्तक काट दिया। अमृत पान कर लेने के कारण उस दैत्य के शरीर के दोनों खंड जीवित रहे और ऊपरी भाग सिर राहु तथा नीचे का भाग धड़ केतु के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

राहु की वक्री दृष्टि इंसान को संकटापन्न कर देती है। ऐसी स्थिति में मनुष्य की विवेक-बुद्धि का ह्रास हो जाता है तथा जातक उल्टे-सीधे निर्णय करने लगता है। राहु पौराणिक संदर्भों से धोखेबाजों, ड्रग विक्रेताओं, विष व्यापारियों, निष्ठाहीन और अनैतिक कृत्यों, आदि का प्रतीक रहा है। यह अधार्मिक व्यक्ति, निर्वासित, कठोर भाषणकर्त्ताओं, झूठी बातें करने वाले, मलिन लोगों का द्योतक भी रहा है। इसके द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों और स्थानांतरगमन की समस्याएं आती हैं। राहु व्यक्ति के शक्तिवर्धन, शत्रुओं को मित्र बनाने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक रहता है।

इसी तरह से केतु बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है। कुंडली में राहु-केतु ही मिलकर काल सर्पयोग का निर्माण भी करते हैं। केतु स्वभाव से एक क्रूर ग्रह हैं और यह ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक माना जाता है। अच्छी स्थिति में यह जहाँ जातक को इन्हीं क्षेत्रों में लाभ देता है तो बुरी अवस्था में यहीं हानि भी पहुंचता है।

राहु और केतु की अशुभ दशा से बचने के लिए यदि प्रारंभ में ही उपाय शुरू करवा दिए जायें, तो बहुत अधिक हानि से बचा जा सकता है। जो आइये जानते हैं कि कैसे एक जातक इनके प्रभावों से बच सकता है।

राहु ग्रह शांति उपाय

यदि जन्म कुण्डली या वर्ष में राहु अशुभ हो तो शांति के लिए राहु के बीजमंत्र का 18000 की संख्या में जप करें।

राहु का बीज मंत्र- “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः”

राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है। मीठी रोटी कौए को दें और ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल खिलायें। राहु की दशा होने पर कुष्ट से पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए। गरीब व्यक्ति की कन्या की शादी करनी चाहिए। राहु की दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौ रखकर सोयें और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा शांत होगी।

केतु ग्रह शांति उपाय

जिन जातकों की कुण्डली में केतु अशुभ फल प्रदायक हो तो ऐसे जाताकों को केतु के बीजमंत्र का 17000 की संख्या में जाप करना चाहिए व दषमांष हवन भी करना चाहिए।

केतु का बीजमंत्र – “ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः”      

केतु से पीड़ित व्यक्ति को कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल, भूरे रंग की वस्तु केतु की दशा में दान करने से केतु का दुष्प्रभाव कम होता है। गाय की बछिया, केतु से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है। अगर केतु की दशा का फल संतान को भुगतना पड़ रहा है तो मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए। केतु की दशा को शांत करने के लिए व्रत भी काफी लाभप्रद होता है। शनिवार एवं मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु की दशा शांत होती है। कुत्ते को आहार दें एवं ब्राह्मणों को भात खिलायें इससे भी केतु की दशा शांत होगी। किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है।

“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” यह एक ऐसा शक्तिशाली देवी मंत्र है जिसके स्मरण, जप से सारे ग्रह दोष बेअसर हो जाते हैं। यह मन्त्र सभी नौ ग्रहों की शांति में उपयोगी होता है। नित्य रोज 108 बार इस मन्त्र के जाप से सभी ग्रह शांत हो जाते हैं।

भविष्यपुराण द्वारा अब आप भी जान सकते हैं किसी का स्वभाव और भविष्य

भविष्यपुराण द्वारा अब आप भी जान सकते हैं किसी का स्वभाव और भविष्य

भविष्यपुराण में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को देखकर सहज ही उसके स्वभाव तथा भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है
शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को देखकर सहज ही उसके स्वभाव और भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। भविष्यपुराण में ब्रह्माजी कहते है कि किसी भी पुरुष के स्वभाव को जानने के लिए उसके सभी अंग यथा दांत, बाल, नाखून, दाढ़ी-मूंछ को ध्यान से देखना चाहिए। इनको देखकर पुरुष के स्वभाव से जुड़ी बहुत सी गुप्त बातें सहज ही मालूम हो जाती है

(1) यदि किसी पुरुष की गर्दन सामान्य से अधिक लंबी होती है तो ऐसे लोगों को जीवन में काफी अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत छोटी गर्दन तथा सामान्य गर्दन वाले पुरुष सुखी और धनी जीवन जीते हैं। ऐसे पुरुष अन्य लोगों की तुलना में भाग्यशाली होते हैं।

(2) पुरुषों के लिए चौड़े और मजबूत कंधे शुभ होते हैं। जबकि छोटे, दबे हुए कंधे वाले लोगों को जीवन में सफलता के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

(3) जिन पुरुषों की ठुड्डी छोटी व चपटी होती हैं वे लोग धन का सुख प्राप्त नहीं कर पाते हैं। उभरी हुई ठुड्डी शुभ होती है।

(4) यदि किसी पुरुष के हाथों की अंगुलियां टेड़ी-मेड़ी हो, नाखून रूखे तथा भद्दे दिखाई देते हैं और उनकी त्वचा भी अनाकर्षक दिखाई देती है तो ऐसे पुरुषों को कभी सफलता नहीं मिलती। उन्हें गरीब, अस्त-व्यस्त और दुखी जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

(5) यदि किसी पुरुष के पैर कोमल, भरे हुए (मांसल) तथा रक्तवर्ण होते हैं और जिनके पैरों में पसीने नहीं आता, वे धनी होते हैं तथा जीवन की तमाम सुख-सुविधाएं उनके आगे लाइन लगाकर खड़ी रहती हैं।

(6) यदि किसी पुरुष के पैर में तर्जनी अंगुली (अंगूठे के पास वाली अंगुली) अंगूठे से बड़ी हो तो यह उस व्यक्ति के रोमांटिक होने तथा स्त्री सुख प्राप्त करने के स्वभाव को बताता है।

(7) यदि किसी व्यक्ति की जांघ पर बाल नहीं हो तो ऐसे पुरुषों को दुर्भाग्यशाली ही मानना चाहिए। उन्हें अपने अथक प्रयासों के बाद भी असफलता ही मिलती है।

(8) जिस व्यक्ति की जांघ लंबी, सुडौल, मजबूत तथा मांसल होती है वे भाग्यशाली होते हैं। परेशानियां और समस्याएं उनसे दूर ही रहती है। ऐसे लोग जहां भी हाथ डालें, वहीं सफलता मिलती हैं।

(9) यदि किसी पुरुष की हथेली का तल गहरा है तो उसे पिता की ओर से धन का सुख नहीं मिल पाता, उसे स्वयं ही अपनी आर्थिक समस्याओं से लड़ना होता है। परन्तु यदि किसी की हथेली का बीच का हिस्सा गहरा है तो वह दानी माना जाता है तथा जीवन में आमतौर पर सुखी रहते हैं।