पितृपक्ष में क्या उपाय करना चाहिए?

पितृदोष की शांति के लिए पितृपक्ष सबसे उत्तम दिन माने गए हैं। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों से धूप के रूप में अन्न्-जल ग्रहण करने आते हैं और संतुष्ट होने पर अच्छे आशीर्वाद देकर जाते हैं। इसलिए पितृदोष की शांति के लिए कुछ विशेष उपाय इस दौरान किए जाना चाहिए।

  • पितृपक्ष में पितरों के नाम से श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान अवश्य करें। यदि पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात है तो उसी तिथि पर श्राद्ध करें, अन्यथा सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है।
  • पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा को पितरों के नाम से गरीबों, जरूरतमंदों को अन्न्, वस्त्र, जरूरत की वस्तुएं इत्यादि दान दें।
  • पितृपक्ष में नियमित रूप से भागवत महापुराण कथा का पाठ करना पितृदोष शांत करने का सबसे बड़ा उपाय है। स्वयं नहीं पढ़ सकते तो कहीं सुनने जाएं।
  • पीपल के पेड़ में पितरों का वास माना गया है। इसलिए पितृपक्ष में प्रतिदिन पीपल के पेड़ में मीठी कच्चा दूध जल मिलाकर अर्पित करें।
  • पीपल के पेड़ में प्रतिदिन शाम के समय आटे के पांच दीपक जलाएं।
  • पितरों के नाम से किसी वेदपाठी ब्राह्मण को भोजन करवाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा भेंट करें।
  • पितृपक्ष में प्रतिदिन गायों को हरी घास खिलाएं।
  • गाय को घी-गुड़ रखकर ताजी रोटी खिलाएं।
  • पितृदोष निवारण के लिए महामृत्युंजय के मंत्र से शिवजी का अभिषेक करें।
  • प्रतिदिन पितृ कवच का पाठ करने से पितृदोष की शांति होती है।
  • पितृपक्ष में पितरों के नाम से फलदार, छायादार वृक्ष लगवाएं।
  • भविष्य के लिए यह संकल्प करें कि घर के बुजुर्गों की सेवा करेंगे, घर की स्त्री, पत्नी, बेटी का अपमान नहीं करेंगे। वृक्षों को हानि नहीं पहुंचाएंगे।

2019 श्राद्ध पक्ष- जानिए कब से होंगे शुरू

पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है. हिंदू धर्म में इस माह का काफी महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि अगर घर के पितृ नाराज हो जाएं तो घर की खुशहाली खत्म हो जाती है. इसीलिए पितृ पक्ष को मनाने और उनकी शांति के लिए इस माह में श्राद्ध किया जाता है. श्राद्ध माह में पिंड दान और तर्पण कर पितृ की शांति की कामना की जाती है.

2019 में पितृ पक्ष कब से हो रहे हैं शुरू-

हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं. पितृ पक्ष की शुरूआत हर साल पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर अमावस्या पर ये खत्म होते हैं. पितृ पक्ष इस बार 15 दिनों के होंगे. इस वर्ष 2019 में पितृ पक्ष 13 सितंबर से शुरू होकर 28 सितंबर को खत्म होंगे. पितृ पक्ष में नए कपड़ों व आयोजनों की मनाही होती हैं. हिंदू धर्म में इन 15 दिन किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।

पितृ पक्ष का महत्‍व –

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिये, पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं, यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजूर्गों का सम्मान और मृत्योपरांत श्राद्ध कर्म किये जाते हैं, इसके पिछे यह मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाये तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्यु लोक में भटकती रहती है, पितृ पक्ष को मनाने का ज्योतिषीय कारण भी है, ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है, जब जातक सफलता के बिल्कुल नज़दीक पंहुचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो ज्योतिषाचार्य पितृदोष से पीड़ित होने की प्रबल संभावनाएं बताते हैं, इसलिये पितृदोष से मुक्ति के लिये भी पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है, पितृ पक्ष के 15 दिन काफी महत्वपूर्ण होते हैं. हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि मृत्‍यु के बाद मृत व्‍यक्ति का श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है. पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए इन दिनों में पूजा व पिंडदान किए जाते हैं. कहा जाता है कि अगर इस माह में श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले पूर्वजों को मुक्ति नहीं मिलती और वह नाराज हो जाते हैं. पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्‍न होते हैं।

किस दिन करना चाहिए पूर्वज़ों का श्राद्ध-

वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिये पिंड दान या श्राद्ध कर्म किये जा सकते हैं लेकिन पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना जाता है, पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वज़ों का श्राद्ध करें इसके लिये शास्त्र सम्मत विचार यह है कि जिस पूर्वज़, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पड़ने वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिये। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिये कहा जाता है समय से पहले यानि जिन परिजनों की किसी दुर्घटना अथवा सुसाइड आदि से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है, पिता के लिये अष्टमी और माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है।

पितृ को श्राद्ध देना क्यो जरूरी है-

मान्यता के अनुसार अगर पितृ गुस्सा हो जाए तो मनुष्य के जीवन मे अनेक समस्याया का सामना करना पड सकता है, पितृ जब अशांत हो तो उसके कारण धन हानि, परिजनो मे स्वास्थय मे गिरवट ओर संतान की बाबत मे समस्या का भी सामना करना पडता है, संतान – हीनता के मामलो मे ज्योतिष पितृ दोष को अवश्य देखते है, यह लोगो को पितृ के दौरान श्राद्ध जरूरी है।

पितृ के श्राद्ध मे क्या दिया जाता है-

पितृ श्राद्ध मे तेल, चावल, जौ आदि वस्तु को अधिक महत्व दिया जाता है ओर वेद पूराण मे यह बात का भी ज्रिक है कि श्राद्ध करने का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणो को है, श्राद्ध करने मेतिल और कुशा का सवाधिक महत्व होता है, श्राद्ध के दिन पितृ को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदाथॅ को पिड रूप मे अर्पित कराना चाहिए, श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, पपुत्र के साथ महिलाओं को भी होता है।

श्राद्ध मे पितृ के रूप मे कौओ का महत्व-

मान्यता के अनुसार श्राद्ध ग्रहन करने के लिए हमेशा पितृ कौए का रूप धारण कर वह तिथि पर दोपहर के समय हमारे घरकी छत आते हे अगर उन्हे श्राद्ध भोजन नही मिलता तो वो नाराज हो जाता है यह कारण श्राद्ध का पहेला भाग कौओ को दिया जाता है।

पितृ पक्ष 2019 श्राद्ध की तिथियां-

  • 13 सितंबर- पूर्णिमा श्राद्ध
  • 14 सितंबर- प्रतिपदा
  • 15 सितंबर- द्वितीया
  • 17 सितंबर– तृतीया
  • 18 सितंबर- चतुर्थी
  • 19 सितंबर- पंचमी, महा भरणी
  • 20 सितंबर- षष्ठी
  • 21 सितंबर- सप्तमी
  • 22 सितंबर- अष्टमी
  • 23 सितंबर -नवमी
  • 24 सितंबर – दशमी
  • 25 सितंबर – एकादशी
  • 26 सितंबर- द्वादशी,
  • 27 सितंबर- त्रयोदशी
  • 28 सितंबर-चतुर्दशी (सर्वपित्र अमावस्या)

जीवनसाथी से तलाक़

हमारे समाज में अलगाव की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बहुत से लोग वैवाहिक जीवन में परेशानी का सामना कर रहे हैं। शादियां स्वर्ग में होती हैं लेकिन तलाक का फैसला धरती पर लिया जाता है। एक सुखी वैवाहिक जीवन हमारे जीवन में हर तरह की समृद्धि, पारिवारिक वृद्धि और खुशी लाता है। लेकिन हर एक इस विषय में लकी नहीं होता। तलाक या अलग होने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन यहां हम केवल ज्योतिष तलाक के संकेतों पर चर्चा करेंगे। कुंडली में अशुभ ग्रहों के बाद भी तलाक या अलगाव से बचने में उचित विवाह मिलान बहुत प्रभावी सिद्ध होता है।

तलाक – ग्रह और भाव

अशुभ ग्रह विशेष रूप से मंगल, राहु, शनि और सूर्य पृथक् प्रकृति के हैं। वास्तव में ये ग्रह कुंडली में तलाक के एजेंट के रूप में कार्य करते है। इनमें से दो या दो से अधिक ग्रहों का सप्तम, सप्तमेश और कारक गुरु को पीड़ित करना तलाक का कारण बनता है। शुक्र ग्रह प्रेम, रोमांस, सेक्स और विवाह का मुख्य ग्रह है। पुरुष कुंडलियों में यह जीवन साथी को इंगित करता है। इसलिए यदि शुक्र पीड़ित है, मार्गी होकर कमजोर है तो यह वैवाहिक जीवन में परेशानी का संकेत है। महिला कुंडली में बृहस्पति को पति का कारक ग्रह माना जाता है। इसलिए जब बृहस्पति कमजोर या पीड़ित होता है तो पति नाखुश रहता है।

कुंडली में तलाक के भाव

  • ज्योतिष शास्त्र में वैवाहिक सौहार्द्र, विडंबना और तलाक को आंकने के लिए मुख्य रुप से चतुर्थ, सप्तम, आठवें और द्वादश भाव का विचार किया जाता है।
  • चतुर्थ भाव परिवार से सुख का भाव है। इसलिए जब चतुर्थ भाव या चतुर्थेश पीड़ित हो तो परिवार में सुख की कमी रहती है। इसके विपरीत चतुर्थ भाव मजबूत हो या चतुर्थेश सुस्थित हो तो तलाक योग अंतिम परिणाम नहीं होता है।
  • सातवां घर विवाह का मुख्य भाव है। यह भाव न केवल शादी के विषय में बल्कि सभी प्रकार के संबंधों के लिए भी देखा जाता है। इसलिए जब 7 वां भाव पीड़ित होता है और सातवें भाव का स्वामी भी पीड़ित होता है, तो यह इंगित करता है कि व्यक्ति को एक अच्छा वैवाहिक जीवन नहीं मिलेगा।
  • 8 वां भाव किसी भी व्यक्ति के यौन जीवन को नियंत्रित करता है। सभी भावों में यह सबसे अशुभ भाव है। यह सभी प्रकार की छिपे हुए विषयों, गुप्त चीजों, बाधाओं और संघर्षों आदि को प्रकट करता है। इसके अलावा 7 वें भाव से दूसरा होने के कारण यह वैवाहिक जीवन में वृद्धि के लिए भी जिम्मेदार है। यदि 8 वां भाव पीड़ित है, और 8 वें भाव का स्वामी सातवें भाव से संबंध बनाता हैं तो यह विवाह में नकारात्मक फल ला सकता है। यह ज्योतिष में विवाहेतर संबंधों के लिए मुख्य भाव है।
  • 12 वें भाव शयन सुख या यौन सुख के भाव के रूप में जाना जाता है। यदि 12 वां भाव पीड़ित है तो यह खराब यौन जीवन को दर्शाता है और यदि 12 वें भाव का स्वामी पीड़ित है तो यह यौन जीवन में रुचि की कमी दर्शाता है।
  • यदि 7 वें भाव का स्वामी 12 वें भाव के स्वामी और राहु के साथ लग्न भाव में स्थित हो तो यह वैवाहिक कलह का कारण बनता है।

    उपाय

  • श्रावण मास के दौरान लड़कियां हरे रंग की चूड़ियाँ पहनें।
  • गुरुवार को सफेद कपड़े पहनें। ये दोनों ग्रह प्रेम, संबंध और शीघ्र विवाह को नियंत्रित करता है।
  • दीया / दीपक जलाएं और इसे अपने घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में रखें।
  • सुपारी या पान लें। उस पर अपने प्रिय का नाम लिखें और उसे शहद की बोतल में डुबोएं। यह उस व्यक्ति को आपके करीब लाएगा।
  • आप दोनों के बीच प्रेम के बंधन को मजबूत करने के लिए पूर्णिमा पर अपने प्रेमी से मिलें।
  • 108 मनकों से बनी स्फटिक मनकों की माला पर “ओम लक्ष्मी नारायण नमः” का 3 बार जप करें। 3 महीने तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के सामने मंत्र जाप करें। यह आपके और आपके जीवनसाथी के बीच एक मजबूत पैदा करेगा।
  • अपने प्यार को जीतने के लिए अपने घर के पास किसी भी भगवान कृष्ण मंदिर में बांसुरी अर्पित करें।
  • दुर्गा माता को लाल शॉल चढ़ाएं और अपने प्यार के सफल होने की प्रार्थना करें। इससे आपको आपका मनचाहा प्यार मिलेगा।
  • शहद के साथ “रुद्र अभिषेक” करें। शिव लिंग की यह पूजा विवाहित और अविवाहित लड़कियों के लिए लाभदायक है।
  • लड़कियों को एक सुंदर और प्यार करने वाला पति पाने के लिए 16 सोमवार या सोलह सोमवार का व्रत करना चाहिए।
  • अपने इच्छित व्यक्ति से विवाह करने के लिए गौरी-शंकर रुद्राक्ष पहनें।
  • अपने जीवन में प्यार को आकर्षित करने के लिए डायमंड या ओपल या जिरकॉन (हीरे के विकल्प) पहनें।
  • खुशहाल शादी सफल जीवन की कुंजी है। एक प्यार करने वाला जीवनसाथी आपको सफलता की बुलंदियों तक पहुंचा सकता है। कई कारक विवाहित जीवन की सफलता को निर्धारित करते हैं।

मोर पंख – एक अनूठी शक्ति

मोर बेहद खूबसूरत पंछी है। ज्योतिष, वास्तु, धर्म, पुराण और संस्कृति में मोर का अत्यधिक महत्व माना गया है। मोर पंख घर में रखने से अमंगल टल जाता है। आइए जानें 25 अनूठी बातें मोर पंख के बारे में…

1. मोर, मयूर, पिकॉक कितने खूबसूरत नाम है इस सुंदर से पक्षी के। जितना खूबसूरत यह दिखता है उतने ही खूबसूरत फायदे इसके पंखों के भी हैं। हमारे देवी -दवताओं को भी यह अत्यंत प्रिय हैं। मां सरस्वती, श्रीकृष्ण, मां लक्ष्मी, इन्द्र देव, कार्तिकेय, श्री गणेश सभी को मोर पंख किसी न किसी रूप में प्रिय हैं। पौराणिक काल में महर्षियों द्वारा इसी मोरपंख की कलम बनाकर बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे गए हैं।

2. मोर के विषय में माना जाता है कि यह पक्षी किसी भी स्थान को बुरी शक्तियों और प्रतिकूल चीजों के प्रभाव से बचाकर रखता है। यही वजह है कि अधिकांश लोग अपने घरों में मोर के खूबसूरत पंखों को लगाते हैं।

3. मोर पंख की जितनी महत्ता भारत के लोगों के लिए है शायद ही किसी अन्य देश के लोगों के लिए हो। हमारे यहां माना जाता है कि मोर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सबसे प्रभावशाली है।

4. हालांकि 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पश्चिमी देशों के लोग मोरपंख को दुर्भाग्य का सूचक मानते थे। लेकिन मोर पंख की शुभता का अनुभव होने के बाद उसे शुभ चिन्ह के रूप में स्वीकार कर लिया गया।

5. ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार मोर को ‘हेरा’ के साथ संबंधित किया जाता है। मान्यता के अनुसार आर्गस, जिसकी सौ आंखें थीं, उसके द्वारा हेरा ने मोर की रचना की।

6. यही वजह है कि ग्रीक लोग मोर के पंखों को स्वर्ग और सितारों की निगाहों के साथ जोड़ते हैं।

7. हिंदू धर्म में मोर को धन की देवी लक्ष्मी और विद्या की देवी सरस्वती के साथ जोड़कर देखा जाता है।

 

8. लक्ष्मी सौभाग्य, खुशहाली और धन धान्य व संपन्नता के लिए पूजी जाती हैं। मोर के पंखों का प्रयोग लक्ष्मी की इन्हीं विशेषताओं को हासिल करने के लिए किया जाता है। मोर पंख को बांसुरी के साथ घर में रखने से रिश्तों में प्रेम रस घुल जाता है।

9. एशिया के बहुत से देशों में मोर के पंखों को अध्यात्म के साथ संबंधित किया जाता है। क्वान-यिन जो कि अध्यात्म का प्रतीक है का मोर से खास रिश्ता माना गया है। क्वान यिन : क्वान-यिन प्रेम, प्रतिष्ठा, धीरज और स्नेह का सूचक है। इसलिए संबंधित देशों के लोगों के अनुसार मोर पंख से नजदीकी अर्थात क्वान-यिन से समीपता मानी गई है।

10. अगर आपके वैवाहिक जीवन में तनाव है तो अपने शयनकक्ष में मोरपंख रखें, इससे पति पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है।

11. यदि शत्रुता समाप्त करनी हो या कि शत्रु तंग कर रहे हो, तो मोरपंख पर हनुमान जी के मस्तक के सिंदूर से उस शत्रु का नाम मंगलवार या शनिवार रात्रि में लिखकर उसे घर के पूजा स्थल में रखें व सुबह उठकर उसे चलते पानी मे प्रवाहित कर आएं।

12. वास्तुशास्त्र के अनुसार मोरपंख को घर की दक्षिण दिशा में स्थित तिजोरी में खड़ा करके रखने से कभी भी धन की कमी नहीं होती है।

13. राहु का दोष होने पर मोरपंख घर की पूर्वी और उत्तर पश्चिम की दीवार पर लगाएं।

14. अगर आपके घर में मोरपंख है तो आपके घर में कोई भी बुरी शक्ति प्रवेश नहीं कर पाती है। यह घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देता है।

15. वास्तुशास्त्र के अनुसार मोरपंख को घर में रखने से आपके घर के सारे दोष दूर हो जाते है।

16. यदि मोर का पंख घर के पूर्वी और उत्तर-पश्चिम दीवार मे या अपनी जेब व डायरी मे रखा हो तो राहू कभी भी परेशान नहीं करता है। मोरपंख की पूजा करे या हो सके तो उसे हमेशा अपने पास रखे। मोरपंख को घर में रखने से परिवार के सदस्यों की सेहत भी अच्छी रहती है।

17. ग्रहों के अशुभ प्रभाव होने पर मोरपंख पर 21 बार ग्रह का मंत्र बोलकर पानी का छींटें दें, और इसे श्रेष्ठ स्थान पर स्थापित करें जहां से यह दिखाई दे।

18. आर्थिक लाभ के लिए किसी मंदिर में जाकर मोरपंख को राधा कृष्ण के मुकुट में लगाएं और 40 दिन बाद इसे लॉकर या तिजोरी में रख दें।

19. बुरी नजर से बच्चों को बचाने के लिए नवजात बालक को मोरपंख चांदी के ताबीज में पहनाएं।

20. घर के मुख्य द्वार पर 3 मोरपंख लगाकर ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापयै स्वाहा मंत्र लिखें और नीचे गणेश जी की मूर्ति लगाएं।

21. आग्नेय कोण में मांरपंख लगाने से घर के वास्तु दोष को ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा ईशान कोण में कृष्ण भगवान की फोटो के साथ मोरपंख लगाएं।

22. बौद्ध धर्म के अनुसार मोर अपनी अपने सारे पंखों को खोल देता है, इसलिए उसके पंख विचारों और मान्यताओं में खुलेपन का ही प्रतीक माने जाते हैं।

23. ईसाई धर्म में मोर के पंख, अमरता, पुनर्जीवन और अध्यात्मिक शिक्षा से संबंध रखते हैं।

24. इस्लाम धर्म में मोर के खूबसूरत पंख जन्नत के दरवाजे के बाहर अद्भुत शाही बगीचे का प्रतीक माने जाते हैं।

25. यह भी विशेष गौर करने लायक तथ्य है कि घरों में मोरपंख रखने से कीड़े-मकोड़े घर में दाखिल नहीं होते।

13 अचूक मंत्र जिनसे मिलेगी हर कार्य में सफलता

1 . ॐ मंगलम् भगवान विष्णु: मंगलम् गरूड़ध्वज:।
मंगलम् पुण्डरीकांक्ष: मंगलाय तनो हरि।।

2 . कराग्रे वसते लक्ष्मी: कर मध्ये सरस्वती।
करमूले गोविन्दाय, प्रभाते कर दर्शनम्।

 
3 . गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम:

 4 . करारविन्देन पदारविन्दं, मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटय पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।
 
5. सीताराम चरण कमलेभ्योनम: राधा-कृष्ण-चरण कमलेभ्योनम:।

6 . राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमै: सहस्त्रनाम तत्तुल्यं श्री रामनाम वरानने।

7 . माता रामो मम् पिता रामचन्द्र: 
स्वामी रामो ममत्सखा सखा रामचन्द्र: 
सर्वस्व में रामचन्द्रो दयालु नान्यं जाने नैव जाने न जाने।।।
 
8. दक्षिणे लक्ष्मणो यस्त वामेच जनकात्मजा, 
पुरतोमारुतिर्यस्य तं वंदे रघुनंदम्।

 
9 . लोकाभिरामं रण रंग धीरं राजीव नेत्रम् रघुवंश नाथम्।
कारुण्य रूपम् करुणा करम् श्री रामचंद्रम शरणं प्रपद्ये।

 
10. आपदा मम हरतारं दातारम् सर्व सम्पदाम् 
लोकाभिरामम् श्री रामम् भूयो भूयो नमाम्यहं।

 
11. रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय सीतापतये नम:।

 
12. श्री रामचंद्र चरणौ मनसास्मरासि,
श्री रामचंद्र चरणौ वचसा गृणोमि।
श्री रामचंद्र चरणौ शिरसा नमामि,
श्री रामचंद्र चरणौ शरणम् प्रपद्धे:।।

 
13. त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वम् ममदेव देव।

कुंडली में कब बनते हैं तलाक के योग?

कुंडली में तलाक योग कैसे बनता है?

आपके वैवाहिक जीवन में उछल-पुथल मची है तो आपको समझ जाना चाहिए कि आपकी कुंडली में प्रेम कारक ग्रह तथा वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने वाले ग्रह की दशा बिगड़ रही है। यदि समय रहते इस ध्यान न दिया जाए तो परिणाम काफी गंभीर हो सकते हैं। जैसे की- जोड़े एक दूसरे से अगल हो जाएं या तलाक की बात करें। ऐसे में उन्हें योग्य ज्योतिषाचार्य से सलाह लेकर अपने वैवाहिक जीवन को बचाने की कोशिश करना चाहिए। तो आइए जानते हैं कुंडली में कैसे बनता है तलाक योग?

कुंडली में तलाक योग

किसा भी कुंडली में लग्नेश, सप्तमेश तथा चंद्रमा विपरीत स्थिति में हो तो पत्रिका के अंदर तलाक की स्थिति उत्पन्न होती है। सप्तम भाव का स्वामी छठे भाव या बारहवें भाव में विराजमान है तो पति-पत्नी के बीच में अलग होने की स्थिति बनती है जो तलाक करवाता है। सूर्य, राहु व शनि सातवें भाव में हो और इन पर शुक्र का प्रभाव पड़ रहा हो या शुक्र की दृष्टि बारहवें भाव पर पड़ रही हो तो भी तलाक के योग बनते हैं। इसके अलावा सप्तमेश व बारहवें भाव का स्वामी आपस में राशि संबंध बनाते हैं तो कुंडली में तलाक योग का निर्माण होता है। तलाक योग चतुर्थ भाव के स्वामी या सप्तम भाव के स्वामी का छठे, आठवें और बारहवें भाव में विराजमान होने पर भी बनता है। इसके अतिरीक्त चतुर्थ भाव पर पाप ग्रह की दृष्टि पड़ना या पाप ग्रह का विराजमान होना भी वैवाहिक जीवन का अंत करने वाला योग बनाता है। जातक के जन्म कुंडली में शुक्र के साथ छठे, आठवें व बारहवें स्थान में पाप ग्रह विद्धमान है तो यह योग संबंध को तोड़ने का काम करता है। इसके इतर सप्तमेश, लग्नेश व अष्टमेश तथा बारहवें घर में विराजमान हैं तो भी तलाक की स्थिति बनती है। यदि पत्रिका में प्रेम के कारक ग्रह शुक्र नीच राशि का या वक्र राशि का होकर के छठे, आठवें तथा बारहवें घर में स्थित है तो यह अलगाव का योग बनाता है।

कुंडली के योग जोआपको घर का सुख दे सकते हैं

दुनिया में हर किसी की यही जरूरत है कि उसका अपना एक घर हो आइए जानें कुंडली के कौन से योग आपको  घर का सुख दे सकते हैं और इन्हें पाने के लिए क्या किया जा सकता है?

1. अपना घर खरीदने या बनाने के लिए चन्द्र और मंगल कुंडली में मजबूत होने चाहिए।
2. जिनकी कुंडली में चौथा भाव बली हो उसका घर अवश्य बनेगा। जितने बली ग्रह चौथे भाव पर होंगे उतने ही घर जातक के होंगे लेकिन अगर राहु का प्रभाव चौथे भाव पर हो तो वह अपने घर का सुख हीं ले सकेगा। हो सकता है घर तो आलिशान हो लेकिन खुद सरकारी मकान में रहे।
3. शुक्र जितना अच्छा होगा घर उतना ही आलिशान होगा, भव्य होगा।
4. मंगल अगर नीच का हो साथ ही राहु से पीड़ित हो तो घर सुन्दर नहीं होगा और घर में रहकर सुख नहीं मिलेगा।
5. चन्द्र खराब हो तो घर बनाने में परेशानी आती है और मां-बाप का सहयोग नहीं मिलता

कैसे होगा कलयुग का अन्त

भागवत में लिखी ये बातें कलयुग में जब पूर्ण रूप से सत्य हो जाएगी तब कलयुग का अन्त होगा ….आइये जानते है वो बातें कौन सी है

1.ततश्चानुदिनं धर्मः
सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन्
नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥

कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी.

2.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां
कारणं बलमेव हि ॥

कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा !

3. दाम्पत्येऽभिरुचि र्हेतुः
मायैव व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे पुंस्त्वे च हि रतिः
विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥

कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.
व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.

4. लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं
पाण्डित्ये चापलं वचः ॥

घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान माना जायेगा.

5. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव
संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः
कलौ नृणाम.

कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे. लोगों को कई तरह की चिंताए सताएंगी और बाद में मनुष्य की उम्र घटकर सिर्फ 20-30 साल की रह जाएगी.

6. दूरे वार्ययनं तीर्थं
लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे
धार्ष्ट्यमेव हि॥

लोग दूर के नदी-तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान की तरह जायेंगे लेकिन अपनी ही माता पिता का अनादर करेंगे. सर पे बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर तरह के बुरे काम करेंगे.

7. अनावृष्ट्या विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः । शीतवातातपप्रावृड्
हिमैरन्योन्यतः प्रजाः ॥

कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा.मौसम बहुत विचित्र अंदाज़ ले लेगा. कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी. कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी और इन्ही परिस्तिथियों से लोग परेशान रहेंगे.

8. अनाढ्यतैव असाधुत्वे
साधुत्वे दंभ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे
स्नानमेव प्रसाधनम् ॥

कलयुग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा उसे लोग अपवित्र, बेकार और अधर्मी मानेंगे. विवाह के नाम पे सिर्फ समझौता होगा और लोग स्नान को ही शरीर का शुद्धिकरण समझेंगे.

9. दाक्ष्यं कुटुंबभरणं
यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः
आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥

लोग सिर्फ दूसरो के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म-कर्म के काम करेंगे. कलयुग में दिखावा बहुत होगा और पृथ्वी पे भृष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे. लोग सत्ता या शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे.

10. आच्छिन्नदारद्रविणा
यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥

पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर और सूखे के वजह से घर छोड़ पहाड़ों पे रहने के लिए मजबूर हो जायेंगे. कलयुग में ऐसा वक़्त आएगा जब लोग पत्ते, मांस, फूल और जंगली शहद जैसी चीज़ें खाने को मजबूर होंगे.

श्रीमद भागवतम मे लिखी ये बातें इस कलयुग में सच होती दिखाई दे रही है

तुलसी शालिग्राम विवाह

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।

पद्मपुराण के पौराणिक कथानुसार राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं.इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है।

पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी विवाह रचाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा बनाकर उनका विवाह तुलसी जी से किया जाता है. विवाह के बाद नवमी, दशमी तथा एकादशी को व्रत रखा जाता है और द्वादशी तिथि को भोजन करने के विषय में लिखा गया है. कई प्राचीन ग्रंथों के अनुसार शुक्ल पक्ष की नवमी को तुलसी की स्थापना की जाती है. कई श्रद्धालु कार्तिक माह की एकादशी को तुलसी विवाह करते हैं और द्वादशी को व्रत अनुष्ठान करते हैं।

देवोत्थान एकादशी के दिन मनाया जाने वाला तुलसी विवाह विशुद्ध मांगलिक और आध्यात्मिक प्रसंग है। दरअसल, तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आहावान। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, एकादशी को तुलसी पूजन का उत्सव मनाया जाता है। वैसे तो तुलसी विवाह के लिए कार्तिक, शुक्ल पक्ष, नवमी की तिथि ठीक है, परन्तु कुछ लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पाँचवें दिन तुलसी विवाह करते हैं। आयोजन बिल्कुल वैसा ही होता है, जैसे हिन्दू रीति-रिवाज से सामान्य वर-वधु का विवाह किया जाता है।

देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जानेवाले इस मांगलिक प्रसंग के सुअवसर पर सनातन धर्मावलम्बी घर की साफ़-सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं. शाम के समय तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरुप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं. मंडप, वर पूजा, कन्यादान, हवन और फिर प्रीतिभोज, सब कुछ पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ निभाया जाता है। इस विवाह में शालिग्राम वर और तुलसी कन्या की भूमिका में होती है। यह सारा आयोजन यजमान सपत्नीक मिलकर करते हैं। इस दिन तुलसी के पौधे को यानी लड़की को लाल चुनरी-ओढ़नी ओढ़ाई जाती है। तुलसी विवाह में सोलह श्रृंगार के सभी सामान चढ़ावे के लिए रखे जाते हैं। शालिग्राम को दोनों हाथों में लेकर यजमान लड़के के रूप में यानी भगवान विष्णु के रूप में और यजमान की पत्नी तुलसी के पौधे को दोनों हाथों में लेकर अग्नि के फेरे लेते हैं। विवाह के पश्चात प्रीतिभोज का आयोजन किया जाता है। कार्तिक मास में स्नान करने वाले स्त्रियाँ भी कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती है। समस्त विधि विधान पूर्वक गाजे बाजे के साथ एक सुन्दर मण्डप के नीचे यह कार्य सम्पन्न होता है विवाह के स्त्रियाँ गीत तथा भजन गाती है।

कार्तिक माह की देवोत्थान एकादशी से ही विवाह आदि से संबंधित सभी मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं. इसलिए इस एकादशी के दिन तुलसी विवाह रचाना उचित भी है. कई स्थानों पर विष्णु जी की सोने की प्रतिमा बनाकर उनके साथ तुलसी का विवाह रचाने की बात कही गई है. विवाह से पूर्व तीन दिन तक पूजा करने का विधान है. नवमी,दशमी व एकादशी को व्रत एवं पूजन कर अगले दिन तुलसी का पौधा किसी ब्राह्मण को देना शुभ होता है। लेकिन लोग एकादशी से पूर्णिमा तक तुलसी पूजन करके पांचवे दिन तुलसी का विवाह करते हैं। तुलसी विवाह की यही पद्धति बहुत प्रचलित है।

शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के संतान नहीं होती,वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें।तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

कार्तिक शुक्ल एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।हिन्दुओं के संस्कार अनुसार तुलसी को देवी रुप में हर घर में पूजा जाता है. इसकी नियमित पूजा से व्यक्ति को पापों से मुक्ति तथा पुण्य फल में वृद्धि मिलती है. यह बहुत पवित्र मानी जाती है और सभी पूजाओं में देवी तथा देवताओं को अर्पित की जाती है. सभी कार्यों में तुलसी का पत्ता अनिवार्य माना गया है. प्रतिदिन तुलसी में जल देना तथा उसकी पूजा करना अनिवार्य माना गया है. तुलसी घर-आँगन के वातावरण को सुखमय तथा स्वास्थ्यवर्धक बनाती है.तुलसी के पौधे को पवित्र और पूजनीय माना गया है। तुलसी की नियमित पूजा से हमें सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।

तुलसी शालिग्राम विवाह कथा

प्राचीन काल में जालंधर नामक राक्षस ने चारों तरफ़ बड़ा उत्पात मचा रखा था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म। उसी के प्रभाव से वह सर्वजंयी बना हुआ था। जालंधर के उपद्रवों से परेशान देवगण भगवान विष्णु के पास गये तथा रक्षा की गुहार लगाई। उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया। उधर, उसका पति जालंधर, जो देवताओं से युद्ध कर रहा था, वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया। जब वृंदा को इस बात का पता लगा तो क्रोधित होकर उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, ‘जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम भी अपनी स्त्री का छलपूर्वक हरण होने पर स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्यु लोक में जन्म लोगे।’ यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहाँ तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ।

एक अन्य प्रसंग के अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। विष्णु बोले, ‘हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है कि तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। जो मनुष्य तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, वह परम धाम को प्राप्त होगा।’ बिना तुलसी दल के शालिग्राम या विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के विवाह का प्रतीकात्मक विवाह है।

कथा विस्तार

एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु जी की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा,पूजा किया करती थी.जब वे बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा – स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते में अपना संकल्प नही छोडूगी, जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी,उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके सारे देवता जब हारने लगे तो भगवान विष्णु जी के पास गये।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा,युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है? उन्होंने पूँछा आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई,उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ,भगवान तुंरत पत्थर के हो गये सबी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्राथना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गयी।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुगा.तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे.और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है.देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है|

कथा – २

ऐसा माना जाता है कि देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह की नींद के बाद जागते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से प्रचलित है कि जब विष्णु भगवान ने शंखासुर नामक राक्षस को मारा था और उस विशेष परिश्रम के कारण उस दिन सो गए थे, उसके बाद वह कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागे थे, इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष विधान है।इस संबंध में एक कथा प्रचलित है कि शंखासुर बहुत पराक्रमी दैत्य था इस वजह से लंबे समय तक भगवान विष्णु का युद्ध उससे चलता रहा। अंतत: घमासन युद्ध के बाद भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। इस युद्ध से भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर लौटकर सो गए। वे वहां चार महिनों तक सोते रहे और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है।

कथा – ३

एक बार भगवान विष्णु से उनकी प्रिया लक्ष्मी जी ने आग्रह के भाव में कहा- हे भगवान, अब आप दिन रात जागते हैं। लेकिन, एक बार सोते हैं,तो फिर लाखों-करोड़ों वर्षों के लिए सो जाते हैं। तथा उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से विश्राम किया कीजिए। आपके ऐसा करने से मुझे भी कुछ समय आराम का मिलेगा। लक्ष्मी जी की बात भगवान को उचित लगी। उन्होंने कहा, तुम ठीक कहती हो। मेरे जागने से सभी देवों और खासकर तुम्हें कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से वक्त नहीं मिलता। इसलिए आज से मैं हर वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करुंगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी।यह मेरी अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी रहेगी। इस दौरान जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर तुम्हारे समेत निवास करुंगा।

तुलसी विवाह व्रत कथा

प्राचीन ग्रंथों में तुलसी विवाह व्रत की अनेक कथाएं दी हुई हैं. उन कथाओं में से एक कथा निम्न है. इस कथा के अनुसार एक कुटुम्ब में ननद तथा भाभी साथ रहती थी. ननद का विवाह अभी नहीं हुआ था. वह तुलसी के पौधे की बहुत सेवा करती थी. लेकिन उसकी भाभी को यह सब बिलकुल भी पसन्द नहीं था. जब कभी उसकी भाभी को अत्यधिक क्रोध आता तब वह उसे ताना देते हुए कहती कि जब तुम्हारा विवाह होगा तो मैं तुलसी ही बारातियों को खाने को दूंगी और तुम्हारे दहेज में भी तुलसी ही दूंगी. कुछ समय बीत जाने पर ननद का विवाह पक्का हुआ. विवाह के दिन भाभी ने अपनी कथनी अनुसार बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ दिया और खाने के लिए कहा. तुलसी की कृपा से वह फूटा हुआ गमला अनेकों स्वादिष्ट पकवानों में बदल गया. भाभी ने गहनों के नाम पर तुलसी की मंजरी से बने गहने पहना दिए. वह सब भी सुन्दर सोने – जवाहरात में बदल गए. भाभी ने वस्त्रों के स्थान पर तुलसी का जनेऊ रख दिया. वह रेशमी तथा सुन्दर वस्त्रों में बदल गया. ननद की ससुराल में उसके दहेज की बहुत प्रशंसा की गई. यह बात भाभी के कानों तक भी पहुंची. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. उसे अब तुलसी माता की पूजा का महत्व समझ आया. भाभी की एक लड़की थी. वह अपनी लड़की से कहने लगी कि तुम भी तुलसी की सेवा किया करो. तुम्हें भी बुआ की तरह फल मिलेगा. वह जबर्दस्ती अपनी लड़की से सेवा करने को कहती लेकिन लड़की का मन तुलसी सेवा में नहीं लगता था. लड़की के बडी़ होने पर उसके विवाह का समय आता है. तब भाभी सोचती है कि जैसा व्यवहार मैने अपनी ननद के साथ किया था वैसा ही मैं अपनी लड़की के साथ भी करती हूं तो यह भी गहनों से लद जाएगी और बारातियों को खाने में पकवान मिलेंगें. ससुराल में इसे भी बहुत इज्जत मिलेगी. यह सोचकर वह बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोड़ देती है. लेकिन इस बार गमले की मिट्टी, मिट्टी ही रहती है. मंजरी तथा पत्ते भी अपने रुप में ही रहते हैं. जनेऊ भी अपना रुप नही बदलता है. सभी लोगों तथा बारातियों द्वारा भाभी की बुराई की जाती है. लड़की के ससुराल वाले भी लड़की की बुराई करते हैं. भाभी कभी ननद को नहीं बुलाती थी. भाई ने सोचा मैं बहन से मिलकर आता हूँ. उसने अपनी पत्नी से कहा और कुछ उपहार बहन के पास ले जाने की बात कही. भाभी ने थैले में ज्वार भरकर कहा कि और कुछ नहीं है तुम यही ले जाओ. वह दुखी मन से बहन के पास चल दिया. वह सोचता रहा कि कोई भाई अपने बहन के घर जुवार कैसे ले जा सकता है. यह सोचकर वह एक गौशला के पास रुका और जुवार का थैला गाय के सामने पलट दिया. तभी गाय पालने वाले ने कहा कि आप गाय के सामने हीरे-मोती तथा सोना क्यों डाल रहे हो. भाई ने सारी बात उसे बताई और धन लेकर खुशी से अपनी बहन के घर की ओर चल दिया. दोनों बहन-भाई एक-दूसरे को देखकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं।

अस्थमा और थाइराइड जैसी 7 बीमारियों को जड़ से खत्म करता है सिंघाड़ा

सर्दी का मौसम आ गया है व इसी मौसम में सिंघाड़े में बहुत ज्यादा आते है जिसका खाने में एक अलग स्वाद है। सिंघाड़ा यानि वाटर चेस्टनट जो स्वास्थ्य के लिए बहुत गुणकारी है। विटामिन ए, साइट्रिक एसिड, फॉस्फोरस, प्रोटीन निकोटीनिक एसिड, विटामिन सी, मैंगनीज कार्बोहाइड्रेट, ऊर्जा, फाइबर, कैल्शियम, एट, आयरन, पोटेशियम, सोडियम, आयोडीन, मैग्नीशियम इसमें भरपूर मात्रा में होते है।

कई पोषक तत्व स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियों को दूर करते हैं। अस्थमा- सिंघाड़ा दमा रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है। इस फल की नियमित सेवन करने से सांस संबंधी समस्या से राहत मिलती है। थायराइड- सिंघाडा भी आयोडीन की कमी को कम करता है। यह गले की बीमारियों और थायराइड ग्रंथि को राहत देता है।

दर्द व सूजन से आराम – शरीर में किसी भी जगह पर दर्द या सूजन होने पर सिंघाड़े का लेप बनाकर लगा सकते हैं। बवासीर- सिंघड़ा बवासीर की कठिनाई में सेवन किया जाना चाहिए। बहुत जल्दी राहत मिलती है। ब्लड प्यूरीफायर – सिंघाड़ा ब्लड प्यूरिफायर का कार्य करता है। इसके गुण रक्त को साफ करते हैं और त्वचा को निखारता हैं। महिला सेहत के लिए रामबाण – स्त्रियों की स्वास्थ्य के लिए भी सिंघाडा बहुत अच्छा है। पीरियड्स, प्रेग्नेंसी,यूरिन प्रॉब्लम आदि में सिंघाड़ा बहुत लाभकारी है। इसका सेवन करने से मां व बच्चा दोनों स्वस्थ रहते हैं।