झाड़ू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास

झाड़ू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास

पौराणिक शास्त्रों में कहा गया है कि जिस घर में झाड़ू का अपमान होता है वहां धन हानि होती है, क्योंकि झाड़ू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास माना गया है।

विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता काप्रतीक माना जाता है।

जिस घर में पूरी साफसफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुखशांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है।

ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके। घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाड़ू यानि महालक्ष्मी हमें धनधान्य, सुखसंपत्ति प्रदान करती है।

वास्तु विज्ञान के अनुसार झाड़ू सिर्फ घर की गंदगी को दूर नहीं करती है बल्कि दरिद्रता को भी घर से बाहर निकालकर घर में सुख समृद्घि लाती है।

झाड़ू का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि रोगों को दूर करने वाली शीतला माता अपने एक हाथ में झाड़ू धारण करती हैं।

यदि भुलवश झाड़ू को पैर लग जाए तो महालक्ष्मी से क्षमा की प्रार्थना कर लेना चाहिए।

जब घर में झाड़ू का इस्तेमाल हो, तब उसे नजरों के सामने से हटाकर रखना चाहिए।

ऐसे ही झाड़ू के कुछ सतर्कता के नुस्खे अपनाये गये उनमें से आप सभी मित्रों के समक्ष हैं जैसे :-

शाम के समय सूर्यास्त के बाद झाड़ू नहीं लगाना चाहिए इससे आर्थिक परेशानी आती है।

झाड़ू को कभी भी खड़ा नहीं रखना चाहिए, इससे कलह होता है।

आपके अच्छे दिन कभी भी खत्म हो, इसके लिए हमें चाहिए कि हम गलती से भी कभी झाड़ू को पैर नहीं लगाए या लात ना लगने दें, अगर ऐसा होता है तो मां लक्ष्मी रुष्ठ होकर हमारे घर से चली जाती है।

झाड़ू हमेशा साफ रखें ,गिला छोडे

ज्यादा पुरानी झाड़ू को घर में रखें।

झाड़ू को कभी घर के बाहर बिखराकर फेके और इसको जलाना भी नहीं चाहिए।

झाड़ू को कभी भी घर से बाहर अथवा छत पर नहीं रखना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में चोरी की वारदात होने का भय उत्पन्न होता है। झाड़ू को हमेशा छिपाकर रखना चाहिए। ऐसी जगह पर रखना चाहिए जहां से झाड़ूहमें, घर या बाहर के किसी भी सदस्यों को दिखाई नहीं दें।

गौ माता या अन्य किसी भी जानवर को झाड़ू से मारकर कभी भी नहीं भगाना चाहिए।

घरपरिवार के सदस्य अगर किसी खास कार्य से घर से बाहर निकले हो तो उनके जाने के उपरांत तुरंत झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। यह बहुत बड़ा अपशकुन माना जाता है। ऐसा करने से बाहर गए व्यक्ति को अपने कार्य में असफलता का मुंह देखना पड़ सकता है।

शनिवार को पुरानी झाड़ू बदल देना चाहिए।

सपने मे झाड़ू देखने का मतलब है नुकसान।

घर के मुख्य दरवाजा के पीछे एक छोटी झाड़ू टांगकर रखना चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

पूजा घर के ईशान कोण यानी उत्तरपूर्वी कोने में झाडू कूड़ेदान आदि नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जाबढ़ती है और घर में बरकत नहीं रहती है इसलिए वास्तु के अनुसार अगर संभव हो तो पूजा घर को साफ करने के लिए एक अलग सेसाफ कपड़े को रखें।

जो लोग किराये पर रहते हैं वह नया घर किराये पर लेते हैं अथवा अपना घर बनवाकर उसमें गृह प्रवेश करते हैं तब इस बात का ध्यानरखें कि आपका झाड़ू पुराने घर में रह जाए। मान्यता है कि ऐसा होने पर लक्ष्मी पुराने घर में ही रह जाती है और नए घर में सुखसमृद्घि का विकास रूक जाता है।

कुंडली में बैठा शुक्र आपको कैसे कर रहा है प्रभावित,

शुक्र ग्रह सौरमंडल का सबसे दैदीप्यमान ग्रह है। इसका वर्षमान हमारे 225 दिनों के समान है। 22 मील प्रति सेकंड की गति से सूर्य कीप्रदक्षिणा करता है। यह ग्रह दक्षिणपूर्व दिशा का स्वामीस्त्री जातिश्यामगौर वर्ण का है।

 अतइसके भाव से जातक का रंग गेंहुआ होता है। लग्न से छठे स्थान पर निष्फल  सातवें स्थान पर अशुभ होता है। मदन पीड़ागानवाहन आदि का कारक होता है। जातक की कुंडली में विभिन्न स्थितियों के अनुसार शुक्र ग्रह से सगाईविवाहसंबंध विच्छेदतलाकविलासप्रेम सुखसंगीतचित्रकलाद्यूतकोषाध्यक्षतामानाध्यक्षताविदेश गमनस्नेह  मधुमेह प्रमेह आदि रोगों का अध्ययन होताहै। मिथुनकन्यामकर और कुंभ लग्नों में यह योगकारक होता है। आश्लेषाज्येष्ठारेवतीकृतिका  स्वाति और आर्द्रा नक्षत्रों मेंरहकर शुभ फल देता है तथा भरणीपूर्वा फाल्गुनीपूर्वाषाढ़ामृगशिराचित्राधनिष्ठा नक्षत्रों में स्थित होकर शुभ फल प्रदान करता है।


शेष पंद्रह नक्षत्रों में सम फल देता है। इस ग्रह का अधिकार  मनुष्य के चेहरे पर होता है। यह ग्रह एक राशि पर डेढ़ माह रहता है। यह वृष तथा तुला राशि का स्वामी है तथा तुला राशि पर  विशेष बली रहता है। शुक्र ग्रह के गुरु सूर्यचंद्र मित्रबुधशनि सम तथा मंगल शत्रु होते हैं। जन्म के समय शुक्र ग्रह का द्वादश भावों में फल इस प्रकार होता है

 

जिसके लग्न स्‍थान में शुक्र हो तो उसका अंगप्रत्यंग सुंदर होता है। श्रेष्ठ रमणियों के साथ विहार करने को लालायित रहता है। ऐसाव्यक्ति दीर्घ आयु वालास्वस्थसुखीमृदु एवं मधुभाषीविद्वानकामी तथा राजकार्य में दक्ष होता है।

 

दूसरे स्थान पर शुक्र हो तो जातक प्रियभाषी तथा बुद्धिमान होता है। स्त्री की कुंडली हो तो जातिका सर्वश्रेष्ठ सुंदरी पद प्राप्त करने कीअधिकारिणी होती है। जातक मिष्ठान्नभोगीलोकप्रियजौहरीकविदीर्घजीवीसाहसी  भाग्यवान होता है।

 

जातक की कुंडली में तीसरे भाव पर शुक्र हो तो वह स्त्री प्रेमी नहीं होता है। पुत्र लाभ होने पर भी संतुष्ट नहीं होता है। ऐसा व्यक्तिकृपणआलसीचित्रकारविद्वान तथा यात्रा करने का शौकीन होता है।

 

चतुर्थ भाव पर यदि शुक्र हो तो जातक उच्च पद प्राप्त करता है। इस व्यक्ति के अनेक मित्र होते हैं। घर सभी वस्तुओं से पूर्ण रहता है।ऐसा व्यक्ति दीर्घायुपरोपकारीआस्तिकव्यवहारकुशल  दक्ष होता है।

 

पांचवें भाव पर पड़ा हुआ शुक्र शत्रुनाशक होता है। जातक के अल्प परिश्रम से कार्य सफल होते हैं। ऐसा व्यक्ति कवि हृदयसुखीभोगीन्यायप्रियउदार  व्यवसायी होता है।

 

छठवांशुक्र जातक के नित नए शत्रु पैदा करता है। मित्रों द्वारा इसका आचरण नष्ट होता है और गलत कार्यों में धन व्यय कर लेता है।ऐसा व्यक्ति स्त्री सुखहीनदुराचारबहुमूत्र रोगीदुखीगुप्त रोगी तथा मितव्ययी होता है।

 

आठवें स्थान में शुक्र हो तो जातक वाहनादि का पूर्ण सुख प्राप्त करता है। वह दीर्घजीवी  कटुभाषी होता है। इसके ऊपर कर्जा चढ़ारहता है। ऐसा जातक रोगीक्रोधीचिड़चिड़ादुखीपर्यटनशील और पराई स्त्री पर धन व्यय करने वाला होता है।

 

यदि नौवें स्थान पर शुक्र हो तो जातक अत्यंत धनवान होता है। धर्मादि कार्यों में इसकी रुचि बहुत होती है। सगे भाइयों का सुख मिलताहै। ऐसा व्यक्ति आस्तिकगुणीप्रेमीराजप्रेमी तथा मौजी स्वभाव का होता है।

 

जिसके दशम भाव में शुक्र हो तो वह व्यक्ति लोभी  कृपण स्वभाव का होता है। इसे संतान सुख का अभावसा रहता है। ऐसा व्यक्तिविलासीधनवानविजयीहस्त कार्यों में रुचि लेने वाला एवं शक्की स्वभाव का होता है।

 

जिसकी जन्म कुंडली में ग्यारहवें स्थान पर शुक्र हो तो जातक प्रत्येक कार्य में लाभ प्राप्त करता है। सुंदरसुशीलकीर्तिमानसत्यप्रेमीगुणवानभाग्यवानधनवानवाहन सुखीऐश्वर्यवानलोकप्रियकामीजौहरी तथा पुत्र सुख भोगता हुआ ऐसा व्यक्ति जीवन मेंकीर्तिमान स्थापित करता है।

 

जिसके बारहवें भाव में शुक्र होतब जातक को द्रव्यादि की कमी नहीं रहती है। ऐसा व्यक्ति स्‍थूलपरस्त्रीरतआलसीगुणज्ञप्रेमीमितव्ययी तथा शत्रुनाशक होता है। एवं शक्की स्वभाव का होता है।

 

जानिए किस ग्रह से कौन-सा रोग होता है ?

हर बीमारी का समबन्ध किसी किसी ग्रह से है जो आपकी कुंडली में या तो कमजोर है या फिर दूसरे ग्रहों से बुरी तरह प्रभावित है। यदिस्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है तो आज धनवान कोई नहीं है। हर व्यक्ति के शरीर की संरचना या तासीर अलग होती है। किसे कब क्या कष्टहोगा यह तो डॉक्टर, हकीम या वैध भी नहीं बता सकता परन्तु एक सटीक ज्योतिष इसकी पूर्वसूचना दे देता है कि आप किस रोग सेपीड़ित होंगे ? या क्या व्याधि आपको शीघ्र प्रभावित करेगी… 

सूर्य ग्रह से रोग
सूर्य ग्रहों का राजा है इसलिए यदि सूर्य आपकी कुंडली में बलवान है तो आपकी आत्मा बलवान होगी। आप शरीर की छोटीमोटीव्याधियों पर ध्यान नहीं देंगे। परन्तु यदि सूर्य अच्छा नहीं है तो सर्व प्रथम आपके बाल झड़ेंगे। सर में दर्द आए दिन होगा और आपको दर्दनिवारक दवा का सहारा लेना ही पड़ेगा। 

चन्द्र ग्रह से मानसिक रोग
चन्द्र संवेदनशील लोगों का अधिष्ठाता ग्रह होता है। यदि चन्द्र कमजोर है तो मन कमजोर होगा और आप भावुक अधिक होंगे। कठोरतासे आप तुरंत प्रभावित हो जाएंगे और सहनशक्ति भी कम होगी। इसके बाद सर्दी जुकाम और खांसी कफ जैसी व्याधियों से जल्दीप्रभावित हो जाएंगे। उपाय यह है कि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आएं, क्योंकि आपको भी संक्रमित होने में देर नहीं लगेगी। चन्द्रअधिक कमजोर होने से सर्दी से पीड़ित होंगे। चन्द्र के कारण स्नायुतंत्र भी प्रभावित होता है। 

मंगल ग्रह और सुस्त व्यक्ति
मंगल रक्त का प्रतिनिधित्व करता है परन्तु जिनका मंगल कमजोर होता है रक्त की बीमारियों के अतिरिक्त जोश की कमी होगी। ऐसेव्यक्ति हर काम को धीरे धीरे करेंगे। वह जातक सुस्त दिखाई देगा और किसी भी काम को सही ऊर्जा से नहीं कर पाता। खराब मंगल सेचोट चपेट और दुर्घटना आदि का भय बना रहता है।

बुध ग्रह से दमा और अन्य रोग
बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है। आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन लाभ उठाएंगे। जो भोले भालेलोग होते हैं उनका बुध अवश्य ही कमजोर होता है और खराब बुध से व्यक्ति को चर्म रोग अधिक होते हैं। सांस की बीमारियां बुध केदूषित होने से होती हैं। बहुत खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है। व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण औरगूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है। 

ब्रहस्पति ग्रह और मोटापा
गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनाता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिए कि व्यक्ति कागुरु कुंडली में खराब है। गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है। जातक जडमति हो जाता है। इसके साथ ही गुरु कमजोरहोने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं। गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है।अधिकतम लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है।

शुक्र ग्रह और शुगर या मधुमेह
शुक्र ग्रह मनोरंजन का कारक है। शुक्र स्त्री, यौन सुख, वीर्य और हर प्रकार के सुख और सुन्दरता का कारक ग्रह है। यदि शुक्र की स्थितिअशुभ है तो जातक के जीवन से मनोरंजन को समाप्त कर देता है। नपुंसकता या सेक्स के प्रति अरुचि का कारण अधिकतम शुक्र हीबनता है। मंगल की दृष्टि या प्रभाव निर्बल शुक्र पर हो तो जातक को रक्त मधुमेह (ब्लड शुगर) हो जाता है। साथ ही शुक्र के अशुभ होनेसे व्यक्ति के शरीर को बेडोल बना देता है। बहुत अधिक पतला शरीर या ठिगना कद शुक्र की अशुभ स्थिति के कारण होते हैं।

शनि ग्रह और लम्बे रोग
शनि दुःख और पीड़ा का प्रतिनिधित्व करता है। जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख औरकष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि ग्रह होता है। शनि का प्रभाव दूसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से संबंधित रोग देता है। शनि कीदृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता। चन्द्र पर हो तो जातक को जुखाम होता है। मंगल पर हो तोरक्त की कमी या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोरकरता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और कमजोर रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है। केतु पर शनि के प्रभाव सेजातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और आयु निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है।दवा का प्रभाव नहीं होता और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है।

राहू ग्रह और ब्लड प्रेशर(रक्तचाप)
राहू एक रहस्यमय ग्रह है। इसलिए राहू से जातक को जो रोग होंगे वह भी रहस्यमय ही होते हैं। एक के बाद दूसरी पीड़ा राहू से ही होतीहै। राहू अशुभ हो तो जातक का इलाज चलता रहता है और डॉक्टर के पास आना जाना लगा रहता है। किसी दवाई से रिएक्शन याएलर्जी राहू से ही मिलती है। वहम यदि एक रोग है जो राहू देता है। डर के कारण हृदयाघात राहू से ही होता है। अचानक हृदय गति रुकजाना या स्ट्रोक राहू से ही होता है।

केतु ग्रह और भूतप्रेत बाधा
केतु से होने वाली बीमारी का पता चलना बहुत कठिन हो जाता है। केतु खराब हो तो फोड़े फुंसियां देता है और यदि थोड़ा और खराब होतो घाव जो देर तक भरे वह केतु के कारण से ही होता है। केतु मनोविज्ञान से सम्बन्ध रखता है उपरी आपदा या भूत प्रेत बाधा केतु के कारण ही होती है ।

दैनिक राशिफल 11 मार्च 2022 (शुक्रवार)

मेष राशि(Aries): राशि का स्वामी मंगल, बुध, सूर्य की संगति में है। कड़वाहट को मिठास में बदलने की कला आपको सीखनी पड़ेगी।जीवन साथी का सहयोग सानिध्य प्राप्त होगा। पंचम भाव दूषित होने के कारण संतान पक्ष से निराशाजनक समाचार मिल सकता है।सायंकाल के समय कोई रुका काम बनने की संभावना है। रात्रि का समय प्रियजनों से भेंट और आमोदप्रमोद में बीतेगा।

वृष राशि(Taurus): आज का दिन संतोष और शान्ति का है। राजनैतिक क्षेत्र में किए गए प्रयासों में सफलता मिलेगी। शासन और सत्तासे गठजोड़ का लाभ मिल सकता है। नए अनुबंधों के द्वारा पद और प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। रात्रि में कुछ अप्रिय व्यक्तियों से मिलने सेअनावश्यक कष्ट का सामना करना पड़ेगा। संतान पक्ष से कुछ राहत मिलेगी।

मिथुन राशि(Gemini): राशि स्वामी की व्यग्रता के कारण किसी मूल्यवान वस्तु के खोने या चोरी होने का भय बना रहेगा। संतान की शिक्षा या किसी प्रतियोगिता में आशातीत सफलता कासमाचार मिलने से मन में हर्ष होगा। सायंकाल में कोई रुका कार्य पूरा होगा। रात्रि में उत्साहवर्धक मांगलिक कार्यों में सम्मिलित होने कासौभाग्य प्राप्त होगा।

कर्क राशि(Cancer): चन्द्रमा द्वादश भाव में उत्तम संपत्ति का संकेत कर रहा है। आजीविका के क्षेत्र में प्रगति होगी। राज्य मानप्रतिष्ठामें वृद्धि होगी। संतान के दायित्व की पूर्ति हो सकती है। यात्रा और देशाटन की स्थिति सुखद लाभदायक रहेगी। सायंकाल से लेकररात्रि तक प्रिय व्यक्तियों का दर्शन सुसमाचार मिलेगा। दिन आपका उत्तम रहने वाला है।

सिंह राशि(Leo): राशि का स्वामी सूर्य चार ग्रहों के बीच में गया है। आपकी आमदनी के नए स्रोत बनेंगे। वाणी की सौम्यता आपको सम्मान दिलाएगी। शिक्षा और प्रतियोगिता में विशेषसफलता मिलेगा। सूर्य के कारण अधिक भागदौड़ और नेत्र विकार होने की संभावना है। शत्रु आपस में लड़कर ही नष्ट हो जाएंगे।

कन्या राशि(Virgo): राशि स्वामी बुध भाग्य वृद्धि कर रहा है। रोजगारव्यापार के क्षेत्र में जारी प्रयासों में अकल्पनीय सफलता प्राप्तहोगी। संतान पक्ष से भी संतोषजनक सुखद समाचार मिलेगा। दोपहर बाद किसी कानूनी विवाद या मुकदमों में जीत आपके लिए खुशीका कारण बन सकती है। शुभ खर्चा और कीर्ति में वृद्धि होगी।

तुला राशि(Libra): आज आपके चारों ओर सुखद वातावरण रहेगा। घरपरिवार के सभी सदस्यों की खुशियां बढ़ेगी। कई दिनों से चली रही लेनदेन की कोई बड़ी समस्या हल हो सकती है। पर्याप्त मात्रा में धन हाथ में जाने का सुख मिलेगा। विरोधियों का पराभवहोगा। पास और दूर की यात्रा का प्रसंग प्रबल होकर स्थगित होगा। प्रणय संबंध प्रगाढ़ता की ओर बढ़ेंगे।

वृश्चिक राशि(Scorpio): आपकी राशि पर तृतीय शनि एवं अष्टम भाव चन्द्र योग अभी सात दिन और चलेगा। फलस्वरूप कुछआन्तरिक विकार जैसे वायु, मूत्र, रक्त जड़ जमा रहे हैं। आज का दिन इस सबकी जांच कराने और किसी अच्छे डॉक्टर इस विषय मेंसलाह लेने में व्यतीत करें। रोग की अवस्था में भी खुद को थोड़ा आराम दें।

धनु राशि(Sagittarius): आज आपके विरोधी भी आपकी प्रशंसा करेंगे। शासन सत्ता पक्ष से निकटता और गठजोड़ का लाभ भीमिलेगा। ससुराल पक्ष से पर्याप्त मात्रा में धन हाथ लग सकता है। सायंकाल से लेकर रात्रिपर्यंत सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों मेंभाग लेने के अवसर प्राप्त होंगे। दिन आपका उत्तम है।

मकर राशि(Capricorn): आज पारिवारिक और आर्थिक मामलों में सफलता मिलेगा। आजीविका के क्षेत्र में चल रहे नए प्रयासफलीभूत होंगे। अधीनस्थ कर्मचारियों का आदर और सहयोग भी पर्याप्त मिलेगा। सायंकाल के समय किसी झगड़े विवाद में पड़ें। रात्रिमें प्रिय अतिथियों के स्वागत का योग बना रहेगा। मातापिता का विशेष ध्यान रखें।

कुंभ राशि(Aquarius): आज आपके स्वास्थ्य सुख में व्यवधान सकता है। राशि का स्वामी शनि क्योंकि मार्गी उदय चल रहा है।अतः निर्मूल विवाद अकारण शत्रुपत्ति, अपनी बुद्धि द्वारा किए कार्यों में ही हानि और निराशा कारक है। कोई विपरीत समाचार सुनकरअकस्मात यात्रा पर जाना पड़ सकता है। इसलिए सावधान रहें और झगड़ेविवाद से बचें।

मीन राशि(Pisces): आज का दिन पुत्रपुत्री की चिंता तथा उनके कामों में व्यतीत होगा। दाम्पत्य जीवन में कई दिन से चला रहागतिरोध समाप्त हो जाएगा। बहनोई और साले से आज लेनदेन करें, संबंध खराब होने का खतरा है। धार्मिक क्षेत्रों की यात्रा औरपुण्य कार्यों पर खर्चा हो सकता है। यात्रा में सावधान अवश्य रहें। बृहस्पति का एकादश योग मूल्यवान वस्तुएं चोरी करा सकता है।

ज्योतिष अनुसार वादा करके तोड़ देते हैं इन 4 राशि वाले लोग, जानिये कौन-सी राशि हैं इनमें शामिल

कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो कभी भी अपने शब्दों पर टिककर नहीं रहते। कुछ लोग अपने वादे को तोड़ देते हैं। कहा जाता है कि अपने वादेऔर शब्दों पर टिके रहने के लिए बहुत ही साहस और ताकत की जरूरत होती है। वादा करना जितना आसान होता है, उसे निभाना उतनाही मुश्किल होता है। ज्योतिष शास्त्र में कुल 12 राशियों और 9 ग्रहों का अध्ययन किया जाता है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो व्यक्ति कीराशि और कुंडली के अनुसार उसके स्वभाव और भविष्य के बारे में जानकारी इक्ट्ठा की जा सकती है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसी चारराशियों का जिक्र किया गया है, जिनमें जन्में लोग कभी भी अपना वादा नहीं निभाते। जानिये कौनसी हैं वो चार राशियां

मिथुन राशि: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिथुन राशि के जातक कभी भी अपना वादा पूरा नहीं करते। इस राशि के लोग अक्सर अपनावादा करके तोड़ देते हैं। हालांकि ऐसा यह जानबूझकर नहीं करते, लेकिन परिस्थिति वश यह अपने शब्दों पर टिक नहीं पाते। इसलिएमिथुन राशि के जातकों के साथ अक्सर अपनी कोई भी बात शेयर करने से पहले कई बार सोचें।

वृष राशि: वृष राशि के जातक अक्सर अपना वादा पूरा नहीं कर पाते। यह जल्दबाजी में किसी से कुछ भी प्रॉमिश कर देते हैं, हालांकिबाद में इन्हें पछताना पड़ता है।

मीन राशि: मीन राशि के जातकों को लेकर भी यह बात कही जाती है कि यह अपने वादे को पूरा नहीं करते। इसलिए इस राशि वालेकिसी से भी कोई वादा करने से पहले कई बार सोचते हैं और केवल तभी प्रॉमिश करते हैं, जब वह उसको पूरा कर सकते हैं। इस राशिके जातकों के लिए वादा निभाना बहुत मुश्किल होता है।

तुला राशि: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुला राशि के लोग वादा पूर्ति करने में काफी खराब माने जाते हैं। यह थोड़ीसी मुश्किल में हीलोगों की बातों को दूसरों से शेयर कर देते हैं। इसलिए इस राशि के जातकों के साथ अपनी पर्सनल बातें सोचसमझकर शेयर करनीचाहिए।

जानिए ! कब होगा विवाह

बच्चों के बड़े होने पर अक्सर उनके माता-पिता उनकी शादी के लिए चिंतित होते हैं कि उनके बच्चों की शादी कब होगी। विशेष तौर पर हिंदू धर्म में शादी को लेकर ज्योतिष, ग्रह और कुंडली का खासा महत्व है। कुण्डली में ग्रहों के अच्छे योग होने पर जल्दी विवाह की उम्मीद रहती है जबकि विवाह से सम्बन्धित भाव एवं ग्रह पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर शादी देर से हो सकती है।

अक्सर बच्चों के बड़े होने पर उनके माता-पिता उनकी शादी के लिए चिंतित होते हैं कि बच्चों की शादी कब होगी। खास तौर पर सनातन धर्म में शादी को लेकर ज्योतिष, ग्रह और कुंडली का  विशेष  महत्व होता है। कुण्डली में ग्रहों के अच्छे योग होने पर जल्दी विवाह की उम्मीद रहती है जबकि विवाह से सम्बन्धित भाव एवं ग्रह पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर शादी देर से हो सकती है।
विवाह समय निर्धारण के लिये सबसे पहले कुण्डली में विवाह के योग देखे जाते हैं। यदि जन्म कुंडली में विवाह के योग नहीं होंगे तो शादी होना असंभव है। जन्म कुण्डली में जब अषुभ या पापी ग्रह सप्तम भाव, सप्तमेष व षुक्र से संबन्ध बनाते हैं तो वे ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बनते हैं। इसके विपरीत यदि शुभ ग्रहों का प्रभाव सप्तम भाव, सप्तमेष व शुक्र पर पड़ता हो तो शादी जल्द होती है।

शादी होने में दशा का योगदान काफी महत्वपूर्ण होता है। सप्तमेष की दषा-अन्तर्दषा में विवाह- यदि जन्म कुण्डली में विवाह के योग की संभावनाएं बनती हों, और सप्तमेश की दशा चल रही हो और उसका संबंध शुक्र ग्रह से स्थापित हो जाय तो जातक का विवाह होता है। इसके साथ ही यदि सप्तमेश का द्वितीयेश के साथ संबंध बन रहा हो तो उस स्थिति में भी विवाह होता है।

सप्तमेश में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में विवाह:- जब दशा का क्रम सप्तमेश व नवमेश का चल रहा हो और इन दोनों ग्रहों का संबंध पंचमेश से बनता हो तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है। पंचम भाव प्रेम संबंध को दर्शाता है।

सप्तम भाव में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित होते हैं वे ग्रह भी जातक की शादी कराते हैं बशर्ते कि उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो और वे सप्तमेश से पूर्ण दृष्टि संबन्ध बना रहे हों और वे कुंडली में मजबूत स्थिति में हों।

सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ भाव में, अपने मित्र राशि के घर में बैठे हों और उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो वे अपनी दशा के प्रारंभिक अवस्था में ही जातक की शादी करा देते हैं। इसके विपरित यदि सप्तमेश और सप्तम भाव में स्थित ग्रह अशुभ भाव में बैठे हों, अपनी शत्रु राशि में हों और उन पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो वे अपनी दशा के मध्य में जातक की शादी कराते हैं।
इसके अलावा कुंडली में ग्रहों की स्थिति, दृष्टि, युति से बनने वाले योग भी जातक के विवाह होने की संभावनाएं बनाते हैं: शादी में शुक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। जब शुक्र शुभ स्थित होकर किसी व्यक्ति की कुण्डली में शुभ ग्रह की राशि  तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हो, और शुक्र की अन्तर्दश या प्रत्यन्तर्दशा  जब आती है तो उस समय विवाह हो सकता है। कुण्डली में शुक्र का शुभ होना वैवाहिक जीवन की शुभता को बढ़ाता है। कुंडली में शुक्र जितना ही शुभ होगा व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय होगा।

जब लग्नेश जन्मकुण्डली में बलशाली होकर स्थित हो और लग्नेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह शीघ्र होने के योग बनते है. इस योग के व्यक्ति का विवाह सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है। जब लग्नेश कुण्डली में बलशाली होकर स्थित हो और लग्नेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह शीघ्र होने के योग बनते है, इस योग के व्यक्ति का विवाह सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है।

कुंडली में चाहे किसी भी ग्रह की दशा क्यों न हो। यदि दशानाथ का संबंध शुक्र से बनता हो और कुंडली में शुक्र शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त होकर नैसर्गिक रुप से शुभ हों, और गोचर में शनि, गुरु से संबन्ध बनाता हो, उस स्थिति में शुक्र अपनी दशा-अंतर्दशा में विवाह के योग बनता  है।

कुंडली में ऐसे ग्रह की दशा चल रही है जो ग्रह सप्तमेश का मित्र है तो इस महादशा में व्यक्ति के विवाह होने के योग बनते हैं बशर्ते कि उसका संबंध सप्तमेश या शुक्र से बनता हो। जन्म कुण्डली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित होता है उस ग्रह की जब दशा चलती है तो उस समय में भी विवाह होने की संभावनाएं बनती हैं।

जब लग्नेश जन्मांग चक्र में बलशाली होकर स्थित हो और लग्नेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह शीघ्र होने के योग बनते है. इस योग के व्यक्ति का विवाह सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है।

जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु सप्तम भाव में स्थित हों तथा किसी शुभ ग्रह से दृ्ष्टि संम्बन्ध बना रहे हों अथवा सप्तम में उच्च का हों तो 21 वर्ष की आयु में विवाह होने की संभावना बनती है। जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु सप्तम भाव में स्थित हों तथा किसी शुभ ग्रह से दृ्ष्टि संम्बन्ध बना रहे हों अथवा सप्तम में उच्च का हों तो 21 वर्ष की आयु में विवाह होने की संभावना बनती है।

अगर कुण्डली में शुक्र सप्तम भाव में स्वगृही हो, द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों तो व्यक्ति का विवाह यौवनावस्था में होने के योग बनते है। अगर कुण्डली में शुक्र सप्तम भाव में स्वगृही हो, द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों तो व्यक्ति का विवाह यौवनावस्था में होने के योग बनते है।

अगर कुण्डली में शुक्र सप्तम भाव में स्वगृही हो, द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों तो व्यक्ति का विवाह यौवनावस्था में होने के योग बनते है। अगर कुण्डली में शुक्र सप्तम भाव में स्वगृही हो, द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों तो व्यक्ति का विवाह यौवनावस्था में होने के योग बनते है।

इसके अलावा सप्तमेश और लग्नेश दोनों जब निकट भावों में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष में प्रवेश के साथ ही होने की संभावना बनती है। इसके अलावा सप्तमेश और लग्नेश दोनों जब निकट भावों में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 21 वर्ष में प्रवेश के साथ ही होने की संभावना बनती है।

यदि लग्न, सप्तम भाव, लग्नेश और शुक्र चर स्थान में स्थित हों तथा चन्द्रमा चर राशि में स्थित हों तो ऎसे व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने के योग बनते है।

अगर किसी स्त्री की कुण्डली में चन्द्र उच्च अंश पर स्थित हो तो स्त्री व उसके जीवनसाथी की आयु में अन्तर अधिक होने की संभावना बनती है। अगर किसी स्त्री की कुण्डली में चन्द्र उच्च अंश पर स्थित हो तो स्त्री व उसके जीवनसाथी की आयु में अन्तर अधिक होने की संभावना बनती है।
शनि और शुक्र लग्न से चतुर्थ भाव में हों तथा चन्द्रमा छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह तीस वर्ष के बाद होने की संभावना बनती है। इसके अतिरिक्त जब शनि और शुक्र लग्न से चतुर्थ भाव में हों तथा चन्द्रमा छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह तीस वर्ष के बाद होने की संभावना बनती है।

यदि सप्तमेश वक्री हो तथा मंगल षष्ठ भाव में हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है। सप्तमेश के वक्री होने के कारण वैवाहिक जीवन कि शुभता में भी कमी हो सकती है। इसके अलावा चन्द्र अगर सप्तम में अकेला या शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो ऎसे व्यक्ति का जीवनसाथी सुन्दर व यह योग विवाह के मध्य की बाधाओं में कमी करता है।

अगर शुक्र कर्क, वृश्चिक, मकर में से किसी राशि में सप्तम भाव में स्थित हों तथा चन्द्रमा व शनि एक साथ प्रथम, द्वितीय, सप्तम या एकादश भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 32 वर्ष के बाद होने की संभावना बनती है।

किसी व्यक्ति की कुण्डली में राहु और शुक्र जब प्रथम भाव में हों तथा मंगल सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 28 से 30 वर्ष की आयु में होने की संभावनाएं बनती है।

अगर शुक्र कर्क, वृश्चिक, मकर में से किसी राशि में सप्तम भाव में स्थित हों तथा चन्द्रमा व शनि एक साथ प्रथम, द्वितीय, सप्तम या एकादश भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह 32 वर्ष के बाद होने की संभावना बनती है।

शुक्र से युति करने वाले ग्रहों की दशा में विवाह होने की संभावना बनती है बशर्ते कि वह बली हों और सप्तमेश से दृष्टि संबंध बना रहे हों। अतः उन सभी ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती हैं।

विवाह पूर्व कुण्डली मिलान कितना ज़रूरी ?

विवाह पूर्व कुंडली मिलान या गुण मिलान को अष्टकूट मिलान या मेलापक मिलान कहते हैं। इसमें लड़के और लड़की केजन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के 2 भेद बताएगए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर लड़के और लड़की की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथाप्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। नक्षत्रों केअष्टकूटतथा 9 ग्रह (परंपरागत) इस रहस्य को व्यक्त करते हैं।

अष्टकूट सूत्र में दोनों के आपसी गुणधर्मों को 8 भागों में बांटा गया है। ये 8 गुण जन्म राशि एवं नक्षत्र पर आधारित हैं। दोनों कीकुंडली में जन्म समय चन्द्र जिस राशि एवं नक्षत्र में होता है उन्हें जातक की व्यक्तिगत राशि एवं नक्षत्र कहा जाता है। 8 गुणों कोक्रमश: 1 से 8 अंक दिए गए हैं, जो कुल मिलाकर 36 होते हैं। प्रत्येक गुण के अलगअलग अंक निर्धारित हैं। इन 36 अंकों में से सेकम से कम 19 अंक मिल जाने से मिलान को ठीक माना जाता है, लेकिन इसके लिए उसका नाड़ी मिलान होना जरूरी होता है।

अष्टकूट मिलान में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, राशी (ग्रह मैत्री), गण, भटूक और नाड़ी का मिलान किया जाता है। अष्टकूट मिलान हीकाफी नहीं है। कुंडली में मंगल दोष भी देखा जाता है, फिर सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश कोदेख रहे ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है।

1. वर्ण : वर्ण का अर्थ होता है स्वभाव और रंग। वर्ण 4 होते हैंब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। लड़के या लड़की की जाति कुछ भीहो लेकिन उनका स्वभाव और रंग उक्त 4 में से 1 होगा। मिलान में इस मानसिक और शारीरिक मेल का बहुत महत्व है। यहां रंग काइतना महत्व नहीं है जितना कि स्वभाव का है।

 2. वश्य : वश्य का संबंध भी मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैंचतुष्पाद, कीट, वनचर, द्विपाद और जलचर। जिसप्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है?

 3. तारा : तारा का संबंध दोनों के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाई गई हैजन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने परविपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं।

 4. योनि : योनि का संबंध संभोग से होता है। जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों कीजांच की जाती है। विभिन्न जीवजंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैंअश्व, गज, मेष, सर्प, श्‍वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है।विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है। शरीर संतुष्टि के लिए योनि मिलान भी आवश्यक होता है।

5. राशिश या मैत्री : राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों कीमित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है।

 6 . गण : गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैंदेव, राक्षस और मनुष्य।

7. भकूट : भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एकदूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जानाजाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है।

 8. नाड़ी : नाड़ी का संबंध संतान से है। दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। शरीर में रक्तप्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है।

राहु काल में क्या करें और क्या नहीं

राहु काल में क्या न करें:
1. इस काल में यज्ञ, पूजा, पाठ आदि नहीं करते हैं, क्योंकि यह फलित नहीं होते हैं।
2. इस काल में नए व्यवसाय का शुभारंभ भी नहीं करना चाहिए।
3. इस काल में किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए यात्रा भी नहीं करते हैं।
4. यदि आप कहीं घूमने की योजना बना रहे हैं तो इस काल में यात्रा की शुरुआत न करें। यदि राहु काल के समय यात्रा करना जरूरी हो तो पान, दही या कुछ मीठा खाकर निकलें। घर से निकलने के पूर्व पहले 10 कदम उल्टे चलें और फिर यात्रा पर निकल जाएं।
5. इस काल में खरीदी-बिक्री करने से भी बचना चाहिए क्योंकि इससे हानि भी हो सकती है।
6. राहु काल में विवाह, सगाई, धार्मिक कार्य या गृह प्रवेश जैसे कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करते हैं। यदि कोई मंगलकार्य या शुभकार्य करना हो तो हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद पंचामृत पीएं और फिर कोई कार्य करें।
7. इस काल में शुरु किया गया कोई भी शुभ कार्य बिना बाधा के पूरा नहीं होता। इसलिए यह कार्य न करें।
8. राहु काल के दौरान अग्नि, यात्रा, किसी वस्तु का क्रय विक्रय, लिखा पढ़ी व बहीखातों का काम नहीं करना चाहिए।
9. राहु काल में वाहन, मकान, मोबाइल, कम्प्यूटर, टेलीविजन, आभूषण या अन्य कोई भी बहुमूल्य वस्तु नहीं खरीदना चाहिए।
10. कुछ लोगों का मानना हैं कि राहु काल के समय में किए गए कार्य विपरीत व अनिष्ट फल प्रदान करते हैं।
क्या कर सकते हैं?
1. राहुकाल से संबंधित कार्य शुरु किए जा सकते हैं।
2. राहु ग्रह की शांति के लिए या दोष दूर करने हेतु कर्मकांड मंत्र पाठ आदि किए जा सकते हैं।
3. कालसर्प दोष की शांति के उपाय किए जा सकते हैं।
4. राहु का यंत्र धारण या राहु यंत्र दर्शन कार्य भी किए जा सकते हैं।
5. ध्यान, भक्ति के अलावा मौन रह सकते हैं।

Covid-19(करोना वायरस) ज्योतिष की नजर से

ज्योतिषीय गणना के मुताबिक भी यह समय संक्रमण काल है-वेदों में उल्लेख है-कलयुग में ऐसी भारी व्याधि, वायरस/संक्रमण उत्पन्न होंगे कि मनुष्य का पल में प्रलय हो जाएगा। इस संक्रमित काल में एक-दूसरे को छूने मात्र से मनुष्य तत्काल संक्रमित होकर छुआछूत से मर जाएगा। रोगों को ठीक करने का मौका नहीं मिलेगा।

ज्योतिष या एस्ट्रोलॉजी में कोरोना वायरस के कारण

अथर्ववेद सूक्त-२५ के अनुसार-
अधरांच प्रहिणोमि नमः कृत्वा तक्मने।
मकम्भरस्य मुष्टि हा पुनरेतु महावृषान्।।

अर्थात-
कलयुग में कोई-कोई संक्रमण बड़ा भयानक विकार होगा। यह शक्तिशाली देश और पुष्ट मनुष्य को भी मुट्ठियों से
मारने वाला सिद्ध होगा।

यह वायरस अति वर्षा या सर्वाधिक जल भरे देशों में हर साल, बार-बार आएगा।

शनि से जब हो अन्याय की तना-तनी

5 नवंबर 2019 को शनि देव 30 साल बाद पुनः अपनी स्वयं की मकर राशि में विराजमान हुए हैं। मकर पृथ्वी तत्व की राशि है। जब-जब शनि देव पृथ्वी तत्व की राशि में आते हैं, तब-तब पृथ्वी पर भूचाल मचा देते हैं। सूर्य के नक्षत्र में आने पर शनियह विकार प्रदाता ग्रह हो जाते हैं।

कब-कब चली शनि की छैनी

सन् 547 में शनिदेव इसी मकर राशि में जब आए और राहु मिथुन राशि में थे। गुरु-केतु की युति ने दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी को परेशान कर दिया था। मिस्र/इजिप्ट से फैला बुबोनिक नामक वायरस जिसे ‘फ्लैग ऑफ जस्टिनयन’ कहा गया।

बाद में इसने रोमन साम्राज्य की नींव हिला दी थी।इससे पहले भी ऐसे ग्रह योग ने मचाई थी तबाही…इतिहासकार प्रोसोपियस के अनुसार यहां एक घंटे में 10 से 15 हजार लोगों को इस वायरस ने मौत की नींद सुला दिया था।

हिस्ट्री ऑफ डेथ नामक किताब के हिसाब से सन 1312 के आसपास शनिदेव जब अपनी ही स्वराशि मकर
में आए, संयोग से राहु तब भी आद्रा नक्षत्र के मिथुन राशि में वक्री गति से परिचालन कर रहे थे, तब 75 लाख लोग फ्लैग वायरस की वजह से कुछ ही दिन में मर गए थे। यह विभत्स दिन आज भी ब्लेक डेथ के नाम से कलंकित है।

सन 1343 से 1348 के मध्य भी अपनी खुद की राशि मकर-कुंभ में आए, तो फ्लैग वायरस ने 25 से 30 हजार
लोगों को फिर मौत की नींद सुला दिया था।

शनि करते हैं पिता सूर्य का सम्मान

दरअसल शनि के पिता सूर्य हैं और सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है।

जब लोग नियम-धर्म या प्रकृति के विपरीत चलते हैं,तो सूर्य की शक्ति क्षीण और आत्मा कमजोर हो जाती है।

शनि, गुरु, केतु यह तीनों भौतिकता या एशोआराम के विपरीत ग्रह हैं। दुनिया जब अपनी मनमानी करने
लगती है, तब शनि कष्ट देकर, निखारकर लोगों को धर्म, ईश्वर, सद्मार्ग, अध्यात्म से जोड़कर धार्मिक बना देते हैं।

शनि उन्हीं को पीड़ित करते हैं,जो धर्म या ईश्वर को नहीं मानते। प्रकृति के खिलाफ चलने वालों को शनिदेव नेस्तनाबूद करके ही दम लेते हैं।

बिना स्नान किए अन्न ग्रहण, बिस्कुट आदि का सेवन करने से यह बहुत ज्यादा परेशान करते हैं।

शनि को सीधा निशाना उन लोगों पर भी होता है, जो शनिवार के पूरे शरीर में तेल नहीं लगाकर स्नान करते हैं।

शनिदेव को खुशबूदार इत्र, गुलाब,चन्दन, अमॄतम कुंकुमादि तेल,जैतून, बादाम तेल अतिप्रिय हैं।

शनि की मार से मरा, फिर संसार

सन् 1667 के आरंभ में शनिदेव जब मकर राशि में आए, तो एक दिन में लाखों लोगों को लील गए, जिसे फ्लैग ऑफ लंदन कहते हैं।

10 फरवरी 1902 के दिन शनि ने पुनः मकर राशि के उत्तराषाढ़ा सूर्य के नक्षत्र में आकर दुनिया में बीमारियों का कहर बरपा दिया था, जब अमेरिका के सनफ्रांसिको में लाखों लोग पल में प्रलय को प्राप्त हुए।

गुजरात के सूरत शहर में जब एक रहस्यमयी बीमारी के चलते लाखों लोग संक्रमित हुए थे तब भी शनिदेव अपनी ही स्वराशि मकर में गोचर कर रहे थे।

केतु का काला करिश्मा

सन 1991 में ऑस्ट्रेलिया में माइकल एंगल नाम का बड़ा कम्प्यूटर वायरस सामने आया था जिसने इंटरनेट और कम्यूटर फील्ड में वैश्‍विक स्‍तर पर बड़े नुकसान किये थे और उस समय भी गोचर में गुरु-केतु का चांडाल योग बना हुआ था।

अभी 15 वर्ष पूर्व सन 2005 में एच-5 एन-1नाम से एक बर्डफ्लू फैला था और उस समय में भी गोचर में बृहस्पति-केतु चांडाल का योग बना हुआ था।

ऐसे में जब भी गुरु-केतु एक ही राशि में एक साथ होते हैं, तो इस तरह की महामारी फैलती है। उस समय में बड़े संक्रामक रोग और महामारियां सामने आती हैं।

2005 में जब गुरु चांडाल योग (बृहस्पति-केतु युति) के दौरान बर्डफ्लू सामने आया था।

कोरोना वायरस का कारक शनि भी हो सकता है

सन 2019 नवम्बर में शनि मकर राशि के उत्तराषाढा नक्षत्र में प्रवेश करते ही दुनिया धधक उठी। उत्तराषाढा नक्षत्र के अधिपति भगवान सूर्य हैं। जब तक शनि इस नक्षत्र में रहेंगे,तब तक प्रकार से दुनिया त्रस्त और तबाह
हो जाएगी। अभी जनवरी 2021 तक शनि, सूर्य के नक्षत्र रहेंगे। अभी यह अंगड़ाई है। 22 मार्च 2020 को शनि के साथ मंगल भी आ जाएंगे। मंगल भूमिपति अर्थात पृथ्वी के स्वामी है। इन दोनों का गठबंधन और भी नए गुल खिलाएगा। मकर मंगल की उच्च राशि भी है।

अनेक अग्निकांडों से, जंगल में आग आदि विस्फोटों से सृष्टि थरथरा जाएगी। इस समय कोई देश परमाणु हमले भी कर सकता है। शनि-मंगल की युति यह बुद्धिहीन योग भी कहलाता है।

2020 में क्लेश ही क्लेश

गुरु-केतु की युति से निर्मित चांडाल योग राजनीति में बम विस्फोट करता रहेगा। राज्य सरकारों की अदला-बदली का रहस्यमयी खेल चलता रहेगा।कुछ बड़े राजनेताओं, पुलिस अधिकारीयों,न्यायधीशों के जेल जाने से देश में अफरा-तफरी का माहौल बनेगा।

दुनिया के कई देशों में बमबारी हो सकती है। गृहयुद्ध, कर्फ्यू आदि लग सकता है। कुछ देश अपने ही नागरिकों को मारने का भरसक प्रयास करेंगे। मानव संस्कृति के लिए ये वक्त बहुत भयानक होगा। शनि के संग मंगल की युति किसी अप्रिय घटना का इतिहास बनाता है।

इस समय ऐसी घटनाएं उन फर्जी लोगों के साथ ज्यादा होंगी, जो बाला जी की अर्जी लगाकर, अपनी मनमर्जी से चलते हैं। यह समय बहुत भय-भ्रम, आकस्मिक दुर्घटनाओं के वातावरण से भरा होगा। किसी-किसी देश में इमरजेंसी जैसा माहौल हो सकता है। कुछ देश टूट भी सकते हैं। बंटवारे की भी संभावना है।

कोरोना वायरस जैसी महामारी के साथ-साथ और भी बीमारियां मानव जाति को खत्म कर सकती हैं,जो लोग अधार्मिक हैं।

वेद एवं ज्योतिष कालगणना अनुसार कलयुग में जब सूर्य-शनि एक साथ शनि की राशि मकर में होंगे। राहु स्वयं के नक्षत्र आद्रा में परिभ्रमण करेंगे और विकार या विकारी नाम संवत्सर होगा।

क्या है विकार नामक संवत्सर-
जैसे साल में बारह महीने होते हैं, वैसे ही संवत्सर 60 होते हैं। यह वर्ष में 2 आते हैं। तीस साल बार पुनः प्रथम संवत्सर
का आगमन होता है। विकार या विकारी नामक हिन्दू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है।

यह 60 संवत्सरों में तेतीसवां है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में भयंकर विकार या वायरस फैलते हैं। इसीलिए इसे
विकारी नाम संवत्सर कहा जाता है। जल वृष्टि या वर्षा अधिक होती है। मौसम में ठंडक रहती है। इस समय
पृथ्वी/प्रकृति के स्वभाव को समझना मुश्किल होता है।

विकार नामक संवत्सर के लक्षण/फल :
मांस-मदिरा सेवन करने वाले दुष्ट व शत्रु कुपित दुःखी या बीमार रहते हैं और श्लेष्मिक यानि कफ, सर्दी-खांसी,
जुकाम का पुरजोर संक्रमण होता है। पित्त रोगों की अधिकता रहती है। चंद्रमा को विकारी संवत्सर का स्वामी कहा गया है।

सन 2019 के अंत के दौरान गुरु-केतु की युति से चांडाल योग निर्मित हुआ। यह बड़े-बड़े चांडाल, फ्रॉड, बेईमान
दयाहीन, अहंकारी लोगों को सड़कों पर लाकर खड़ा कर देगा।

भयानक गरीबी, मारकाट फैलने का भय हो सकता है। एक आंख में सूरज थामा, दूसरे में चंद्रमा आधा। चारों वेदों में सूर्य को ऊर्जा का विशालस्त्रोत और महादेव की आंख माना है।

दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।

भावार्थ: सूर्य ही एक मात्र ऐसी शक्ति है,जो देह को रोगरहित बनाकर लंबी उम्र,बल-बुद्धि एवं वीर्य की वृद्धि कर
सभी व्याधि-विकार, रोग-बीमारी,शोक-दुःख का विनाश कर देते हैं।

संक्रमण/वायरस प्रदूषण नाशक सूर्य
सूर्य एक चलता-फिरता, मोबाइल प्राकृतिक चिकित्सालय है। सूर्य की सप्तरंगी किरणों में अद्भुत रोगनाशक शक्ति होती है।

अथर्ववेद (3.7) में वर्णित है-
‘उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन्
अदृष्टान् च, सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।’
अर्थात-
सूर्य के प्रकाश में, दिखाई देने या न
दिखने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं-कीटाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है। सूर्य की सप्त किरणों में औषधीय गुणों का अपार भंडार है।

13 जून 2020 इस विश्वव्यापी महामारी के विघटन का समय बनेगा 2020 अन्य प्राकृतिक आपदाओं का भी साक्षी बनेगा ईश्वरीय वंदन एक महत्वपूर्ण औषधि है जिससे इस मुश्किल समय में आने वाली चिन्ताओं से मानसिक रूप से मुक्ति पाई जा सकती है

जानिए क्या हैं रक्षा सूत्र बांधने के फायदे

हमारी भारतीय संस्कृति में धार्मिक अनुष्ठान हो या पूजा-पाठ हो या कोई मांगलिक कार्य हो या फिर देवों की आराधना हो, सभी शुभ कार्यों में हाथ की कलाई पर लाल धागा यानी कि मौली बांधने की परंपरा होती है, परन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मौली यानि कलावा क्यों बांधते हैं? आखिर इसकी वजह क्या है? आइये आपको बताते हैं कलावा यानी रक्षा सूत्र बांधने के वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों महत्व के बारे में ।

कलावे को बांधने का वैज्ञानिक व धार्मिक महत्व –

कलावा यानि ‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ है ‘सबसे ऊपर’, और मौली का तात्पर्य सिर से भी होता है, और मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं और इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है।

शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं, इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है.

मौली कच्चे धागे से बनाई जाती है, इसमें मूलत: 3 रंग के धागे होते हैं, लाल, पीला और हरा परन्तु कभी-कभी ये 5 धागों की भी बनती है जिसमें नीला और सफेद भी होता है, 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव होता है।

कलावा बांधने से त्रिदेव, ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है।

ब्रह्मा जी की कृपा से कीर्ति की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु जी की अनुकंपा से रक्षा बल मिलता है और भगवान शिव जी दुर्गुणों का विनाश करते हैं।

कलावा बांधने से दूर होती हैं बीमारियां भी –

स्वास्थ्य के अनुसार रक्षा सूत्र बांधने से कई बीमारियां दूर होती है, जिसमें कफ, पित्त आदि शामिल है, क्योंकि शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता है इसलिए कलाई में रक्षा सूत्र बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता है।

और ऐसी भी मान्यता है कि रक्षा सूत्र बांधने से बीमारी भी अधिक नहीं बढ़ती है जैसे कि ब्लड प्रेशर, हार्ट अटेक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिये मौली बांधना लाभकारी बताया गया है।

 रक्षा सूत्र का महत्व –

कलाई पर रक्षा सूत्र बांधने से जीवन में आने वाले संकट से यह आपकी रक्षा करता है और वेदों में भी इसके बारे में बताया गया है कि जब वृत्रासुर से युद्ध के लिए इंद्र जा रहे थे तब इंद्राणी ने इंद्र की रक्षा के लिए उनकी दाहिनी भुजा पर रक्षासूत्र बांधा था, जिसके बाद वृत्रासुर को मारकर इंद्र विजयी बने और तभी से यह परंपरा चलने लगी है।

रक्षा सूत्र को कब और कैसे धारण करना चाहिए –

पुरुषों व अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में और विवाहित महिलाओं के बाएं हाथ में रक्षा सूत्र बांधी जाती है।

जिस हाथ में कलावा या मौली बांधें उसकी मुट्ठी बंधी हो एवं दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।

कलावा को हमेशा पांच या सात बार घूमाकर हाथ में बांधना चाहिए।

मंगलवार और शनिवार के दिन पुरानी मौली उतारकर नई मौली बांधना चाहिए।

कभी भी पुरानी मौली का फेंकना नहीं चाहिए बल्कि इसे किसी पीपल के पेड़ के नीचे डाल देना चाहिए।

जानिए राशि अनुसार किस राशि के लोगों को कौन सा धागा धारण करना चाहिए-

मौली यानी रक्षा सूत्र शत प्रतिशत कच्चे धागे ,सूत, की ही होनी चाहिए।मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बलि के लिए वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।

मेष और वृश्चिक- मंगल और हनुमान – भगवान हनुमान जी या मंगल ग्रह की कृपा पाने के लिए लाल रंग का धागा हाथ में बांधना चाहिए।

वृषभ और तुला- शुक्र और लक्ष्मी – शुक्र या माँ लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए सफेद रेशमी धागा बांधना चाहिए।

मिथुन और कन्या- बुध – बुध के लिए हरे रंग का सॉफ्ट धागा बांधना चाहिए।

कर्क- चंद्र और शिव – भगवान शिव जी की कृपा या चंद्र के अच्छे प्रभाव को पाने के लिए भी सफेद धागा बांधना चाहिए।

धनु और मीन- गुरु और विष्णु – गुरु के लिए हाथ में पीले रंग का रेशमी धागा बांधना चाहिए।

मकर और कुंभ- शनि – शनि जी की कृपा पाने के लिए नीले रंग का सूती धागा बांधना चाहिए।

राहु- केतु और भैरव – राहु-केतु और भैरव जी की कृपा पाने के लिए काले रंग का धागा बांधना चाहिए।