ज्योतिषीय गणना के मुताबिक भी यह समय संक्रमण काल है-वेदों में उल्लेख है-कलयुग में ऐसी भारी व्याधि, वायरस/संक्रमण उत्पन्न होंगे कि मनुष्य का पल में प्रलय हो जाएगा। इस संक्रमित काल में एक-दूसरे को छूने मात्र से मनुष्य तत्काल संक्रमित होकर छुआछूत से मर जाएगा। रोगों को ठीक करने का मौका नहीं मिलेगा।
ज्योतिष या एस्ट्रोलॉजी में कोरोना वायरस के कारण
अथर्ववेद सूक्त-२५ के अनुसार-
अधरांच प्रहिणोमि नमः कृत्वा तक्मने।
मकम्भरस्य मुष्टि हा पुनरेतु महावृषान्।।
अर्थात-
कलयुग में कोई-कोई संक्रमण बड़ा भयानक विकार होगा। यह शक्तिशाली देश और पुष्ट मनुष्य को भी मुट्ठियों से
मारने वाला सिद्ध होगा।
यह वायरस अति वर्षा या सर्वाधिक जल भरे देशों में हर साल, बार-बार आएगा।
शनि से जब हो अन्याय की तना-तनी
5 नवंबर 2019 को शनि देव 30 साल बाद पुनः अपनी स्वयं की मकर राशि में विराजमान हुए हैं। मकर पृथ्वी तत्व की राशि है। जब-जब शनि देव पृथ्वी तत्व की राशि में आते हैं, तब-तब पृथ्वी पर भूचाल मचा देते हैं। सूर्य के नक्षत्र में आने पर शनियह विकार प्रदाता ग्रह हो जाते हैं।
कब-कब चली शनि की छैनी
सन् 547 में शनिदेव इसी मकर राशि में जब आए और राहु मिथुन राशि में थे। गुरु-केतु की युति ने दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी को परेशान कर दिया था। मिस्र/इजिप्ट से फैला बुबोनिक नामक वायरस जिसे ‘फ्लैग ऑफ जस्टिनयन’ कहा गया।
बाद में इसने रोमन साम्राज्य की नींव हिला दी थी।इससे पहले भी ऐसे ग्रह योग ने मचाई थी तबाही…इतिहासकार प्रोसोपियस के अनुसार यहां एक घंटे में 10 से 15 हजार लोगों को इस वायरस ने मौत की नींद सुला दिया था।
हिस्ट्री ऑफ डेथ नामक किताब के हिसाब से सन 1312 के आसपास शनिदेव जब अपनी ही स्वराशि मकर
में आए, संयोग से राहु तब भी आद्रा नक्षत्र के मिथुन राशि में वक्री गति से परिचालन कर रहे थे, तब 75 लाख लोग फ्लैग वायरस की वजह से कुछ ही दिन में मर गए थे। यह विभत्स दिन आज भी ब्लेक डेथ के नाम से कलंकित है।
सन 1343 से 1348 के मध्य भी अपनी खुद की राशि मकर-कुंभ में आए, तो फ्लैग वायरस ने 25 से 30 हजार
लोगों को फिर मौत की नींद सुला दिया था।
शनि करते हैं पिता सूर्य का सम्मान
दरअसल शनि के पिता सूर्य हैं और सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है।
जब लोग नियम-धर्म या प्रकृति के विपरीत चलते हैं,तो सूर्य की शक्ति क्षीण और आत्मा कमजोर हो जाती है।
शनि, गुरु, केतु यह तीनों भौतिकता या एशोआराम के विपरीत ग्रह हैं। दुनिया जब अपनी मनमानी करने
लगती है, तब शनि कष्ट देकर, निखारकर लोगों को धर्म, ईश्वर, सद्मार्ग, अध्यात्म से जोड़कर धार्मिक बना देते हैं।
शनि उन्हीं को पीड़ित करते हैं,जो धर्म या ईश्वर को नहीं मानते। प्रकृति के खिलाफ चलने वालों को शनिदेव नेस्तनाबूद करके ही दम लेते हैं।
बिना स्नान किए अन्न ग्रहण, बिस्कुट आदि का सेवन करने से यह बहुत ज्यादा परेशान करते हैं।
शनि को सीधा निशाना उन लोगों पर भी होता है, जो शनिवार के पूरे शरीर में तेल नहीं लगाकर स्नान करते हैं।
शनिदेव को खुशबूदार इत्र, गुलाब,चन्दन, अमॄतम कुंकुमादि तेल,जैतून, बादाम तेल अतिप्रिय हैं।
शनि की मार से मरा, फिर संसार
सन् 1667 के आरंभ में शनिदेव जब मकर राशि में आए, तो एक दिन में लाखों लोगों को लील गए, जिसे फ्लैग ऑफ लंदन कहते हैं।
10 फरवरी 1902 के दिन शनि ने पुनः मकर राशि के उत्तराषाढ़ा सूर्य के नक्षत्र में आकर दुनिया में बीमारियों का कहर बरपा दिया था, जब अमेरिका के सनफ्रांसिको में लाखों लोग पल में प्रलय को प्राप्त हुए।
गुजरात के सूरत शहर में जब एक रहस्यमयी बीमारी के चलते लाखों लोग संक्रमित हुए थे तब भी शनिदेव अपनी ही स्वराशि मकर में गोचर कर रहे थे।
केतु का काला करिश्मा
सन 1991 में ऑस्ट्रेलिया में माइकल एंगल नाम का बड़ा कम्प्यूटर वायरस सामने आया था जिसने इंटरनेट और कम्यूटर फील्ड में वैश्विक स्तर पर बड़े नुकसान किये थे और उस समय भी गोचर में गुरु-केतु का चांडाल योग बना हुआ था।
अभी 15 वर्ष पूर्व सन 2005 में एच-5 एन-1नाम से एक बर्डफ्लू फैला था और उस समय में भी गोचर में बृहस्पति-केतु चांडाल का योग बना हुआ था।
ऐसे में जब भी गुरु-केतु एक ही राशि में एक साथ होते हैं, तो इस तरह की महामारी फैलती है। उस समय में बड़े संक्रामक रोग और महामारियां सामने आती हैं।
2005 में जब गुरु चांडाल योग (बृहस्पति-केतु युति) के दौरान बर्डफ्लू सामने आया था।
कोरोना वायरस का कारक शनि भी हो सकता है
सन 2019 नवम्बर में शनि मकर राशि के उत्तराषाढा नक्षत्र में प्रवेश करते ही दुनिया धधक उठी। उत्तराषाढा नक्षत्र के अधिपति भगवान सूर्य हैं। जब तक शनि इस नक्षत्र में रहेंगे,तब तक प्रकार से दुनिया त्रस्त और तबाह
हो जाएगी। अभी जनवरी 2021 तक शनि, सूर्य के नक्षत्र रहेंगे। अभी यह अंगड़ाई है। 22 मार्च 2020 को शनि के साथ मंगल भी आ जाएंगे। मंगल भूमिपति अर्थात पृथ्वी के स्वामी है। इन दोनों का गठबंधन और भी नए गुल खिलाएगा। मकर मंगल की उच्च राशि भी है।
अनेक अग्निकांडों से, जंगल में आग आदि विस्फोटों से सृष्टि थरथरा जाएगी। इस समय कोई देश परमाणु हमले भी कर सकता है। शनि-मंगल की युति यह बुद्धिहीन योग भी कहलाता है।
2020 में क्लेश ही क्लेश
गुरु-केतु की युति से निर्मित चांडाल योग राजनीति में बम विस्फोट करता रहेगा। राज्य सरकारों की अदला-बदली का रहस्यमयी खेल चलता रहेगा।कुछ बड़े राजनेताओं, पुलिस अधिकारीयों,न्यायधीशों के जेल जाने से देश में अफरा-तफरी का माहौल बनेगा।
दुनिया के कई देशों में बमबारी हो सकती है। गृहयुद्ध, कर्फ्यू आदि लग सकता है। कुछ देश अपने ही नागरिकों को मारने का भरसक प्रयास करेंगे। मानव संस्कृति के लिए ये वक्त बहुत भयानक होगा। शनि के संग मंगल की युति किसी अप्रिय घटना का इतिहास बनाता है।
इस समय ऐसी घटनाएं उन फर्जी लोगों के साथ ज्यादा होंगी, जो बाला जी की अर्जी लगाकर, अपनी मनमर्जी से चलते हैं। यह समय बहुत भय-भ्रम, आकस्मिक दुर्घटनाओं के वातावरण से भरा होगा। किसी-किसी देश में इमरजेंसी जैसा माहौल हो सकता है। कुछ देश टूट भी सकते हैं। बंटवारे की भी संभावना है।
कोरोना वायरस जैसी महामारी के साथ-साथ और भी बीमारियां मानव जाति को खत्म कर सकती हैं,जो लोग अधार्मिक हैं।
वेद एवं ज्योतिष कालगणना अनुसार कलयुग में जब सूर्य-शनि एक साथ शनि की राशि मकर में होंगे। राहु स्वयं के नक्षत्र आद्रा में परिभ्रमण करेंगे और विकार या विकारी नाम संवत्सर होगा।
क्या है विकार नामक संवत्सर-
जैसे साल में बारह महीने होते हैं, वैसे ही संवत्सर 60 होते हैं। यह वर्ष में 2 आते हैं। तीस साल बार पुनः प्रथम संवत्सर
का आगमन होता है। विकार या विकारी नामक हिन्दू धर्म में मान्य संवत्सरों में से एक है।
यह 60 संवत्सरों में तेतीसवां है। इस संवत्सर के आने पर विश्व में भयंकर विकार या वायरस फैलते हैं। इसीलिए इसे
विकारी नाम संवत्सर कहा जाता है। जल वृष्टि या वर्षा अधिक होती है। मौसम में ठंडक रहती है। इस समय
पृथ्वी/प्रकृति के स्वभाव को समझना मुश्किल होता है।
विकार नामक संवत्सर के लक्षण/फल :
मांस-मदिरा सेवन करने वाले दुष्ट व शत्रु कुपित दुःखी या बीमार रहते हैं और श्लेष्मिक यानि कफ, सर्दी-खांसी,
जुकाम का पुरजोर संक्रमण होता है। पित्त रोगों की अधिकता रहती है। चंद्रमा को विकारी संवत्सर का स्वामी कहा गया है।
सन 2019 के अंत के दौरान गुरु-केतु की युति से चांडाल योग निर्मित हुआ। यह बड़े-बड़े चांडाल, फ्रॉड, बेईमान
दयाहीन, अहंकारी लोगों को सड़कों पर लाकर खड़ा कर देगा।
भयानक गरीबी, मारकाट फैलने का भय हो सकता है। एक आंख में सूरज थामा, दूसरे में चंद्रमा आधा। चारों वेदों में सूर्य को ऊर्जा का विशालस्त्रोत और महादेव की आंख माना है।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्।।
भावार्थ: सूर्य ही एक मात्र ऐसी शक्ति है,जो देह को रोगरहित बनाकर लंबी उम्र,बल-बुद्धि एवं वीर्य की वृद्धि कर
सभी व्याधि-विकार, रोग-बीमारी,शोक-दुःख का विनाश कर देते हैं।
संक्रमण/वायरस प्रदूषण नाशक सूर्य
सूर्य एक चलता-फिरता, मोबाइल प्राकृतिक चिकित्सालय है। सूर्य की सप्तरंगी किरणों में अद्भुत रोगनाशक शक्ति होती है।
अथर्ववेद (3.7) में वर्णित है-
‘उत पुरस्तात् सूर्य एत, दुष्टान् च ध्नन्
अदृष्टान् च, सर्वान् च प्रमृणन् कृमीन्।’
अर्थात-
सूर्य के प्रकाश में, दिखाई देने या न
दिखने वाले सभी प्रकार के प्रदूषित जीवाणुओं-कीटाणुओं और रोगाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है। सूर्य की सप्त किरणों में औषधीय गुणों का अपार भंडार है।
13 जून 2020 इस विश्वव्यापी महामारी के विघटन का समय बनेगा 2020 अन्य प्राकृतिक आपदाओं का भी साक्षी बनेगा ईश्वरीय वंदन एक महत्वपूर्ण औषधि है जिससे इस मुश्किल समय में आने वाली चिन्ताओं से मानसिक रूप से मुक्ति पाई जा सकती है